बैंक कहते हैं लोन बारोअर नहीं, बारोअर कहते हैं कि बैंक लोन नहीं देते। यूपी का क्रेडिट डिपाजिट रेशियो दूसरे राज्यों की तुलना में आधा भी नहीं है। महाराष्ट्र में बैंक अपने कैश डिपाजिट की तुलना में 105 परसेंट लोन दे रहे हैं तो तमिलनाडु जैसे प्रदेश 120 परसेंट। आप को जानकर हैरानी होगी कि अपने यूपी में बैंक सिर्फ 100 रुपए डिपाजिट के अगेंस्ट 42 रूपए ही लोन दे रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि बाकी का 58 परसेंट पैसा कहां जा रहा है? एक्सपर्ट्स की माने तो यूपी को बेवजह बदनाम किया जा रहा है कि लो गलोन नहीं चुकाते और यहां के डिपाजिट पर दूसरे राज्यों की ऐश हो रही है।

नहीं मिलता loan

लालबाग निवासी सुजाता अपना कुछ बिजनेस स्टार्ट करना चाहतीं हैं। इसके लिए उन्हे पैसों की जरूरत है। अपनी इस जरूरत के लिए जब वह बैंक पहुंची तो उन्हें लोन देने से मना कर दिया गया। सरकारी कर्मचारी श्रेया को अपना मकान पूरा करने के लिए होम चाहिए। लेकिन पब्लिक सेक्टर के किसी भी बैंक ने उन्हें लोन नहीं दिया। वजीर हसन रोड निवासी सलीम अपने बिजनेस का एक्सपैंशन करने के लिए लास्ट सिक्स मंथ से लोन लेने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अभी तक लोन पाने में कामयाब नहीं हुए हैं। यह कुछ केस काफी हैं मौजूदा हालात बयान करने के लिए। इंडस्ट्री हैं नहीं और पर्सनल और होम लोन देने में बैंक आगे नहीं आ रहे जिसका नतीजा यह है कि यूपी का क्रेडिट डिपाजिट रेशियो दूसरे राज्यों की तुलना में काफी पीछे चला गया है जबकि जमा के मामले में यूपी आगे हैं.  

credit-deposit ratio

तमिलनाडु - 120 परसेंट

महाराष्ट्र - 105 परसेंट

हैदराबाद - 95 परसेंट

यूपी - 42 परसेंट

हद हो गयी

19 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले इस राज्य में 26 सरकारी बैंकों में से किसी भी नेशनलाइज्ड बैंक का हेड ऑफिस नहीं है। बैंककर्मी दीप कुमार बाजपेई कहते हैं कि पब्लिक सेक्टर के किसी भी बैंक का हेड ऑफिस यूपी में नहीं है। पंजाब, मुंबई, चेन्नई, राजस्थान, दिल्ली और कोलकाता में बैंक के हेड आफिस हैं लेकिन यूपी में नहीं। यानी यूपी के पैसों पर दूसरे राज्य ऐश कर रहे हैं। वह कहते हैं कि और राज्यों की तुलना में यूपी में 100 रूपए के अंगेस्ट सिर्फ 42 रूपए लोन के रूप में दिये जा रहे हैं बाकी रूपया बैंक अपने हेड आफिस ले जा रहे हैं जो गलत है। यहां का रूपया यहां के लोगों के विकास के काम में आना चाहिए. 

नहीं हैं बड़े loan के खरीदार

पब्लिक सेक्टर बैंक से जुड़े एक बड़े अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि यहां इंडस्ट्री नहीं हैं इसलिए बड़े लोन बायर नहीं हैं जिसके कारण हम क्रेडिट डिपाजिट रेशियों में पिछड़े हैं। इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन के प्रेसीडेंट अनिल गुप्ता कहते हैं कि यहां बड़े लोन बायर भी हैं और इंडस्ट्री भी विकसित होना चाहती हैं। लेकिन बैंकों के लोन न देने के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा। बैंक एमएसएमई को रिस्की मान कर लोन नहीं देते। अब अगर हम रिस्की हैं तो इसमें हमारी क्या गलती जबकि दूसरे प्रदेशों में आंख बंद कर एमएसएमई की मदद की जा रही है। वह कहते हैं कि आजतक कोई भी छोटा लोन खराब नहीं होता। एनपीए में का बड़ा परसेंटेज बिग लोन से आता है जो कारपोरेट लेते हैं और सिक यूनिट दिखा कर लोन हजम कर जाते हैं। यूपी का आदमी ईमानदार है और लोन लेकर उसे चुकाना जानता है. 

होता है development

अर्थशास्त्री यशवीर त्यागी कहते हैं कि माइक्रो फाइनेंस लोगों की जिंदगी बदल रहा है तो बड़े और मीडियम लोन क्यों नहीं? किसी भी राज्य, का विकास वहां की इंडस्ट्री से होता है। यूपी में न तो फारेन इंवेस्टमेंट हो रहा है और न ही इंडियन कंपनियां यहां अपनी यूनिट इंस्टाल कर रही हैं। अगर यहां लोन से ही सही एक इंडस्ट्री डेवलप होगी तो उस इंडस्ट्री के कारण आसपास का विकास होगा और उसकी हेल्पिंग यूनिट्स भी लगेंगी।

क्या कहते हैं उद्यमी

लोन लेने जाओ तो तरह-तरह के अड़ंगे लगाये जाते हैं। यह कमी वहां की एनओसी, लोन अगर क्लियर भी हो जाए तो इस बात की गारंटी नहीं कि यूनिट चालू हो जाएगी। ऐसे में ब्याज का मीटर तो चालू हो जाता है जिससे उद्यमी के सामने परेशानियां आती है। पूरे सिस्टम में सुधार की जरूरत है। इंटरप्नयोर को सिंगल विंडो से सारी सहूलियतें मिलना चाहिए। दूसरे राज्यों में कम ब्याज दरों के साथ दूसरी कई तरह की सहूलियतें दी जाती हैं जोकि यहां नहीं है। -मुकेश टंडन सीईओ कैलोरी ब्रेड

कुछ अवेयरनेस की कमी है तो कुछ सिस्टम में कमियां है। कुल मिलाकर लोन की कमी के चलते यहां के उद्योग धंधे चौपट हा रहे हैं और कोई नई इंडस्ट्री लगी नहीं। जिससे रोजगार के अवसर घट रहे हैं। मिशन 20:20 बिना यूपी की ग्रोथ के पूरा नहीं हो सकता। यहां की ग्रोथ तब होगी जब यहां के लोगों को सस्ती ब्याज दरों पर लोन मुहैया कराया जाएगा। -चेतन भल्ला, सीईओ ग्लोरिया आईसक्रीम

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