आप कह सकते हैं कि मुझसे क्यों? लेकिन आप अगर तंज़ानिया में जन्मे, भारत में पले-बढ़े और अमरीका में पढ़े भारतीय- बेन गोम्स हैं तो आप यह नहीं कह सकेंगे.

बेन गोम्स गूगल के वाइस प्रेसिडेंट हैं और गूगल में लोग जो भी खोजा जाता है, उसके सही जवाब लोगों को मिलें उसके लिए ज़िम्मेदार भी.

जवाब जल्द से जल्द मिलें और डेस्कटॉप, फ़ोन या टैबलेट- जहाँ भी आप सर्च करें वहाँ ठीक ढंग से दिखें.

बल्कि अब तो ये सर्च बोलकर भी किए जा रहे हैं. तो इन सबकी ज़िम्मेदारी है बेन के पास.

गूगल के लिए सर्च ही दुधारू गाय है और पिछले साल गूगल ने जो 50 अरब डॉलर की कमाई की, उसमें से बड़ा हिस्सा इसी से आया.

गोम्स कहते हैं, “ये गूगल के यूज़र के साथ एक तरह से लगातार बातचीत जैसा है जहाँ यह जानने की कोशिश होती रहती है कि वह चाहता क्या है.”

गोम्स यूज़र के साथ बातचीत करने की कोशिश करते हैं मगर ये मौक़ा थोड़ा अलग था जहाँ हम उनसे बातचीत करने बैठे 45 साल के, लेकिन काफ़ी युवा दिखने वाले गोम्स के कंपनी मुख्यालय में.

माउंट व्यू में दफ़्तर

बेन गोम्स: गूगल सर्च को बेहतर बनाने में लगा भारतीय

गूगल ने पिछले दिनों यूट्यूब को खरीद लिया है.

करीने से बना यह ऑफ़िस है कैलिफ़ोर्निया के माउंट व्यू में, जो एक अलग दुनिया की तरह है.

सर्च के इस मक्का में गोम्स बिल्डिंग नंबर-43 में काम करते हैं, जहाँ उनके कमरे में उनके साथ चार और टॉप इंजीनियर बैठते हैं.

गूगल सर्च

-गूगल में हर महीने 100 अरब सर्च होते हैं, यानी हर दिन तीन अरब से भी ज़्यादा.

-लगातार बदल रहे वेब में ठीक जवाब देने के लिए गूगल को हर रोज़ 20 अरब पन्ने खँगालने पड़ते हैं.-गूगल अब तक 60 खरब वेब पते पा चुका है. 2008 में आँकड़ा सिर्फ़ एक खरब का था.

-गूगल ने लगभग 23 करोड़ डोमेन के पेजों की जानकारी दर्ज की है.

-हर रोज़ लगभग 15 फ़ीसदी सर्च बिल्कुल नए होते हैं. यानी ऐसे सवाल जो पहले कभी नहीं पूछे गए.

कमरे में चीज़ें बेतरतीब हैं. काग़ज़ बिखरे हैं, उनके टेबल पर एक हेडफ़ोन पड़ा है और साथ में लगे व्हाइट बोर्ड पर कुछ नंबर लिखे हैं. उनके कंप्यूटर के पास की दीवार पर रूसी कलाकार वासिली कान्दिन्स्की के पोस्टर टंगे हैं.

यहीं से गोम्स और उनकी टीम वर्ल्ड वाइड वेब में खोजबीन में लगी रहती है, जिससे दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदग़ी का इतना बड़ा हिस्सा बन चुका है.

वह कहते हैं, “जब मैंने 1999 में गूगल में काम शुरू किया था, तो सर्च एक तरह से किसी दस्तावेज़ में से कुछ शब्द ढूँढ़ने जैसा ही था. फिर हमने यह समझने की कोशिश की कि आप जिन शब्दों से सर्च कर रहे हैं उनके ज़रिए जानना क्या चाहते हैं. इस तरह वो देने की कोशिश हुई जो आपको चाहिए.”

इंटरनेट पर सामग्री हर रोज़ बढ़ रही है और उसमें हर रोज़ लगभग 20 अरब पेजों में लोगों के सवालों के जवाब खँगाले जाते हैं.

कंपनी में 44 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं और उनमें से अधिकतर सर्च के काम में लगी फ़ौज का हिस्सा हैं.

सर्च के जवाब आपकी ज़रूरत पूरा करने वाले हों और वे मल्टीमीडिया भी हों यानी नतीजों में तस्वीरों से लेकर यूट्यूब के वीडियो भी शामिल हों, बेन की ये फ़ौज यही सुनिश्चित करने में लगी रहती है.

नॉलेज ग्राफ़

गूगल के एक कर्मचारी ने बताया कि अब शब्दों के गहरे अर्थ समझने की कोशिश की जाती है.

यानी सर्च किए गए शब्द या वाक्यांश को उसी रूप में न ढूँढ़ा जाए बल्कि दरअसल उसके ज़रिए क्या खोजा जा रहा है, यह समझने की कोशिश हो रही है.

बेन ने काफ़ी गर्व के साथ हमें नॉलेज ग्राफ़ के बारे में बताया जो पिछले साल शुरू किया गया था. इसके ज़रिए सर्च को लोगों की ज़िंदग़ी से जोड़ने की कोशिश की गई.

"अब सर्च मोबाइल फ़ोन या टैबलेट पर केंद्रित हो रहा है. अब चूँकि उसमें अच्छा माइक्रोफ़ोन और टच स्क्रीन है इसलिए मौक़ा उसका फ़ायदा उठाने का है. हमें लगा कि अब सर्च ठीक वैसा होना चाहिए जैसे आप किसी व्यक्ति से बात करते हैं और कोई सवाल पूछते हैं"

-बेन गोम्स, वाइस प्रेसिडेंट, गूगल

वह बताते हैं, “असल दुनिया में चीज़ें कैसे एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, गूगल यह दिखाने की कोशिश करता है. अब अगर आप कैलिफ़ोर्निया में रहकर ‘किंग’ शब्द सर्च करते हैं तो आपको नतीजों में लॉस एंजेलेस की एक हॉकी टीम, सैक्रामेंटो की एक बास्केटबॉल टीम और किंग्स नाम से ही प्रसारित होने वाले एक टीवी शो के बारे में पता चलेगा. असल दुनिया में एक ही शब्द के ये अलग-अलग अर्थ हैं. नॉलेज ग्राफ़ इसे समझता है और उसी के मुताबिक़ नतीजे दिखाता है. हम समझते हैं कि लोगों की रुचि किसमें है और वे क्या ढूँढ़ रहे हैं.”

इसकी वजह से गूगल पर हर महीने लगभग 100 अरब सर्च होते हैं यानी हर रोज़ लगभग तीन अरब सर्च.

इनमें से हर रोज़ लगभग 15 फ़ीसदी सर्च के सवाल नए होते हैं- जिनके जवाब गूगल ने पहले कभी नहीं दिए होंगे.

बेन और उनकी टीम ने पिछले साल लगभग 70 हज़ार प्रयोग किए जिससे सर्च को और बेहतर किया जा सके. इसके बाद उन लोगों ने लगभग 1,000 बदलाव किए.

बेन गोम्स जब सन माइक्रोसिस्टम में जावा प्रोग्रामिंग पर काम करने के बाद 1999 में गूगल की टीम में शामिल हुए थे तब कुछ सर्च के नतीजे आने में 20 सेकेंड तक का समय लग जाता था.

लेकिन आज जब ख़ुद मैंने बेन गोम्स का नाम गूगल में डालकर ढूँढ़ा तो 0.28 सेकेंड के भीतर लगभग 1,90,00,000 नतीजे दिखा दिए.

हालांकि गूगल में बेन गोम्स का यह सर्च शायद ये नहीं बताएगा कि जब वह बैंगलोर में बड़े हो रहे थे तो शुरू में कंप्यूटर से ज़्यादा उनकी रुचि रसायन विज्ञान में थी.

वह बताते हैं कि यह रुचि इतनी थी कि एक दिन उन्होंने एक दुकान से सल्फ़्यूरिक एसिड ख़रीदा और ‘ख़ुशी-ख़ुशी उस एसिड की बोतल हाथ में हिलाते हुए मैं स्कूल तक चला गया था’.

सर्च का भविष्य

बेन के स्कूल के साथी भी कुछ कम नहीं निकले. उनके सहपाठी कृष्णा भारत ने बाद में गूगल न्यूज़ लॉन्च किया तो उसी स्कूल से निकले सबीर भाटिया ने हॉटमेल शुरू किया था.

बेन गोम्स: गूगल सर्च को बेहतर बनाने में लगा भारतीय

बेन गोम्स तंजानिया में पैदा हुए और भारत में पले बढ़े.

फिर साल 1983 में जब उनके भाई ने उन्हें एक छोटा माइक्रो कम्प्यूटर लाकर दिया तो युवा बेन उन लोगों के छोटे से ग्रुप में हो गए जो तब तक टेक्नॉलॉजी को दूर से ही सलाम करने वाले क्लिक करें देश में मशीनों में रुचि रखते थे.

बेन के पिता एक कार डिस्ट्रीब्यूटर थे और माँ स्कूल टीचर. वे 25 साल पहले अमरीका चले गए. वहाँ उन्होंने बर्कले विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी की.

और उसके बाद इंटरनेट का जाल फैल गया.

यही वह समय था, जब उनके सहपाठी कृष्णा भारत ने बेन को गूगल के बारे में बताया और उन्होंने तब तक अनजानी सी इस कंपनी में इसलिए काम शुरू किया क्योंकि यह लोगों को अच्छे सर्च के ज़रिए सामग्री उपलब्ध कराती थी.

गूगल के दफ़्तर गूगलप्लेक्स में एक भारतीय भोजन का भी केंद्र है. वहाँ खाने के लिए बढ़ने से पहले मैंने बेन से पूछा कि अब सर्च में अगला नया आयाम क्या होगा?

इस पर बेन बोले, “अब सर्च मोबाइल फ़ोन या टैबलेट पर केंद्रित हो रहा है. चुनौती यह है कि छोटी स्क्रीन पर टाइप करना मुश्किल है. अब चूँकि उसमें अच्छा माइक्रोफ़ोन और टच स्क्रीन है इसलिए मौक़ा उसका फ़ायदा उठाने का है. इसलिए हमें लगा कि अब सर्च ऐसा होना चाहिए जहाँ आप किसी व्यक्ति से बात करते हैं और कोई सवाल पूछते हैं.”

फिर आँखों में चमक के साथ बेन ने अपना एचटीसी का स्मार्टफ़ोन उठाया और गूगल सर्च ऐप पर धड़ाधड़ कई सवाल दाग़ दिए.

उन्होंने पूछा- भारत का राष्ट्रपति कौन है? एक महिला की आवाज़ में तुरंत जवाब मिला प्रणब मुखर्जी. गोम्स ने और खोदकर पूछा- उनकी उम्र क्या है? जवाब स्पष्ट आवाज़ में तुरंत मिला- वह 77 साल के हैं.

बेन मेरी ओर मुड़ते हुए बोले, “मज़ेदार है न? और अब यह और भी बेहतर और समझदार सर्च बनेगा.”

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