ये टीचर मुसलमान समुदाय के एक धार्मिक स्कूल की है। पुलिस के मुताबिक 14 छात्राओं को इस तरह से जलाया गया है और इन सबकी उम्र 8-14 साल के बीच है।

घटना के बाद स्कूल को बंद कर दिया गया है और इस घटना की चर्चा अखबारों में छाई हुई है। हालांकि ये चोट ज्यादा गंभीर नहीं है।

प्रतिबंध

बांग्लादेश में साल 2010 से ही स्कूलों में शारीरिक प्रताड़ना पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और ये कानून धार्मिक स्कूलों और मदरसों, सभी पर लागू होता है।

एक पीड़ित लड़की की माँ जुमूर अख्तर ने बीबीसी को बताया, "अपनी बेटी के जलने से हुए घाव को देखकर मैं घबरा गई." ये लड़कियां ढाका के एक स्कूल में अरबी और बंगाली भाषा सीखने जाती थीं। माना जा रहा है कि ये घटना मंगलवार को हुई।

आठ साल की छात्रा फिरदौसी अख्तर ने बताया, “छुट्टियों के बाद ये हमारे मदरसे का पहला दिन था। हमारी टीचर ये सुनकर बहुत गुस्सा हो गई कि हमने छुट्टियों के दौरान नियमित रूप से प्रार्थना नहीं की.”

इस छात्रा के मुताबिक इसके बाद टीचर ने अपने नौकर से लोहे की छड़ गर्म करने को कहा और फिर वो गर्म छड़ से हमारे पैरों को दाग दिया। छात्राओं का कहना है कि टीचर ने ऐसा इसलिए किया ताकि हमें पता चले कि नरक में जाने पर जब गर्म लोहे से दागा जाएगा तो कितना दर्द होगा।

टीचर ने छात्राओं से कहा कि यदि वे नियमित रूप से प्रार्थना नहीं करेंगी तो उन्हें ऐसा ही दर्द सहना पड़ेगा। इस मामले में पीड़ित छात्राओं के अभिभावकों की शिकायत पर पुलिस मामले की जांच कर रही है।

फरार

ढाका के एक पुलिस अधिकारी शफीकुल इस्लाम ने बीबीसी को बताया, “एक लड़की के पिता की शिकायत पर हमने मदरसे की टीचर के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। टीचर और उसके पति दोनों फरार हैं। हम उनकी तलाश कर रहे हैं.” इस बीच अभिभावकों का कहना है कि वे अपने बच्चों को अब मदरसे में भेजने के इच्छुक नहीं हैं।

एक और पीड़ित छात्रा की माँ सुमैया बेगम का कहना है, “यदि हमारे आस-पास कोई सरकारी स्कूल होता तो हम यहां अपने बच्चों को न भेजते। लेकिन सबसे नजदीकी सरकारी स्कूल भी यहां से काफी दूर है.”

दरअसल, बांग्लादेश में दो तरह के मदरसा हैं। देश भर में करीब सोलह हजार सरकार प्रायोजित आलिया मदरसा हैं जिनमें करीब पचास लाख बच्चे पढ़ते हैं। इस्लामिक शिक्षा के अलावा, इन मदरसों में अंग्रेजी, गणित और विज्ञान की भी पढ़ाई होती है।

दूसरे वहां कौमी मदरसा होते हैं, जो कि स्वतंत्र संस्थाएं होती हैं और इन्हें बांग्लादेश के भीतर और देश के बाहर से अनुदान मिलते हैं। इन मदरसों में मुख्य रूप से इस्लामिक शिक्षा ही दी जाती है। बांग्लादेश के लगभग हर गाँव में कौमी मदरसे हैं। गरीब समुदाय के लोग अपने बच्चों को ज्यादातर इन्हीं मदरसों में दाखिला करवाते हैं।

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