यह वही दिन था जब सेना के कुछ असंतुष्ट अफसरों ने शेख हसीना के महान पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की लगभग पूरे परिवार सहित हत्या कर दी थी. शेख मुजीबुर रहमान को ही बांग्लादेश की आजादी का श्रेय दिया जाता है.

उस घटना में बंगबंधु की दोनो बेटियाँ हसीना और रेहाना ही बच पाई थीं क्योंकि वो अपने पतियों के साथ यूरोप में थीं. यहाँ तक कि मुजीब के 10 साल के बेटे रसेल तक को नहीं बख्शा गया था.

लेकिन इसके बावजूद शेख हसीना की कट्टर प्रतिद्वंद्वी बेगम ज़िया साल 1991 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही 15 अगस्त को अपनी जन्मदिन मनाती रही है. हालांकि यह उनका जन्मदिन नहीं है.

इसकंदर मजूमदार और तोयबा मजूमदार की बेटी ज़िया त्रिपुरा की सीमा के पास फेनी के सोनागाज़ी नाम की जगह पर 1945 में पैदा हुई थीं.

बेगम ज़िया की शादी के सर्टिफिकेट पर उनके जन्म की तारीख पाँच सितम्बर 1945 लिखी हुई है. उनके पहले पासपोर्ट पर उनकी जन्मतिथि 19 अगस्त 1945 की है. मैट्रिक की परीक्षा के एडमिट कार्ड पर यह नौ अगस्त 1945 है.

तख्तापलट

बांग्लादेशः बेगमों की जंग में जन्मदिन की सियासत

इनमें से किसी भी सरकारी दस्तावेज पर यह नहीं लिखा है कि बेगम ज़िया 15 अगस्त को पैदा हुई थीं.

तो सवाल यह पैदा होता है कि इस तारीख पर बेगम ज़िया अपना जन्मदिन क्यों मनाती हैं जबकि इस दिन को बांग्लादेश अपने 'राष्ट्रपिता' की याद में राष्ट्रीय शोक के तौर पर मनाता है.

प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे साजिब वाजेद ज्वॉय कहते हैं कि बेगम ज़िया का जन्मदिन समारोह वाकई में एक खराब बात है.

ज्वॉय ने अपने एक फेसबुक पोस्ट में कहा भी है, "वे किस तरह की महिला हैं? वे कैसे इस दिन अपना जन्मदिन मना सकती हैं जबकि यह उनका जन्मदिन नहीं है?"

इस बात को लेकर सत्तारूढ़ आवामी लीग के नेता बेगम ज़िया की तीखी आलोचना करते रहे हैं. वो कहते हैं कि बेगम ज़िया शेख मुजीब के पूरे परिवार के खात्मे की 'खुशी' को जाहिर करने के लिए ऐसा करती हैं.

आवामी लीग के नेताओं का यह भी कहना है कि बेगम ज़िया के मरहूम शौहर जनरल जियाउर रहमान उस सैन्य तख्तापलट में शामिल थे जिसमें शेख मुजीब का कत्ल कर दिया गया था.

ज़ियाउर रहमान और खालिदा उर्फ पुतुल का निकाह साल 1960 में हुआ था. पुतुल नाम ज़िया को उनकी खूबसूरती की वजह से दिया गया था.

ज़ियाउर रहमान पाकिस्तानी सेना में मेजर हुआ करते थे और बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में वो एक कमांडर के तौर पर लड़े भी थे, लेकिन अपने जूनियर अफसरों द्वारा किए जा रहे सैन्य तख्तापलट का उन्होंने विरोध नहीं किया था.

साल 1975 में हुई इसी बगावत में शेख मुजीब और उनके परिवार की हत्या कर दी गई.

रंजिश

बांग्लादेशः बेगमों की जंग में जन्मदिन की सियासत

बाद में सत्ता ज़ियाउर रहमान के हाथ में आ गई और वो बांग्लादेश के पहले सैनिक तानाशाह बन गए.

बांग्लादेश की आजादी की अगुवाई करने वाली शेख मुजीब की पार्टी आवामी लीग के मुकाबले उन्होंने सेना के बैरकों से बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी का गठन किया.

1980 में फौज़ के कुछ असंतुष्ट अफसरों ने ज़ियाउर रहमान की हत्या कर दी और उनकी जगह जनरल एचएम इरशाद ने ले ली.

बेगम खालिदा ज़िया की बीएनपी और शेख हसीना वाजेद की आवामी लीग ने फौज़ की हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया और बांग्लादेश की सड़कों पर सालों के हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद 1991 में मुल्क में आखिरकार निज़ाम बदला.

इसके बाद से ही दोनों महिलाएँ बारी-बारी से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनती रही हैं और मुल्क दोनों बेगमों की कभी न खत्म होने वाली जंग का गवाह रहा है.

लेकिन दोनों नेताओं की रंजिश इस कदर गहरी रही है कि एक का दुख दूसरे के लिए हमेशा ही खुशी का मौका होता है.

'हैप्पी बर्थडे'

बांग्लादेशः बेगमों की जंग में जन्मदिन की सियासत

15 अगस्त को शेख हसीना ने अपने पिता और परिवार के सदस्यों की मजार पर जाकर प्रार्थना की. उधर बेगम ज़िया राजधानी ढाका में बीएनपी के नए पलटन स्थित मुख्य दफ्तर में 69 पाउंड का विशालकाय केक काटने में मसरूफ थीं.

बेगम ज़िया के जन्मदिन पर 69 पाउंड के सात केक काटे गए. यह उनके 69 साल के होने की निशानी थी.

हर एक केक बीएनपी के छात्र, युवक, मजदूर, महिला, स्टैंडिंग कमेटी जैसे सात पार्टी इकाईयों की तरफ से पेश किया गया था.

बीएनपी की स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य के मुशर्रफ हुसैन ने कहा, "हमारी नेता आज 69 साल की हो गई हैं, उनके लिए प्रार्थना की जाए."

पार्टी के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता इस मौके पर अपनी उम्रदराज हो रही नेता के लिए 'हैप्पी बर्थडे' का गीत गा रहे थे.

सत्तारूढ़ आवामी लीग के महासचिव सैयद अशराफुल इस्लाम कहते हैं, "हम आज रोये, उन्होंने जश्न मनाया, क्या यह गलत बात नहीं है?"

इन हालात में यह समझा जा सकता है कि बांग्लादेश में सियासी रंजिश की जड़े कितनी गहरी हैं.

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