जज ने मौत की सज़ा पर उनकी पुनर्विचार याचिका को रद्द करते हुए कहा कि इससे उन्हें फाँसी दिए जाने का रास्ता साफ़ हो गया है.

अब्दुल कादर मुल्ला को मंगलवार को फाँसी दी जानी थी लेकिन उन्हें अंतिम समय में राहत मिल गई.

साल 1971 में पाकिस्तान से आज़ादी के लिए हुए युद्ध में मानवता के ख़िलाफ़ अपराध करने के मामले में अब्दुल कादर मुल्ला को इसी साल फ़रवरी में अदालत ने आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी.

जमात-ए-इस्लामी पार्टी के शीर्ष नेता कादर मुल्ला आरोपों को नकारते रहे हैं.

कादर मुल्ला पर चले मुक़दमे के विरोध में जमात-ए-इस्लामी ने व्यापक प्रदर्शन किए. उनके समर्थक सरकार पर राजनीतिक साज़िश का आरोप लगाते रहे हैं.

जमात-ए-इस्लामी पार्टी के  कई शीर्ष नेता युद्ध अपराध मुक़दमे के सिलसिले में जेल में है.

बांग्लादेश: मुल्ला की फांसी की सज़ा बरक़रार

अटॉर्नी जनरल महबूबे आलम ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा, "अब उनकी फांसी में कोई क़ानूनी अड़चन नहीं है."

प्रदर्शन

मुल्ला उन पांच नेताओं में से हैं जिन्हें बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने फ़ांसी की सज़ा दी है. इस न्यायधिकरण की स्थापना 1971 के संघर्ष के दौरान हुए अत्याचारों की जांच के लिए साल 2010 में की गई थी. कुछ अनुमानों के मुताबिक 1971 के अत्याचारों में 30 लाख लोगों की मौत हुई थी.

मुल्ला जमात-ए-इस्लामी के सहायक महासचिव हैं. मुल्ला को शुरुआत में आजीवन कारावास की सज़ा दी गई थी. उन्हें ढाका के उपनगर मीरपुर में निहत्थे नागरिकों और बुद्धिजीवियों की हत्या का दोषी पाया गया था.

इसके बाद हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने मांग की थी कि उन्हें फांसी दी जाए. बांग्लादेश की संसद ने इसके बाद क़ानून में बदलाव किया ताकि सरकार इस न्यायाधिकरण के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील कर सकें.

इसी साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने मुल्ला की सज़ा को फाँसी में बदल दिया था.

इस विशेष अदालत पर मानवाधिकार समूहों ने सवाल उठाए हैं और कहा है कि यह अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी नहीं उतरती है.

जमात अगले साल पांच जनवरी को होने वाले चुनाव नहीं लड़ सकती लेकिन विपक्षी बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी के आंदोलन में अहम भूमिका निभा रही है.

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