फेक करेंसी का आरोप

अब्दुल हकीम, मोहम्मद अली, सतयवीर, शीशपाल और अशरफ अली को 8 दिसंबर 2010 को फेक करेंसी के आरोप में थाना अलीगंज से अरेस्ट किया गया था। सभी को एसटी 125,126,127,128 और 489 आईपीसी की धाराओं के तहत अरेस्ट कर जेल भेजा गया था.  मंडे को पाचों की अपर सत्र न्यायाधीश थर्ड अशोक कुमार अवस्थी के यहां पेशी पर ले जाया गया। उनकी अबसेंस में सभी कैदियों को अपर सत्र न्यायाधीश थर्ड मुर्शरफ हुसैन की कोर्ट में पेश किया गया।

जहरीली दवा खा ली

कोर्ट में पेश होने से पहले पांचों आरोपियों ने प्रतिबंधित दवाओं एलप्रैक्स और एटीवेन को खा लिया और कोर्ट में एक लेटर पेश किया। पुलिस के मुताबिक इसमें सुसाइड की बात कही गई थी। सभी को आनन फानन में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। वहां उनकी हालत में कोई सुधार न होने के चलते सभी को राममूर्ति हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया। घटना का जायजा लेने डीआईजी राजकुमार, सीओ सिटी फस्र्ट राजकुमार सहित कई पुलिस अधिकारी डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में पहुंचे।

क्या कहा कैदियों ने?

कैदियों ने जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। सभी का कहना था कि जेल में उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। हर दिन उनके साथ बुरा बर्ताव होता है। इससे जलालत से तंग आकर उन्होंने ऐसा कदम उठाया है। हर दिन के जलालत से अच्छा है कि हम मर जाएं।

सवाल दर सवाल

-किसने उपलब्ध कराए कैदियों को जहरीली दवाएं?

-क्यों जेल प्रशासन के रवैए से नाराज थे कैदी?

-क्यों नहीं की गई कैदियों की जांच?

-कैदियों ने अपने सुसाइड लेटर में क्या लिखा जेल प्रशासन के खिलाफ?

-जेल के किन अधिकारियों के नाम कैदियों ने लिखा है लेटर?

-क्या जेल में इतनी हुई प्रताडऩा कि जीने की हसरत ही खो बैठे कैदी?

कैदियों के नाम

1    अशरफ अली निवासी धनौरा मंडी जेपी नगर

2    शीशपाल निवासी डिस्ट्रिक्ट मुरादाबाद

3    सत्यवीर सिंह निवासी मैनाढेर डिस्ट्रिक्ट मुरादाबाद

4    अब्दुल हकीम निवासी धनौरा मंडी थाना

5    मोहम्मद अली शेर निवासी बिजनौर थाना सफीपुर

क्या कहा अधिकारियों ने?

डीआईजी राजकुमार ने कहा कि पुलिस जांच कर रही है कि कैदियों के पास प्यॉजन कहां से आया। साथ ही कैदियों द्वारा लगाए आरोपों को भी वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाएगा। वहीं सेंट्रल जेल के अधीक्षक पीएन पांडेय ने कहा कि कोर्ट पेशी पर ले जाने के लिए कारागार से एसआई राजवीर को पांचों आरोपी सही सलामत सौंपे गए थे। इसके बाबत उनसे सर्टिफिकेट भी लिए गए थे। ये अब लोकल पुलिस का मैटर है। प्यॅजन कहां से आया और उन्होंने क्या और कब खाया ये जांच का विषय है। जिसे कंर्सन अथारिटी ही जांच करेगी। उधर देर शाम डीआईजी ने जांच के आदेश दे दिए हैं। जिन पुलिस कर्मियों की कस्टडी में ये सभी आरोपी थे उन सभी पुलिस कर्मियों के खिलाफ जांच बैठा दी गई है। उधर आरआई ने बताया कि आरोपियों को ले जाने वाले पुलिस कर्मियों की डिटेल एसपी क्राइम को भेज दी गई है।

जहरीली दवाएं कहां से आईं ?

कैदियों के सुसाइड अटैंप्ट घटना से सबसे बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि आखिर कैदियों के पास के पास जहरीली दवाएं कहां से आईं। वो भी वहां जहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रहती है। जानकारी के अनुसार पेशी के पहले सभी कैदियों ने एलप्रैक्स और एटीवेन नामक दवाइयों का सेवन किया था। यही वैसी दवाइयां हैं जो बिना डॉक्टर के प्रिसकेप्शन के कोई दुकानदार नहीं दे सकता है। डॉक्टर सुदीप सरन के मुताबिक एलप्रैक्स और एटीवेन दोनों ही नींद की दवाएं हैं। एक निश्चित क्वांटिटी से ज्यादा लेने पर दोनों के ही साइड इफैक्ट होते हैं। ज्यादा मात्रा में इन दवाओं को लेने वाला व्यक्ति गहरी नींद में चला जाता है। इसके बाद बेहोशी की अवस्था में ब्लड प्रेशर के गिरने के बाद खतरा और बढ़ जाता है। वेलियम, नाइट्राजियाम सहित ये दोनों दवाएं नारकोटिक्स श्रेणी में आती हैं। जिन्हें बिना डॉक्टरी सलाह के मेडिकल स्टोर से नहीं दिया जा सकता। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि पांचों कैदियों के पास ये दवाएं आईं कहां से?

किसने उपलब्ध कराई दवाएं ?

दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन कैदियों ने पुलिस बल की मौजूदगी में प्रतिबंधित दवाओं का सेवन कब किया और किसने इन्हें लाकर ये दवाइयां दीं। जब कैदी दवाओं को ले रहे थे तब पुलिस वाले क्या कर रहे थे। कैदी अशरफ अली के मुताबिक पांचों कैदियों को ये दवाएं जेल से छूटे एक युवक ने दो हजार रुपयों में कोर्ट परिसर में मुहैया कराई थी। उसने बताया कि काफी समय पहले एक डॉक्टर ने उन्हें बताया था कि अगर एलप्रैक्स और एटीवेन की 20 गोलियां ले लोगे तो नहीं बचोगे। इसीलिए हमने ये दवाइयां खा लीं।

क्यों नहीं लिया सबक ?

इससे पहले अतुल गंगवार नाम के एक कैदी ने भी 5 जून 2011 को पेशी के दौरान कोर्ट परिसर में सुसाइड कर लिया था। इस मामले में डीआईजी ने लॉकअप इंचार्ज को सस्पेंड कर दिया था। इस सनसनीखेज मामले के बाद भी कोर्ट परिसर में कैदियों के साथ कितनी छूट रहती है यह बात किसी से छिपी नहीं है। कई बार सवाल उठाने के बावजूद भी कोर्ट परिसर के हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। अब एक साथ पांच कैदियों के सुसाइड अटैंप्ड ने कई और सवाल पैदा कर दिए हैं।

क्यों उठाया ऐसा कदम ?

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इन कैदियों के सामने ऐसी क्या मजबूरियां रहीं कि इन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया। अपने सुसाइड नोट में इन कैदियों ने जेल की जिंदगी का जिक्र किया है। साथ ही लेट न्यायिक व्यवस्था के प्रति भी  इन्होंने अपनी बात लिखी है। एसआई बीएस राठी ने बताया कि कैदियों ने अपनी सुुसाइड नोट में कहा है कि जेल में उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। उन्होंने लिखा है कि वे सभी जाली नोटों के मामले में फतेहगंज में बंद हुए। रिहाई के लिए उन्होंने हाईकोर्ट में गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने जल्द सुनवाई का आदेश दिया, लेकिन मामले की सुनवाई नहीं हो रही है.  

आरोप बेबुनियाद हैं

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट के दौरान अशरफ अली ने जेल प्रशासन पर आरोप लगाया कि अपनी बात कहने पर जेल प्रशासन द्वारा पिटाई की जाती है। उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। उधर, सेंट्रल जेल के अधीक्षक पीएन पांडेय ने अशरफ के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अगर उन्हें किसी बात की जेल में परेशानी थी तो उन्हें कोर्ट में पेशी के दौरान या ह्यूमन राइट डिपार्टमेंट में अपनी कंप्लेन को दर्ज कराना चाहिए था। उन्होंने बताया कि जेल में किसी से कोई दु्रव्र्यवहार नहीं किया जाता. 

न्याय की आस हुई खत्म

कैदियों के सामुहिक आत्महत्या के कदम से उनके परिजन भी स्तब्ध हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पंहुचे अब्दुल हकीम के पिता अब्दुल अजीम ने बताया कि वो जेपी नगर के मंडी धौरा के रहने वाले हैं। अब्दुल हकीम खेती का काम करते हैं। अब्दुल हकीम के चार बच्चे हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें उनके बच्चों से पेशी के बाद से नहीं मिलने दिया जा रहा है। लंबे समय से मामला कोर्ट में लंबित है, जिससे सभी परेशान हैं। न्याय की आस लंबी होती जा रही है। हो सकता है अवसाद में आकर इन्होंने आत्महत्या की कोशिश की। वहीं दूसरी ओर हॉस्पिटल पहुंचे सत्यवीर के पिता भूरे सिंह डिस्ट्रिक्ट मुरादाबाद के थाना मैनेढर के ग्राम खुर्रमनगर के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने हाईकोर्ट में अपने बच्चे की रिहाई के लिए याचिका दाखिल की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि वकिलों ने बताया था कि सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर ज्यादा खर्चा आएगा इसलिए वहां अपील नहीं की। उन्होंने बताया कि हम दोनों अपने बच्चों की कोर्ट की तारीख पर हर बार आते हैं। जब उनके बच्चों को लगा कि उनको न्याय नहीं मिलेगा तभी उन्होंने सुसाइड अटैंप्ट किया होगा। भूरे सिंह ने बताया कि उनका पूरा पैसा बेटे को छुड़वाने में खर्च हो गया है। जिसके चलते वे आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। आज भी वे बड़ी उम्मीद के साथ कोर्ट आए थे लेकिन उनकी आशाओं पर पानी फिर गया।

बरेली में पांच कैदियों ने जहरीला पदार्थ खाया है वह घटना कारागर के अंदर की नहीं है। इन कैदियों ने पेशी के वक्त प्यॉजन खाया है इसकी जिम्मेदारी लोकल पुलिस की है। हमारी जिम्मेदारी जेल परिसर की होती है। जहां तक जेल प्रशासन पर आरोप की बात है तो कैदी कुछ भी आरोप लगा सकते हैं। शिकायत करना है तो कोर्ट में करें।

-वीके गुप्ता, एडीजी जेल