-बीएचयू कोर्ट की मीटिंग में महामना के पौत्र जस्टिस मालवीय के नाम पर बनी आम सहमति

-ढाई घंटे चली मीटिंग में 40 में से 38 मेंबर्स थे उपस्थित

VARANASI

बीएचयू के संस्थापक भारत रत्न पं। मदन मोहन मालवीय के पौत्र जस्टिस गिरधर मालवीय को बीएचयू का नया चांसलर बनाया गया है। बीएचयू कोर्ट की सोमवार को हुई मीटिंग में मेंबर्स ने जस्टिस मालवीय के नाम को अनुमोदित कर दिया। इनके पूर्व डॉ। कर्ण सिंह बीएचयू के चांसलर थे। नये चांसलर के नाम को राष्ट्रपति के पास अंतिम मुहर के लिए भेजा जायेगा। कोर्ट की मीटिंग अपने निर्धारित समय 11.00 बजे शुरू हो गयी थी जो ढाई घंटे चली। कोर्ट के सभी 40 मेंबर्स हैं लेकिन दो मेंबर्स राज्यसभा सांसद नीरज शेखर व आनंद राव अनुपस्थित रहे। मीटिंग में एग्जिक्यिूटिव काउंसिल के आठ मेंबर्स भी उपस्ि1थत थे।

अधिकतर मेंबर्स ने किया समर्थन

कोर्ट की मीटिंग में चांसलर पोस्ट के लिए 11 नाम आये थे। एक समय ऐसा लगा कि चुनाव कराना पड़ेगा। पर मीटिंग की अध्यक्षता कर रहे वीसी प्रो। राकेश भटनागर ने जब जस्टिस गिरधर मालवीय के नाम को प्रस्तावित किया तो अधिकतर सदस्यों ने उनके प्रस्ताव का समर्थन किया। इनमें बीएचयू के पूर्व वाइस चांसलर प्रो। पंजाब सिंह व जस्टिर मालवीय का नाम प्रमुख था। चर्चा के बाद अंतिम निर्णय जस्टिस मालवीय के पक्ष में हुआ। जस्टिस मालवीय वर्ष 1988 से 1998 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में बतौर जज कार्यरत रहे। जस्टिस गिरधर मालवीय ने गंगा के निर्मलीकरण को लेकर भी चर्चित आदेश दिया और मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कराई थी। इसके अलावा सामाजिक विषयों से भी गहरा जुड़ाव रहा है। मीटिंग में ही एसएस हॉस्पिटल के एमएस प्रो। वीएन मिश्र को बीएचयू कोर्ट का आमंत्रित सदस्य बनाया गया है।

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हर समस्या का होगा समाधान

जस्टिस गिरधर मालवीय से दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के रिपोर्टर ने फोन पर बातचीत की। उन्होंने बीएचयू को देश की महत्वपूर्ण यूनिवर्सिटी बताया। कहा कि बीएचयू तो हमेशा से भारत की सबसे महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों में से एक रहा है। यहां की महत्ता को और मजबूती से स्थापित करना हमारी प्राथमिकता रहेगी। बीएचयू की वर्तमान स्थिति के बारे में अभी कुछ भी कहना उचित नहीं होगा। अभी मैं देखूंगा कि मुझे क्या और कितना रोल अदा करना है। उसके बाद कुलपति जी के साथ मिलकर सभी समस्याओं का समाधान ढूंढ लिया जायेगा। बीएचयू के कण कण में महामना हैं। महामना बीएचयू के प्राण थे। उनके बिना बीएचयू जीवित नहीं रह सकता है। उनकी बात उनके विचार वहां के लोग चाहे पूर्ण रूप से स्वीकार करें या न करें लेकिन उनके विचार यहां शाश्वत रहेंगे और उनसे लोगों को मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा और लोग देश की सेवा में अग्रसर होते रहेंगे।