शहर के कई इलाकों में घरों से सुनाई देने लगे छठ पूजा के गीत

बाजार में भोजपुरी कलाकारों के छठ गीतों के सीडी-डीवीडी की मांग बढ़ी

ALLAHABAD: शहर के उन सभी इलाकों में जहां बिहार और पूर्वाचल के लोग रहते हैं छठ पूजा के गीतों की गूंज सुनाई देने लगी है। कहीं शारदा सिन्हा की आवाज में 'मोर जिया जाएला महंगा मुंगेर' की गूंज है तो कहीं छठ की महत्ता बताते देवी के बोल 'कांच ही बांस की बहंगिया, बहंगी लचकत जाए' समां बांध रहे हैं। 'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय', 'उगी है सुरुजदेव', 'हे छठी मइया तोहर महिमा अपार' आदि पारंपरिक लोक गीतों से पूरा माहौल छठमय हो गया है। 'मरबो रे सुगवा धनुष से, सुग्गा गिरे मुरुझाए' से लेकर 'दरसन दीन्ही अपार हे छठी मइया दरसन दीन्ही अपार' जैसे लोक गीत लोगों में आस्था के भाव भर रहे हैं।

एक लय में गाए जाते हैं छठ गीत

छठ व्रत से जुड़े गीतों के साथ एक खास बात यह है कि इनमें लय का उतार-चढ़ाव नहीं होता, ये एक ही लय में गाए जाते हैं। इनमें सूर्यदेव की महिमा का गुणगान किया जाता है। बाजार में शारदा सिन्हा, देवी, पवन सिंह, छैला बिहारी, अजीत कुमार अकेला, मालिनी अवस्थी, कल्पना, अनु दुबे आदि प्रमुख भोजपुरी गायकों के छठ गीतों की सीडी-डीवीडी की मांग बढ़ गई है। अनेक नए भोजपुरी गायकों के सीडी-डीवीडी भी बाजार में हैं। हालांकि इनके बाजार पर ऑनलाइन डाउनलोडिंग के चलन का प्रभाव पड़ा है, लेकिन फिर इसका बहुत असर नहीं है।

रची-बसी है माटी की खुशबू

खास बात यह भी है कि बदलते समय के साथ छठ गीतों में आधुनिकता जरूर आई है, लेकिन इनमें परंपरा जिंदा है तथा ये माटी की खुशबू से दूर नहीं हैं। देश-विदेश में रहने वाले पश्चिमी रंग में सच-बस गए लोग भी जब छठ में घर आते हैं तो इन गीतों में खो जाते हैं। गीत बजते ही लोगों के सिर श्रद्धा से झुक जाते हैं।