-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए 51 रुपये के पहले दानदाता थे पं। ब्रजनाथ व्यास

-पिता के पहले चंदे के रूप में मिले आशीर्वाद के बाद महामना ने शुरू किया था धन जुटाना

VARANASI

महामना पं। मदन मोहन मालवीय के आदर्शो उनके विचारों का मूर्त रूप है बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी। यह बात सभी को पता है कि महामना ने इस यूनिवर्सिटी को चंदा मांगकर बनवाया है। लेकिन यह कम लोगों को पता होगा कि यूनिवर्सिटी के लिए पहला चंदा महामना के पिता पं। ब्रजनाथ व्यास ने दिया था। भ्क् रुपये का पहला चंदानमोल था।

पिता की प्रेरणा से छोड़ी वकालत

क्90भ् में प्रयाग के कुंभ के अवसर पर आयोजित सनातन धर्म महासभा के अधिवेशन में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना के लिए विस्तृत कार्ययोजना तत्कालीन धर्माचार्यो की उपस्थिति में स्वीकृत हुई। उसके अगले साल क्90म् में बनारस में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता महान देशभक्त गोपाल कृष्ण गोखले जी ने की थी। उसके बाद पांच छह साल तक यूनिवर्सिटी बनाने की बात सिर्फ योजना तक ही सीमित रही। पर क्908-09 में मालवीय जी ने फिर से इस पर गंभीरता से अमल शुरू किया। तब तक महामना मालवीय की वकालत चल निकली थी। हाईकोर्ट में उनका नाम अच्छे वकीलों में शामिल था। एक दिन मालवीय जी के पिता ने उनसे कहा कि दो नावों में पांव रखकर नहीं चलना चाहिए। या तो वकालत करो या फिर यूनिवर्सिटी की स्थापना। मालवीय जी ने उसी दिन वकालत को छोड़ने का निर्णय किया। पिता ने उन्हें भ्क् रुपये का चंदा देकर यूनिवर्सिटी की स्थापना करने का आशीर्वाद दिया।

सहर्ष दिया चंदा

यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए राजा महाराजा से लेकर आम जनता ने महामना को अपने साम‌र्थ्य के अनुसार चंदा दिया। कुछ तो सहर्ष देते थे और कुछ ऐसे भी थे जो कुछ भी देने से इनकार कर देते थे। पर महामना के चातुर्य और विवेक के आगे नतमस्तक होकर उन्हें विश्वविद्यालय निर्माण के राष्ट्र आंदोलन में चंदा देकर जुड़ना ही पड़ता था। विश्वविद्यालय के निर्माण में ऐसे लोगों का भी योगदान रहा जो साम‌र्थ्यहीन थे। चंदा एकत्र करते हुए मुजफ्फरपुर में एक भिक्षाटन करने वाली महिला ने अपने दिन भर की कमाई इस यज्ञवेदी पर समर्पित किया। इसी तरह एक व्यक्ति ने बदन पर पड़ी फटी कमीज यूनिवर्सिटी के लिए दान कर दी। खास यह रहा कि इनको नीलाम करके भी सैकड़ों रुपये जुटाये गए।

दोगुने दाम में खरीदा कंगन

मुजफ्फरपुर के ही एक बंग भाषी महोदय ने यूनिवर्सिटी निर्माण के लिए पांच हजार रुपये दान दिया। उसके बाद दान लेने वाले उनके घर भी पहुंच गये। यहां उनकी पत्नी ने सोने के कंगन दान में दे दिए। दान देने वाले महाशय ने दोगुने दाम में उस कंगन को खरीदा और उसे अपनी पत्नी को भेंट किया। पर उनकी पत्नी ने फिर से वह कंगन मालवीय जी को संग्रहालय में रखने के लिए दे दिया।