- एनडीए और महागठबंधन में कांटे की टक्कर

- दोनों तरफ खुशी

- राह इतना आसान नहीं

PATNA:

सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल में वोटिंग के साथ ही बिहार विधान सभा चुनाव ख्0क्भ् में जनता ने अपना काम क दिया। अब जनता के फैसले का इंतजार दिल थामकर कीजिए। इस बार का चुनाव अलग है। महागठबंधन ने पहले से ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नीतीश कुमार को घोषित कर रखा है तो एनएडी ने इसकी घोषणा नहीं की लेकिन पीएम नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से बिहार में ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं की उससे यह साफ रहा कि चुनाव नीतीश-लालू के और नरेन्द्र मोदी के बीच हुआ। दोनों तरफ से गठबंधन की राजनीति भी हुई। नीतीश कुमार ने चुनाव जीतने के लिए अपने सबसे बड़े दुश्मन लालू प्रसाद से गले लगा लिया यही नहीं जिस कांग्रेस की महंगाई के खिलाफ सड़क पर उतरे थे उस कांग्रेस को भी साथ ले लिया। सपा और एनसीपी को भी साथ लेने की कोशिश की पर सीट शेयरिंग सफल नहीं होने से मुलायम सिंह और तारिक अनवर ने पांव पीछे खींच लिए।

यादव वोट बैंक का सवाल

यादव वोट जो लगभग क्फ् फीसदा माना जाता है को बांटने में कितने सफल हो पाएंगे जन अधिकार पार्टी सुप्रीमो व सांस पप्पू यादव, बीजेपी बिहार प्रभारी भूपेन्द्र यादव, नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव, केन्द्रीय राज्य मंत्री रामकृपाल यादव या यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव? क्या सभी यादव नेताओं पर फिर भारी पड़े लालू प्रसाद यादव? लालू के दोनों बेटे चुनाव हार भी जाते हैं और महागठबंधन क्ख्ख् को पकड़ लेती है तब भी लालू हीरो होंगे। लालू ने स्वाभिमान रैली में यादवों से एक पैर पर खड़े रहने का आह्वान ि1कया था।

मुस्लिम वोट तो महागठबंधन की ओर ही

इसी तरह मुस्लिम वोट बैंक को लेकर बात कही जा सकती है। ये लगभग क्म्-क्7 परसेट है। सवाल ये है कि क्या ओवैसी छह सीटों पर धमाल करेंगे? हालांकि बीजेपी मान चुकी है कि मुसलमानों का वोट उसे नहीं मिलेगा। अगर ऐसा नहीं होता तो लोकसभा में हारने के बाद शाहनवाज हुसैन को महत्वपूर्ण पद जरूर देती बीजेपी। मुस्लिम उम्मीदवार भी ज्यादा खड़े करती। एक दो उम्मीदवार खड़ा करना कोई मायने नहीं रखता, क्7 फीसदी वाली आबादी में से। मुस्लिम वोट बैंक का श्रेय सिर्फ लालू प्रसाद को नहीं दिया जा सकता। इसका बड़ा श्रेय कांग्रेस को जाएगा जो मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति लालू प्रसाद से पहले से ही करने के लिए जानी जाती रही है।

जात का चुनाव

जातीय वोट बैंक में कौन पार्टी कितनी बाजी मारती है इसी पर बिहार चुनाव का रिजल्ट आना है। विकास का सवाल उतना दमदार नहीं रहा न ही नेताओं ने अपने भाषणों से इसे रहने दिया। यादव, कोयरी-कुर्मी, बनिया, भूमिहार, राजपूत, ब्रह्मण, दलित आदि पार्टियों ने किसे वोट किया ये 8 तारीख को ही साफ होगा उसके पहले अनुमान ही लगाए जा सकते हैं।

बिहार में जातियों की स्थिति पर गौर कीजिए। जातियों के हिसाब से टिकट बंटवारा नहीं दिखा। कई ताकतवर जातियों की दादागिरी सवर्णो में भी दिखी और पिछड़ों में भी।

िपछड़ी जाति

यादव- क्ब् परसेंट

कुर्मी- ब् परसेंट

कोयरी-8 परसेंट

कुशवाहा-म् परसेंट

वैश्य- ख्ख् परसेंट

अगड़ी जाति

राजपूत- म् परसेंट

ब्रह्मण- भ् परसेंट

भूमिहार- फ् परसेंट

कायस्थ- ख्-फ् परसेंट

बिहार का चुनाव और पाकिस्तान का पटाखा

एनडीए और महागठबंधन दोनों ओर से जिस तरह के बयान आए उससे ये चुनाव सांप्रदायिक रूप भी लेता रहा। नरेन्द्र मोदी ने कह दिया कि बिहार हारेगा तो पटाखे पाकिस्तान में छूटेंगे। लालू ने इससे पहले कह दिया कि जो भी मांसाहारी हैं वे बीफ खाते हैं। कुल मिलाकर यह कि लालू ने तमाम बयान देकर अपने माय समीकरण का मुस्लिम वोट बैंक बचाने की कोशिश की वहीं बीजेपी ने हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करने की पूरी कोशिश की। परिणाम बताएंगे कि बहानबहादुरों की बहादुरी का कितना असर पड़ा वोटरों पर।

वीडियो वार से स्टि्ग इंपैक्ट

बिहार में पहली बार ये हुआ कि दोनों तरफ की पार्टियों ने प्रेस कांफ्रेस कर वीडियो जारी किया और तंत्र-मंत्र से लेकर रुपए के लेन-देन का मामला सामने आया। अवधेश कुशवाहा का मंत्री पद तो गया ही उनकी जगह दूसरा उम्मीदवर दे दिया जेडीयू ने। श्रीकांत की किताब चिट्ठियों की राजनीति में प्रकाशित नीतीश कुमार की ओर से लालू को लिखे पत्र को भी करोड़ों खर्च कर बीजेपी ने छपवाया।

आरक्षण का सवाल

इस पर खूब राजनीति हुई। आरएसएस के मोहनभागवत के बयान कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए, को ले उड़े नीतीश और लालू। लालू ने ताल ठोंका और कहा- माई का दूध पीया है तो आरक्षण हटा कर दिखाओ। आखिरकार बीजेपी को आरक्षण पर अपना स्टैंड साफ करना पड़ा। यही नहीं धर्म के आधार पर आरक्षण की वकालत वाली नीतीश कुमार को लोकसभा में दिए भाषण का वीडियो जारी करना पड़ा। पीएम नरेन्द्र को आरक्षण पर कई बार सफाई देनी पड़ी।

महिला वोटर ने पलायन को मुद्दा बनाया कि नहीं

ये सबसे बड़ा सवाल है कि बिहार की महिलाओं ने किसे चुना है। पीएम ने कहा भी कि जंगलराज से सबसे प्रभावित महिलाएं ही होती हैं। दूसरी तरफ बेहतर लॉ एंड ऑर्डर का दावा करते रहे सीएम नीतीश कुमार। लेकिन सवाल ये है कि महिलाएं क्या ये मानती हैं कि बिहार का लॉ एंड आॉर्डर बेहतर है? महिलाओं ने सुरक्षा के सवाल से आगे जाकर महिलाओं को दिए गए आरक्षण और बाकी सुविधाओं पर भी वोटिंग की है। बिहार से पलायन रोकने का वादा किया पीएम नरेन्द्र मोदी ने। कौन महिला नहीं चाहती कि उतने ही पैसे उसके पति या बच्चों को मिले तो वे पंजाब हरियाणा क्यों जाएं कमाने? महिलाओं ने पलायन को आधार बनाकर वोटिंग की है कि नहीं ये बड़ी बात होगी। महिलाओं के अलावे युवाओं ने बड़ी भागीदारी दिखाई।

पुरस्कार लौटाने का असर यूथ पर भी हुआ कि नहीं

युवाओं के आईकॉन कौन हैं नरेन्द्र मोदी या फिर नीतीश-लालू ये इस बार का चुनाव साफ कर देगा। इसी बीच साहित्य अकादमी से लेकर अन्य पुरस्कार देश भर से लौटाए गए। सहिष्णुता के सवाल बिहार में एक भी पुरस्कार नहीं लौटाया गया। जेडीयू के एमएलसी रामवचन राय साहित्य अकादमी में अपने पद पर बने रहे, पद नही छोड़ा। जेडीयू पुरस्कार लौटाए जाने पर बयान देकर बीजेपी को घेरती रही। सवाल ये है कि इसका कितना असर पड़ा बिहार के वोटरों पर, खास तौर से यूथ वोटरों पर। नियोजित शिक्षकों के वेतन बढ़ाने। आनन-फानन में म्यूजियम से लेकर नियोजन भवन और बेली रोड ओवरब्रीज का उद्घाटन करने का कोई असर हुआ या नहीं, देखते हैं।

दोस्त को दुश्मन बनाने और दुश्मन को दोस्त बनाने का कितना लाभ मिलेगा?

नीतीश कुमार सत्ता में लालू विरोध करके आए थे। कांग्रेस का भी खूब विरोध उन्होने किया। लालू प्रसाद को जब चारा घोटाले में जब सजा हुई थी तब उनके समर्थकों का आरोप था कि नीतीश कुमार ने ही जेल भिजवाया। ये तो साफ है कि जिस ललन सिंह ने लालू प्रसाद को जेल भिजवाने के लिए सप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई का आग्रह किया वे जब मुंगेर लोस चुनाव हार गए तो उन्हें राज्यपाल के कोटा से विधान परिषद् भेजा गया और फिर पथ निर्माण मंत्री बनाया। नीतीश कुमार ने जब बीजेपी का साथ छोड़ तो अपने दुश्मन नंबर वन को गले लगाया। जिस जीतन राम मांझी को अपनी कुर्सी दी उसे हटाकर दम लिया। इससे जेडीयू में बड़ी टूट भी हुई। यह टूट जेडीयू को कितना नुकसान पहुंचाएगी ये चुनाव परिणाम से ही सबसे अच्छी तरह से दिखेगा। मांझी इमामगंज में विदान सभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी को हरा पाते हैं कि नहीं देखते हैं। कहा जा रहा है कि चौधरी की स्थिति कमजोर है वहां। मांझी ने दो जगह से चुनाव लड़ा है इमामगंज और मखदुमपुर।

साल ख्0क्0 में ये पार्टियों इतनी सीटें लायी थीं-

जेडीयू- क्क्भ्

बीजेपी-9क्

आरजेडी- ख्ख्

इंडीपेंडेंट- म्

आईएनसी- ब्

एलजेपी- फ्

सीपीआई-क्

झामुमो- क्

कुल- ख्ब्फ्