बेली हॉस्पिटल में लगी फेको यूनिट का मरीजों को नही मिल पा रहा लाभ

डॉक्टरों की कमी से नही हो पा रही लग्जीरियस सर्जरी

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ALLAHABAD: सरकार मरीजों की सुविधा के लिए तमाम जरूरी कदम उठाती है लेकिन सिस्टम उनका धुआं निकालने में कोई कसर नही छोड़ता। बेली हॉस्पिटल में लगी फेको सर्जरी यूनिट के यही हाल हैं। मशीन तो लगा दी गई है लेकिन अभी तक प्रॉपरली सर्जरी शुरू नही हो सकी है। ट्रेंड डॉक्टरों की कमी से यह हालात पैदा हुए हैं। मजबूरी में मोतियाबिंद की नार्मल सर्जरी की जा रही है।

एक माह में महज दस सर्जरी

नवंबर-दिसंबर में बेली हॉस्पिटल में जनता की जबरदस्त मांग पर सरकार ने फेको सर्जरी की मशीन लगवाई थी। इसकी लागत 15 से 20 लाख रुपए के बीच है। मशीन तो लग गई लेकिन हॉस्पिटल में ट्रेंड स्टाफ की नियुक्ति नही की जा सकी। एक डॉक्टर को ट्रेनिंग दी गई लेकिन फिर उनका ट्रांसफर कर दिया गया। इसके चलते मरीजों को मोतियाबिंद की लग्जीरियस सर्जरी का लाभ नही मिल सका। यही कारण है कि पिछले एक माह में महज दस फेको सर्जरी की जा सकी हैं, जो काफी कम है।

रोजाना होती है 18 से 20 सर्जरी

अक्टूबर से लेकर मार्च के बीच सरकारी हॉस्पिटल्स में मोतियाबिंद की सर्जरी भारी संख्या में होती है। एक दिन में 18 से 20 सर्जरी होना आम बात है। कई मरीज होते हैं जो फेको सर्जरी की मांग करते हैं। क्योंकि, सर्जरी सेफ है और बिना किसी चीरे या टांके के मरीज की आंखों में लेंस लगा दिया जाता है। शहर के प्राइवेट हॉस्पिटल्स में फेको सर्जरी के दस हजार से बीस हजार के बीच चार्जेस लिए जाते हैं। वहीं सरकारी हॉस्पिटल में यह सर्जरी नि:शुल्क उपलब्ध कराए जाने के निर्देश हैं।

यहां डॉक्टर हैं तो लेंस नही

कॉल्विन हॉस्पिटल में फेको सर्जरी होती है और यहां डॉक्टर भी उपलब्ध हैं लेकिन सरकार लेंस नही उपलब्ध करा रही है। यहां मरीजों को बाजार से लेंस खरीदना पड़ रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि नार्मल सर्जरी के लेंस तो सरकार उपलब्ध कराती है लेकिन फेको के लेंस नही दिए जाते हैं। इसलिए मरीजों को इस बारे में जानकारी दे दी जाती है। हैसियत के हिसाब से मरीज अपना आपरेशन कराते हैं।

कुछ नए डॉक्टरों को ट्रेनिंग के लिए भेजा जा रहा है। इसके बाद मरीजों को फेको सर्जरी की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। यह परेशानी जल्द दूर हो जाएगी।

डॉ। आरएस ठाकुर,

अधीक्षक, बेली हॉस्पिटल