बांग्लादेश में एक बड़े इस्लामी नेता को 1971 में पाकिस्तान से आज़ादी के लिए लड़े गए युद्ध के दौरान युद्ध अपराधों के लिए मौत की सज़ा सुनाई गई है.

जमात-ए-इस्लामी के नेता अली अहसान मोहम्मद मुजाहिद पर नरसंहार और प्रताड़ना के आरोप थे और सात में से पांच आरोपों में उन्हें दोषी पाया गया.

अभियोजन पक्ष का कहना था कि मोहम्मद मुजाहिद ने बांग्लादेश की आज़ादी का समर्थन करने वाले नेताओं और बुद्धिजीवियों की हत्या के लिए एक मिलिशिया का नेतृत्व किया था.

इससे पहले सोमवार को जमात-ए-इस्लामी के आध्यात्मिक नेता गु़लाम आज़म को 90 साल की सज़ा सुनाई गई. इसके ख़िलाफ़ ढाका में मंगलवार को हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए.

प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच संघर्ष में कम से कम दो लोगों की मौत हो गई.

'फांसी दी जाए'

वर्तमान अवामी लीग सरकार ने 2010 में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण की स्थापना की थी जो 1971 के 'मुक्ति संग्राम' में पाकिस्तानी सेना का कथित तौर पर साथ देने वाले लोगों से जुड़े मुक़दमों की सुनवाई कर रहा है.

न्यायाधिकरण के फ़ैसलों के बाद हो रही हिंसा में जनवरी से लेकर अब तक 100 लोग मारे जा चुके हैं.

जमात-ए-इस्लामी का कहना है कि यह सुनवाई राजनीति से प्रेरित है और मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने इसे “दोषयुक्त” कहा है.

समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार बुधवार को ढाका में खचाखच भरे अदालती कक्ष में पैनल के तीन जजों के फ़ैसला सुनाने के बाद जस्टिस ओबैदुल हसन ने आदेश दिया कि मुजाहिद को “फांसी दे दी जाए.”

मुजाहिद 1971 में छात्र नेता थे और वो उन लोगों में से थे जो संयुक्त पाकिस्तान का समर्थन करते थे.

भूमिगत भी रहे

बांग्लादेश: इस्लामी नेता को मौत की सज़ा

बांग्लादेश को आज़ादी मिलने के बाद जमात के अन्य नेताओं की तरह वो भी भूमिगत हो गए थे. लेकिन 1977 में एक सैन्य तख़्तापलट के बाद जनरल ज़ियाउर रहमान के सत्ता में आने के बाद वो मुख्यधारा में लौट आए.

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सरकार में 2001-2006 के दौरान मुजाहिद समाज कल्याण मंत्री भी बने.

मुजाहिद को उनके भाषण और संगठनात्मक योग्यता के लिए जाना जाता है. लेकिन उनके विरोधियों का कहना है कि वह अल-बद्र गुट के नेता थे, जिसने आज़ादी समर्थक बंगाली कार्यकर्ताओं की पहचान और हत्या में पाकिस्तानी सेना की मदद की थी.

नौ महीने चले बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए लोगों की सही-सही संख्या के बारे में अलग-अलग अनुमान लगाए जाते हैं.

लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 30 लाख लोग उस दौरान मारे गए थे.

बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम

-पहले स्वायतत्ता और फिर स्वतंत्रता की मांग कर रहे पूर्वी पाकिस्तानियों को पाकिस्तानी सेना ने दबाने की कोशिश की. इससे गृह युद्ध भड़क गया.

-पाकिस्तानी सेना के दमन के चलते करीब एक करोड़ पूर्वी पाकिस्तानी नागरिक भारत की ओर पलायन कर जाते हैं.

-पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के समर्थन में दिसंबर में भारत पूर्वी पाकिस्तान में हस्तक्षेप करता है.

-ढाका में पाकिस्तानी सेना समर्पण कर देती है और इसके 90,000 से ज़्यादा सैनिक भारत के युद्ध बंदी बन जाते हैं.

-पूर्वी पाकिस्तान 16 दिसंबर 1971 को स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश बन जाता है.

-नौ महीने चले इस गृह युद्ध में मारे गए लोगों की सही-सही संख्या के बारे में अलग-अलग अनुमान लगाए जाते हैं. लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 30 लाख लोग उस दौरान मारे गए थे.

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