सिगरेट, पानी और गुटखा मंगवाते हैं

कॉलेज के बाहर ये बच्चे भीख मांगने के लिए आते हैं, तो वहां के स्टूडेंट्स से ये घुल-मिल जाते हैं। तब स्टूडेंट्स को शॉप तक न जाने पड़े तो ये उन बच्चों से सिगरेट, पानी की बोतल और गुटखा मंगवाते है। जो रुपए पांच रुपए तक बचते हैं वो इनको रखने के लिए दे दिया जाता है।

लड़कियों को भिजवाए जाते हैं गिफ्ट्स

लड़के जब किसी लड़की से फ्रेंडशिप करना चाहते हैं तो भी इन कॉलेजेज के भीखारी बच्चे काफी बड़ा रोल निभाते हैं। लड़के अगर डरते हैं तो ये आसानी से लड़कियों को उस लड़के के नाम का गिफ्ट देते हैं। अगर कोई बात बढ़ती है तो ये बच्चे गायब हो जाते हैं कुछ दिन के लिए और मामला तब तक शांत हो जाता है।

चलाया था अभियान

कॉलेजेज पर जब आए दिन कुछ न कुछ बवाल होता था। जिसके चलते कॉलेजेज ने कंप्लेन की थी 2002 में तब उस टाइम के एसएसपी वीके मौर्य ने इनको कॉलेजेज से दूर रखने और इनको पढ़ाने के लिए एक एनजीओ से बात की थी और अभियान भी चलाया था। कुछ दिन तक चला, लेकिन आज की स्थिति फिर वैसी ही हो गई है। पांच सालों से सन्नाटा महिला कल्याण डिपार्टमेंट की देखरेख में संचालित होने वाला राजकीय भिक्षुक गृह यमुनापार के कटरा वजीर खां एरिया में है। लंबे-चौड़े कैंपस में संचालित इस संस्थान में कभी सौ-सौ भिखारियों को निरुद्ध रखा जाता था। लेकिन, अब यहां सन्नाटा पसरा हुआ है। यह सीन आजकल से नहीं, बल्कि पिछले पांच साल से है।

अब नहीं बचा कोई काम

डिपार्टमेंट की ओर से कभी यहां पूरा स्टाफ रहता था। इसमें भिखारियों से संबंधित रिकॉर्ड मेंटेन करने के लिए कई कर्मचारी तैनात रहते थे। आज यहां केवल चतुर्थ श्रेणी का एक कर्मचारी देवी प्रसाद अपनी ड्यूटी पर उसी तरह तैनात है। लेकिन, अब यहां भिखारी न होने की वजह से कोई काम नहीं बचा है।

गिरासू है बिल्डिंग

इस बिल्डिंग के हालात भी अच्छे नहीं हैं। यह भी अब जर्जर हो चली है। कैम्पस की छत कभी भी नीचे आ सकती है। हालांकि, ये बिल्डिंग महिला कल्याण डिपार्टमेंट के पास किराए पर है। इसको लेकर कोर्ट में केस भी चला। संस्था के कर्मचारी देवी प्रसाद का कहना है कि कोर्ट ने अब इस कैंपस को खाली करने का ऑर्डर दे दिया है। इसलिए डिपार्टमेंट अब भिक्षुक गृह के लिए नई जगह तलाश रहा है। कैदी सा है जीवन

पचकुइयां कब्रस्तिान मृतकों की आरामगाह है। मगर, ये बेसहारा कब्रस्तिान की जगह पर रहने लगे हैं.  ये लोग दीवारों को फांद कर बाहर को जाते हैं। महिलाओं और बुजर्गों को निकलने में परेशानी होती है।

बोले ये बेघर

महरूनिशा ने बताया कि वो फैजाबाद के पास गांव की रहने वाली है। पति का इन्तकाल हो गया है। पांच बच्चों में तीन बेटियां हैं। घर है नहीं बेटियां नानी के पास गांव में ही रहती हैं। उनकी शादी करनी है। महरूनिशा ने कहा छोटे दो बच्चों को लेकर में पचकुइयां कब्रस्तिान में दस सालों से रह रही हूं। दोनों बच्चों को लेकर बाजार में भीख मांगने जाती हूं। जुमेरात(थर्सडे) को दरगाह व जुमा क्र(फ्राइडे) के दिन मस्जिद पर भीख मांगती हूं। भीख में जो रुपए आते हैं। उसमें से रोजाना पचास रुपए बचाकर बेटियों की शादी के लिए जमा कर रही हूं.  तीन भाषाओं में भीख

ताजमहल के गेट पर पिछले सात साल से जीवनलाल हर विदेशी पर नजर गड़ाए रहते हैं। अपनी जमात के अन्य लोगों से थोड़ा जुदा रहने वाले जीवनलाल विदेशियों की टोली देखते ही उनके करीब पहुंच जाते हैं। नजर और समझ के पारखी ये दूर से अंदाजा लगा लेते हैं कि वे किस कंट्री से हैं। पास पहुंचते ही वे उनकी भाषा में ही मदद की गुहार लगा बैठते हैं। इंग्लिश, फ्रेंच और जर्मन तीनों में वे विदेशियों से बात कर लेते हैं।

दिन के साथ तरीका भी नया

सुबह होते ही शुरू होने वाला भीख का कारोबार ऑर्गनाइज होता है सिटी से सटे इलाकों की बस्तियों से। शहर के अंदर के स्लम एरिया से भी भिखारियों की फौज अलग-अलग जगहों पर रहमदिल की तलाश में निकलती है। वह भी मासूमियत और लोगों की आस्था के हथियार के साथ।

हर दिन आस्था के नाम

भीख के कारोबार से जुड़े लोग भी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि दूसरों की जेब से कैसे पैसे ढीले कराए जा सकते हैं। कभी शनिदेव तो कभी देवी मां की तस्वीर। मंगलवार को हनुमान मंदिर तो गुरुवार को साईं मंदिर और दरगाह पर। रेड लाइट और चौक चौराहों पर भी खास दिनों की इन तरकीबों के अलावा गाड़ी पर कपड़ा मारने के तरीके से ये लोगों को तरस खाने पर मजबूर कर ही देते हैं। ये हैं रेट 

 तक जिस मासूमियत को सामने रख ये लोग भीख मांगते हैं, वे भी बस्तियों से किराए पर लिए जाते हैं। हर बच्चे का बाकायदा अपना रेट फिक्स होता है। महज 50 रुपए से लेकर 100 रुपए तक में बच्चे को किराये पर लिया जा सकता है। भीख मांगने का धंधा करने वाले परिवारों में ही किसी महिला के बीमार होने पर वह अपने बच्चे को ही किराए पर दे देती है। ताकि कुछ न कुछ कमाई उस दिन भी उसके घर आ सके। मासूम को गोद में लेकर धंधे में ज्यादा कमाई के फंडे को देखते हुए अपनी ही बस्ती की कुछ महिलाओं को रकम का लालच देकर बच्चों को किराए पर भी लाया जाता है। फिर कुछ प्रॉब्लम इस धंधे में संलिप्त 'आंटियांÓ भी सॉल्व कर देती हैं। पेरेंट्स भी इनको किराए पर देने में कोई संकोच नहीं करते हैं। जिन आंटी के पीछा करने के लिए नरायच तक आई नेक्स्ट टीम पहुंची, वहीं पर लोगों ने यह सब कहानी बयां की। हालांकि कैमरे के सामने कुछ भी बोलने को वे तैयार नहीं हुए। मीडिया से होने की भनक लगते ही वे लोग कन्नी काटने लगे।

नशे में मासूम  

बच्चा रोए नहीं, इसका भी पूरा ख्याल रखा जाता है। कई बच्चों को इनके पेरेंट्स ही अफीम और नशे की अन्य वस्तुएं तक दे देते हैं, ताकि बच्चा बेसुध रहे और धंधे में किसी प्रकार की अड़चन न आए। इससे इन भिखारियों का भी काम आसान हो जाता है। फिर शुरू होता है इन बच्चों की मासूमियत को आगे रख भीख मांगने का धंधा। दिन भर भीख मांगने के बाद इन बच्चों को उनके पेरेंट्स के हवाले कर दिया जाता है।