- इन दिनों में 20 लाख रुपए हुए खर्च, सुनवाई एक भी नहीं

- 12 मई 2016 से 60 से अधिक केस हैं पेंडिंग में

BAREILLY:

स्थायी लोक अदालत 'लॉक' हो गया है। दस माह पहले कोर्ट में आखिरी अदालत लगी थी। इसके बाद से कोर्ट का ऑफिस समय से खुलता और बंद होता है। चेयरमैन, पेशकार और स्टेनो भी आते है। नहीं होती है, तो बस केस की सुनवाई। लिहाजा, केस से जुड़े वादी, परिवादी भी परेशान हो उठे हैं। जबकि इन स्टॉफ पर और ऑफिस के मेंटीनेंस पर गवर्नमेंट लाखों रुपए खर्च कर रही है।

सीनियर सदस्य हो चुके हैं रिटायर

दरअसल, केस की सुनवाई के लिए एक चेयरमैन और दो सदस्यों की आवश्यकता होती है। इस समय परमानेंट लोक अदालत में मात्र चेयरमैन बचे हुए है। सीनियर सदस्य रहे सीपी अरोड़ा व शशिबाला एक ही दिन 11 मई 2016 को रिटायर हो गए। यानि, 12 मई 2016 से एक भी केस की सुनवाई का मामला आगे नहीं बढ़ सका है। जबकि प्रजेंट टाइम में 60 से अधिक मामले लम्बित चल रहे हैं। जबकि, चेयरमैन, स्टेनो, पेशकार और चपरासी पर हर महीने दो लाख रुपए खर्च हो रहे हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो पिछले 10 महीने में 20 लाख रुपए वेतन और ऑफिस मेंटीनेंस पर खर्च हो चुका है।

इंटरव्यू हुए, ज्वॉइनिंग नहीं

ज्वॉइनिंग के समय की रिटायरमेंट की डेट फिक्स होती है। बावजूद इसके खाली पदों पर नियुक्ति का प्रोसेस समय पर पूरा नहीं किया गया। दोनों सदस्यों को रिटायरमेंट के बाद किसी तरह चार महीने बाद आवेदन मांगे गए थे। आवेदन के बाद 27 सितम्बर 2016 को इंटरव्यू भी हुए, लेकिन अभी तक भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं की जा चुकी है, जिस वजह से नए मामले नाममात्र दाखिल हो रहे हैं। वहीं एडवोकेट जिन पीडि़तों का केस लड़ रहे है उन्हें सिर्फ तारीख पर तारीख मिल रही है।

2010 में खुली थी अदालत

प्रदेश में बढ़ते मामलों को देखते हुए यूपी में सर्वप्रथम 2010 में स्थायी लोक अदालत खोली गई थी। इस साथ 23 परमानेंट खोला गया था। इनमें बरेली भी एक था। रिटायर्ड जिला जज स्तर के लोगों की नियुक्ति चेयरमैन पद पर की गई थी। साथ में, स्टेनो और चपरासी की भी नियुक्ति हुई। बरेली में डॉ। कॉलोनी में 15,000 के किराए के मकान में अदालत की शुरुआत हुई थी। 5 किलोवॉट का बिजली कनेक्शन लिया गया था। बाद में स्थायी लोक अदालत को कोर्ट कैम्पस में शिफ्ट कर दिया गया, जिस समय प्रदेश में स्थायी लोक अदालत खोला गया था उस समय भी सदस्यों की नियुक्ति मई 2011 तक नहीं हो सकी थी।

बॉक्स

- 12 मई 2016 से एक भी सुनवाई नहीं।

- 60 से अधिक केस चल रहे हैं पेंडिंग में।

- केस की सुनवाई से नए केस का आना हुआ कम।

- 2 लाख रुपए सेलरी और ऑफिस मेंटीनेंस पर हो रहा खर्च।

- 1.15 लाख रुपए चेयरमैन, 30 हजार स्टेनो, 20 हजार प्यून, 9 हजार रुपए पेशकार और बाकी ऑफिस खर्च।

- 20 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं बिना एक भी केस की सुनवाई के।

केस की सुनवाई नहीं हो रही है, तो फिर कोर्ट का मतलब ही क्या रह गया। इस संबंध में एसोसिएशन से किसी ने शिकायत नहीं की है। मामले में कोर्ट के लोगों से मिल कर समस्या का हल निकाला जाएगा।

घनश्याम शर्मा, अध्यक्ष, बार एसोसिएशन

मेरे रिटायर से पहले नई नियुक्ति का प्रोसेस शुरू नहीं हुआ था। हालांकि, बाद में आवेदन मांगे गए थे, लेकिन नियुक्ति नहीं हो सकी है। सदस्य नहीं है, तो केस की सुनवाई नहीं हो सकती है।

सीपी अरोड़ा, पूर्व सीनियर सदस्य, स्थायी लोक अदालत

यूपी स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी पिछले एक साल से सदस्यों की नियुक्ति नहीं कर सकी है, जिसके चलते सस्ता व सुलभ न्याय दिलाने की सुप्रीम कोर्ट की मुहिम को धक्का लगा है। वहीं अध्यक्ष व स्टाफ के वेतन और खर्चो के रूप में लाखों रुपए सालाना लोकधन खर्च हो रहा है। परिवादियों को सिविल कोर्ट की तरह सिर्फ तारीख मिल रही है। एडवोकेट को क्लाइंट को संतुष्ट करना मुश्किल हो गया है।

मोहम्मद खालिद जीलानी, एडवोकेट

स्थायी लोक अदालत में सेवा से जुड़े वादों की होती है सुनवाई।

- यातायात सेवाओं।

- पोस्ट ऑफिस, टेलीफोन सेवाएं।

- विद्युत, प्रकाश या जलसेवा।

- लोक सफाई या स्वच्छता प्रणाली सेवा।

- हॉस्पिटल या मेडिसिन में सेवाओं से रिलेटेड।

- पेंशन व बीमा से रिलेटेड सेवाएं।