-मेरठ, गाजीपुर, मथुरा और वाराणसी जेल में बंदियों की हो चुकी है हत्या

बंदियों के खून से जमीन लाल हो चुकी
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LUCKNOW : बागपत में माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की हत्या ने प्रदेश की जेलों के भीतर का हाल एक बार फिर सबके सामने ला दिया है। इस घटना ने यह भी साबित किया है कि अगर जेब ढीली की जाए तो जेल के भीतर कुछ भी ले जाना संभव है, फिर वो चाहे हथियार हो या फिर नशीला पदार्थ। हालांकि, यह पहला मामला नहीं जब जेल में किसी को मौत के घाट उतार दिया गया हो। इससे पहले मेरठ, गाजीपुर, मथुरा और वाराणसी जेल में भी बंदियों के खून से जमीन लाल हो चुकी है। लेकिन, जेल विभाग ने इससे कोई सबक नहीं लिया और सनसनीखेज वारदातों का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

सुरक्षा के दावे हवा-हवाई
सोमवार सुबह बागपत जेल में मौत के घाट उतारे गए मुन्ना बजरंगी का शूटर अज्जू त्रिपाठी भी ठीक इसी तरह वाराणसी जेल में मारा गया था। दरअसल, वर्ष 2005 की 13 मई को शूटर अज्जू त्रिपाठी वाराणसी जेल में बंद था। जहां साथ में बंद अपराधी संतोष गुप्ता ने अज्जू को पिस्टल से ताबड़तोड़ फायरिंग कर मौत के घाट उतार दिया था। वहीं, 18 अप्रैल को मेरठ जेल में अधिकारियों द्वारा तलाशी लेने के दौरान विवाद हो गया था। इससे नाराज बंदियों ने उग्र प्रदर्शन कर जेल अधिकारियों व कर्मियों पर हमला बोल दिया। मदद के लिये पुलिस को बुलाया गया। हालात काबू में करने के लिये पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी, जिसमें एक बंदी मेहरादीन उर्फ बाबू खां की मौके पर और घटना के छह दिन बाद 24 अप्रैल को इलाज के दौरान गंभीर रूप से घायल सोमवीर की मौत हो गई थी। इस घटना ने जेल की सुरक्षा के दावों की कलई खोलकर रख दी थी।

जेल तो जेल बाहर भी नहीं छोड़ा
इसी तरह गाजीपुर जिला जेल में भी 14 फरवरी 2014 को बंदियों व जेलकर्मियों के बीच खूनी संघर्ष हो गया। हालात काबू में करने के लिये फायरिंग करनी पड़ी जिसमें एक बंदी विश्वनाथ प्रजापति की मौत हो गई थी। वहीं, मथुरा जेल में 17 जनवरी 2015 को बंदियों के दो गुटों मे ंसंघर्ष हुआ। जिसमें एक बंदी ने रिवॉल्वर से दूसरे बंदी पिंटू उर्फ अक्षय सोलंकी की हत्या कर दी। घटना में घायल दूसरे बंदी राजेश टोटा को आगरा मेडिकल ले जाते समय बदमाशों ने रास्ते में हमला कर उसकी हत्या कर दी थी। इस घटना से हड़कंप मच गया था और पुलिस व जेल प्रशासन की जमकर किरकिरी हुई थी।