पटना: गुरुवार को हाईकोर्ट ने मगध यूनिवर्सिटी में पांच वर्ष पहले नियुक्त 21 प्राचार्यो की नियुक्ति को तुरंत निरस्त करने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने इन प्राचार्यों की अपील को खारिज करते हुए बिहर सरकार से कहा कि अवैध नियुक्ति को लेकर कोई विजिलेंस केस चल रहा है तो उसका भी शीघ्र निष्पादन किया जाए। न्यायाधीश अजय त्रिपाठी एवं न्यायाधीश राजीव रंजन प्रसाद ने अपने 86 पन्ने के फैसले में नियुक्ति प्रक्रिया में की गई गड़बडि़यों की चर्चा की है। खंडपीठ ने नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितता के सारे आरोपों को सही मानते हुए अवैध तरीके से बहाल हुए 21 प्राचार्य की नियुक्ति को निरस्त करने का आदेश दिया। डॉ सुनील सुमन व अन्य की तरफ से दायर आधा दर्जन से अधिक प्राचार्यो ने एकल पीठ के फैसले को दो सदस्यीय खंडपीठ में चुनौती दी थी। नियुक्ति तत्कालीन कार्यकारी कुलपति अरुण कुमार के कार्यकाल में हुई थी।

 

विधानसभा में भी उठा था मामला

सरकारी वकील प्रशांत ने अपील का विरोध किया था। सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि मामला उस समय का है जब वीसी नियुक्ति ही विवाद में में थी। प्राचायरें की बहाली में भारी गड़बड़ी की शिकायत सरकार को मिली थी। मामला विधानसभा में उठाया गया जिस पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने गड़बड़ी जांच का आदेश मगध प्रमंडल के तत्कालीन आयुक्त को दिया था। आयुक्त की जांच रिपोर्ट की गम्भीरता को देखते हुए राज्य सरकार ने मामले को निगरानी विभाग को सौंप दिया।