छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र : झारखंड लोधी क्षत्रिय महासभा और अखिल भारतीय छत्तीसगढ़ी युवा मंच की भोजली शोभा यात्रा शनिवार की शाम धूम धाम से निकली। शोभा यात्रा में महिलाएं और नव विवाहित महिलाएं अपने सिर में भोजली की टोकरियां उठा कर चल रही थी। लोधी क्षत्रिय महासभा की शोभा यात्रा सोनारी राम मंदिर मैदान से शुरू हुई। शोभा यात्रा का जगह-जगह समाज के लोगों ने स्वागत किया। शोभा यात्रा मुख्य मार्ग होते हुए कपाली घाट पहुंची जहां भोजली का विसर्जन नदी में किया गया। इसके बाद वे राम मंदिर मैदान आ कर भोजली एक दूसरे के कानों में लगा कर भोजली त्योहार की बधाई दी। इस मौके पर नव विवाहितों को समाज की ओर से गिफ्ट भेंट किया गया। शोभा यात्रा में मुख्य रूप से पन्ना सिंह जंघेल, दीनदयाल प्रसाद लोधी, सनत कुमार लोधी, ठाकुर सिंह लोधी, किशन लोधी, आर के सिंह लोधी, निर्मल कुमार लोधी आदि मौजूद रहे। वहीं अखिल भारतीय छत्तीसगढ़ी युवा मंच की ओर से निकाली गई भोजली शोभा यात्रा बालीचेला स्कूल के समीप से निकली और मुख्य मार्ग होते हुए कपाली घाट में समाप्त हुई। कपाली घाट में भोजली विसर्जन करने के बाद दोबारा वापस बालीचेला स्कूल के समीप शोभा यात्रा में शामिल लोग लौट आये। यह आयोजन दो दिनों से चल रहा है।

-वर्कर्स कॉलेज में हुआ संस्कृत दिवस समारोह का आयोजन

संस्कृत दिवस पर शनिवार को जमशेदपुर वर्कर्स महाविद्यालय में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसका शुभारंभ मुख्य अतिथि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो। सतीश चंद्र झा, स्पेशल गेस्ट कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा के मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो। बीएम मिश्र, सारस्वत अतिथि संस्कृत विभागाध्यक्ष, कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा के डॉ। एसएन पाण्डेय, वर्कर्स महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ। डीपी शुक्ल तथा संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ। प्रसून दत्त सिंह ने दीप प्रज्वलित कर किया। डॉ। झा ने संस्कृत भाषा के महत्व तथा उसकी वर्तमान स्थिति के सभी पक्षों पर विस्तार से प्रकाश डाला। संस्कृत देवभाषा नहीं अपितु मानवों की भाषा है। यह जीवनदायिनी भाषा है तथा इस भाषा के अस्तित्व से ही ईश्वर का अस्तित्व है। उन्होंने झारखंड की संस्कृति तथा यहां के लोक साहित्य को वैश्विक स्तर पर ले जाने और संस्कृत के वास्तविक उत्थान के लिए यहां संस्कृत अकादमी की स्थापना की जरूरत बताई। प्रो। बीएम मिश्र ने भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से संस्कृत के महत्व को प्रतिपादित किया। डॉ। सत्यनारायण पाण्डेय ने भी संस्कृत को सरलतम तरीके से प्रस्तुत करने पर बल दिया।