कुछ भारतीय परिवारों का कहना है कि वो कई सालों से शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाओं को झेल रहें है और स्थानीय अधिकारी इसे रोक पाने में विफल साबित हुए है।

साल 1960 के दशक में पंजाब के कई परिवार भारत छोड़कर बेलफास्ट में बस गए और छोटे-मोटे व्यापार शुरू किए, जिनमें स्थानीय लोगों को नौकरी पर रखा गया।

लेकिन पिछले कुछ सालों में केरल और तमिलनाडु से शहर में आए कुछ भारतीय नागरिकों को स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में नौकरियों पर रख लिए गए। इस वजह से नौकरी पाने के लिए पहले से ही जूझ रहे स्थानीय लोगों में बाहर से आए लोगों के प्रति गुस्सा भी बढ़ता गया।

मूल रूप से केरल निवासी कुन्यमान आयोचेन बेलफास्ट में अपनी बीवी और दो बच्चों के साथ पिछले आठ साल से रह रहें हैं। शहर में उनके आने के कुछ ही महीनों बाद उन्होंने घर खरीद लिया, लेकिन कुछ हफ्तों में ही उनके साथ नस्लीय हिंसा शुरू हो गई।

बीबीसी संवाददाता संजीव बुट्टो को उन्होंने बताया, “कुछ लोगों ने हमारे घर को निशाना बनाया, हम पर जुल्म किए गए। मुझे यकीन है कि ये एक नस्ली हिंसा है क्योंकि हमारे पड़ोस में किसी को नुकसान नहीं पहुचाया गया। दवाइयों के बिना मै सो भी नहीं पाता हूँ। पुलिस ने भी तफ्तीश के बाद हमें इलाके से जाने को कह दिया.”

नस्ली हिंसा

कुन्यमान आयोचेन बेलफास्ट में कथित नस्ली हिंसा के अकेले शिकार नहीं हैं। पांच साल पहले कोलकाता से बेलफास्ट आए 55 वर्षीय संतोष चौधरी मारपीट का शिकार होने और धमकियां मिलने के बाद रात को घर से निकलमें में डरते हैं।

उन्होंने कहा, “तीन लड़कों ने मुझ पर हमला कर दिया, वो पर्यटकों के बारे में भला-बुरा भी कह रहें थे। उनमें से एक लड़के ने छूरा निकाल लिया और मुझ पर हमला कर दिया। मेरे जबड़ों पर लात मारे गए.”

इस मामले पर उत्तरी बेलफास्ट के पुलिस प्रमुख और चीफ इंस्पेक्टर एंड्रयू फ्रीबर्न का कहना है, “हमें इस बड़ी समस्या के बारे में पता है, लेकिन मैं ये कहूंगा कि इस बारे में पूरे तथ्य पुलिस के पास नहीं पहुँचते। हमें सिर्फ वही पता है जो लोग हमें बताते हैं.”

बेलफास्ट में तेजी से फल-फूल रहे भारतीय समुदाय का कहना है कि अगर पुलिस ऐसी घटनाओं को वाकई में रोकना चाहती है तो उन्हें वेल्फास्ट में रह रहे भारतीयों से बातचीत करनी चाहिए। भारतीय समुदाय को डर है कि वो समय दूर नहीं है जब भारतीयों पर हो रहे हमले जानलेवा साबित होने लगे।

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