केस- टू

फरीदपुर थाना अंतर्गत सहजनपुर निवासी 38 वर्षीय राजन बाबू की घर की माली हालत ठीक नहीं थी। कारपेंटर के धंधे से भी घर की आर्थिक स्थिति दयनीय बनी रही। लिहाजा, उन्होंने बिजनेस करने की सोची। ग्रिल की दुकान खोलने के लिए उन्होंने बैंक में लोन के लिए अप्लाई किया। काफी प्रयास के बाद भी राजन के लोन पास नहीं हुआ। लिहाजा दुकान खोलने के लिए 5 वर्ष पहले सूदखोर से 10 हजार रुपए ले लिए। दुकान खोलने के बाद राजन और उनके परिवार के बाकी सदस्य काफी खुश थे, लेकिन सूदखोर के बढ़ते ब्याज ने राजन की खुशियों को छीन लिया। 60 हजार रुपए दे चुके हैं, लेकिन मूलधन खत्म नहीं हुआ। जबकि, सूदखोर का कर्ज चुकाने के लिए राजन को अपनी दुकान तक बेच दी। सूदखोर के डर से घर छोड़ शहर रहने लगे।

BAREILLY:

रेलवे से रिटायर कलावती ने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था कि जिस रुपए से वह बेटी के लिए खुशियां खरीद कर उसका घर बसा रही हैं, वहीं रुपए उनके लिए जीवन भर का दर्द बन जाएगा। स्टेशन रोड निवासी कलावती रिटायरमेंट के बाद 2015 में बेटी की शादी तय कर दी। शादी में खर्च के लिए उन्होंने बैंक से लोन लेने के लिए अप्लाई किया। कई बार बैंक के चक्कर भी लगाए, लेकिन लोन पास नहीं हुआ। अधिकारियों ने डॉक्यूमेंट में कमियां निकाल लोन पास करने से साफ मना कर दिया। शादी की डेट नजदीक होने और कहीं से रुपयों का इंतजाम होते न देख कलावती ने सूदखोर से कर्ज ले लिया। कर्ज से अधिक रुपए देने के बाद भी वह सूदखोर के बोझ तले दबी हुई हैं।

सूदखोर के पास एटीएम व पासबुक

कलावती ने जब अपना दर्द बयां किया तो उनकी आंखों से आंसू छलक उठे। कलावती ने बताया कि 10 परसेंट के ब्याज पर 2 लाख रुपए ले लिए। ब्याज पर रुपए देते समय ही सूदखोर ने एटीएम व पासबुक रखवा लिए। जबकि, इनके अकाउंट में पेंशन के रुपए आते हैं, सूदखोर हर महीने निकाल लेता है। जिसकी वजह से घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया है। दो वर्ष में 3.25 लाख रुपए दे चुकी हूं। फिर, कर्जदार बनी हुई हूं।

लोन की जटिल प्रक्रिया बनी मुसीबत

सूदखोरों के जाल में सिर्फ राजन और कलावती ही नहीं फंसे हैं। बल्कि, बरेली में ऐसे लोगों की संख्या सैकड़ों में हैं। बैंकों से कर्ज मिलने की जटिल प्रक्रिया का लाभ सूदखोर उठा रहे हैं। कुछ लोग ऊंची ब्याज दर पर प्राइवेट लोन देकर मोटी कमाई कर रहे हैं। प्रशासन की नाक के नीचे ऐसे सूदखोर बैठे-बैठे लाखों के वारे-न्यारे कर रहे हैं। गरीब और साधारण वर्ग के लोग सूदखोरों के कर्ज के भार तले दबकर जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

तारीख पर लेते हैं ब्याज

सूदखोरों को मूलधन भले देर से मिले, लेकिन ब्याज उन्हें हर महीने निर्धारित तारीख को मिल जाना चाहिए। कर्ज देने से पहले एडवांस ब्याज, एटीएम और बैंक पासबुक भी कर्जदार के अपने पास रख लेते हैं। ब्याज देने में कुछ विलंब होने पर कर्जदार को अपने ही घर में अपमानित और प्रताडि़त होना पड़ता है। उनकी इज्जत मिट्टी में मिल जाती है। समाज में अपनी इज्जत का मजाक उड़ते देख कई बार कर्जदार आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने को मजबूर हैं। सूदखोरों से प्रताडि़त होकर कई लोग घर छोड़ने के साथ-साथ आत्महत्या कर भी चुके हैं।

10-20 परसेंट ब्याज पर लोन

बरेली में रजिस्टर्ड महाजनों की संख्या लगभग 1 हजार हैं, लेकिन इससे कहीं अधिक सूदखोर बिना रजिस्ट्रेशन के ही अपना धंधा चमकाने में लगे हुए हैं। सूदखोरी का धंधा करने वाले ज्यादातर बैंक के आसपास सक्रिय हैं। बैंक से लोन नहीं मिलने पर सूदखोर लोगों को अपने जाल में फंसा लेते हैं। सोर्सेज से मिली जानकारी के मुताबिक एक हजार रुपये पर 10 परसेंट या कहीं-कहीं 20 परसेंट मासिक तक ब्याज लिया जा रहा है। सूदखोरी से हो रही मोटी आय के फलस्वरूप बहुत से लोगों ने अपार संपत्ति अर्जित कर ली है। इन संपत्तियों की यदि जांच की जाये तो सच्चाई का पता लग जाएगा।

ब्याज पर रुपए देकर लोगों को परेशान करने वाले सूदखोरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यदि, किसी कर्जदार को कोई सूदखोर परेशान कर रहा है, तो वह शिकायत कर सकता है।

जगतपाल सिंह, एडीएम एफआर