- नील प्रथा के खिलाफ लड़ने वाले राजकुमार शुक्ल की याद में बना शौर्य स्तम्भ बदहाली में

- इसी बदहाल स्तंभ के नीचे हर दिन सैकड़ों बेरोजगार करते हैं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी

PATNA : बिहार का ऐतिहासिक जिला मोतीहारी। महात्मा गांधी के चंपारण आंदोलन की इस कर्मभूमि पर रविवार को चौथे चरण के लिए जमकर वोटिंग हुई। चारों तरफ चुनाव की लहर देखने को मिली। समय फ् बजे, अचानक कुछ युवाओं का एक समूह महिला थाने के पास बने गेट में प्रवेश करता है। चारों तरफ झाडि़यों के बीच में बना एक चबूतरा है। काले संगमरमर से एक स्तंभ सा बना हुआ है। इस स्तंभ के कुछ पत्थर भी गिर चुके हैं। ये युवा बैठकर एक दूसरे से जनरल नॉलेज के सवाल पूछने लगते हैं। हमें देख सभी शांत हो जाते हैं। आज चुनाव के दिन आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? तब तक जवाब मिला कि यह मोतीहारी का शौर्य स्तंभ है और हम इस शहर के बेरोजगार। हम दोनों की किस्मत एक जैसी है। इसे लापरवाही की झाडि़यों ने ढक लिया है और हमें बेरोजगारी ने। यहां प्राइवेट फैक्ट्री तो है नहीं केवल सरकारी नौकरियों का ही सहारा है। तो वही तैयारी करने में जुटे हैं। पेश है चौथे चरण के चुनाव में मोतीहारी के शौर्य स्तंभ और यहां के बेरोजगारी की दास्तां बयां करती अश्रि्वनी पांडेय की यह रिपोर्ट।

हम हर दिन यहां करते हैं तैयारी

बैंक की तैयारी कर रहे मुन्ना कुमार ने बताया कि मोतीहारी जिले की सबसे बड़ी समस्या है बेरोजगारी। यहां के हजारों युवाओं के पास नौकरी नहीं है। हम बेरोजगारों का एक ग्रुप है। शौर्य स्तंभ टेक्निकल ग्रुप। इस ग्रुप में दौ सौ से अधिक युवा है। हम सभी सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं। रोज शाम को फ् बजे यहां आ जाते हैं और सूरज ढलने पर ही जाते हैं।

हम ही तो शहर के शौर्य है

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे संदीप कुमार ने कहा कि युवा ही देश, प्रदेश और शहर को आगे ले जाता है। ऐसे में इस शहर के हम लोग ही तो शौर्य हुए। हमने इस शौर्य स्तंभ को ही अपना स्टडी सेंटर बना लिया है। हमारे पास इतने पैसे नहीं कि बाहर जाकर पढ़ाई कर सके। इसलिए यहां आकर ग्रुप स्टडी करते हैं। हम चाहते हैं कि इसबार जिसकी सरकार बने वह मोतिहारी के दोनों 'शौर्य' को बचा ले।

क्या वोट दें, सबका वही हाल है

विजय प्रताप कहते हैं कि सरकार बनने के पहले हर कोई रोजगार की बातें करता है। हमारे जिले में रोजगार के लिए कभी कुछ नहीं हुआ। यहां के युवा सरकारी नौकरियों के भरोसे ही हैं। न तो केंद्र में उतनी नौकरियां निकल रही है और न राज्य में, जितने बेरोजगारों की संख्या है। ऐसे में कोई भी जीते हमें क्या?

बदहाल है ऐतिहासिक शौर्य स्तंभ

जब हमारा देश अंग्रेजो का गुलाम था, तब चंपारण में तीन कठिया का नियम बना हुआ था। अंग्रेजी हुकूमत के इस नियम के अनुसार जिस भी किसान के पास बीस कट्ठा जमीन थी, उसे तीन कट्ठे जमीन पर नील की खेती बतौर लगान करनी पड़ती थी। जो भी इससे इंकार करता अंग्रेज उसकी जमीन छीन लेते। जब नील की खेती से धरती बंजर होने लगी। तब यहां के किसान और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी को चिट्ठी लिख चंपारण का निमंत्रण दिया। शुक्ल के इस आमंत्रण पर गांधीजी चंपारण आए और नील के खिलाफ आंदोलन किया। इन्हीं राजकुमार शुक्ल की याद में बिहार सरकार ने शौर्य स्तंभ बनवाया। आज स्तंभ को चारों तरफ झाडि़यों ने ढक लिया है। बाहर बैग वाला अपनी दुकान लगाता है। इन युवाओं के अलावा यहां कभी कोई नहीं आता।

मूर्ति का कोई पता नहीं

सोशल वर्कर शिवानी बताती है कि राजकुमार शुक्ल की यहां मूर्ति लगाई जानी थी। इसे एक टूरिस्ट प्लेस के तौर पर डेवलप किया जाना था। केवल स्तंभ बनाकर छोड़ दिया गया। आज यह स्तंभ भी टूट-टूटकर गिर रहा है। मूर्ति का तो कोई पता ही नहीं है। चंपारण आंदोलन की यादें चुनाव के समय ही सबको याद आती है। इस बार भी चुनाव में कई नेताओं ने वादे किए है। आज चुनाव हो गया अब यहां कोई झांकने तक नहीं आएगा।