दोनों देशों के बीच एक-दूसरे की सीमा के भीतर बस्तियों का मुद्दा लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। बांग्लादेश के भीतर हज़ारों भारतीयों की आबादी वाली ऐसी कोई 100 से अधिक बस्तियाँ हैं जबकि भारत में बांग्लादेशी नागरिकों की ऐसी 50 से अधिक बस्तियाँ हैं। इन बस्तियों में रहनेवाले लोग एक तरह से देश विहीन लोग हैं और उन्हें किसी भी देश में सरकारी सुविधाएँ नहीं मिल पातीं।

दोनों देश अब सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बस्तियों की अदला-बदली करने के बारे में कोई समझौता करना चाहते हैं। समझा जाता है कि इस समझौते को भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सितंबर में होनेवाली बांग्लादेश यात्रा के दौरान अंतिम रूप दे दिया जाएगा।

इन बस्तियों की जनगणना तीन दिन तक चलेगी। बस्तियों का ये विवाद 1947 से ही चला आ रहा है जब विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान बना था जो 1971 में बांग्लादेश बना।

बांग्लादेश के गृहसचिव अब्दुल सोभन सिकदर ने बीबीसी को बताया कि 1974 में दोनों देशों ने बस्तियों की अदला-बदली के बारे में सहमति की थी लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका।

फ़िलहाल दोनों देश जनगणना के बाद बस्तियों की अदला-बदली की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं लेकिन वहाँ रहनेवाले लोगों की स्थिति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।

दोनों देशों का कहना है कि बस्तियों के लोगों को कहाँ रहना है इसका फ़ैसला वहाँ के निवासियों को ही करना है।

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