-शहर में बायो मेडिकल वेस्ट का नहीं हो पा रहा है सही ढंग से निस्तारण

-प्राइवेट हॉस्पिटल्स कबाड़ी को बेच रहे मेडिकल स्क्रैप

VARANASI

हेडिंग पढ़कर चौंक गए ना! आप सोच में पड़ गए होंगे कि आखिरकार लाखों की कीमत वाली लग्जरी कार बीएमडब्ल्यू को सामान्य सा कबाड़ी कैसे खरीद सकता है? तो चलिए आपका यह कंफ्यूजन दूर कर देते है। दरअसल, यहां बात बीएमडब्ल्यू कार की नहीं हो रही है बल्कि बायो मेडिकल वेस्ट (बीएमडब्ल्यू) की हो रही है। इसे सेंटर फॉर पाल्यूशन कंट्रोल को नहीं देकर हॉस्पिटल्स संचालक कबाड़ी को बेच रहे हैं। यह हम नहीं सेंटर फॉर पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड बनारस की रिपोर्ट कह रही है। सिगरा स्थित नगर निगम ऑफिस के पास बायो मेडिकल वेस्ट स्क्रैप को खरीदा जा रहा है। एक मात्र सिगरा एरिया ही नहीं बल्कि शहर के अधिकतर एरिया में कबाड़ी की दुकानों पर बायो मेडिकल वेस्ट स्क्रैप को बेचा जा रहा है।

70 परसेंट हॉस्पिटल बेच रहे स्क्रैप

बायो मेडिकल वेस्ट को सही जगह पहुंचाने से हॉस्पिटल्स संचालक अपने कदम पीछे खींच रहे हैं। सेंटर फॉर पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड बनारस की एक सर्वे रिपोर्ट कहती है कि सिटी में लगभग 70 परसेंट हॉस्पिटल्स अपने बायो मेडिकल वेस्ट को कबाड़ी में बेच देते है। एक प्राइवेट हॉस्पिटल से डेली एक से डेढ़ क्विंटल प्लास्टिक बोतल, सीरिंज आदि वेस्ट निकलता है। यही वजह है कि मोहनसराय में खुले बायो मेडिकल वेस्ट प्लांट में आठ घंटे में दस क्विंटल ही वेस्ट पहुंच पाता है। जबकि शहर में अकेले तीन सौ प्राइवेट हॉस्पिटल्स रजिस्टर्ड है।

हो सकती है उन्नाव जैसी घटना

झोलाछाप डॉक्टर भी बड़े हॉस्पिटल्स से बायो वेस्ट में स्क्रैप खरीद रहे हैं। यह बेहद खतरनाक हो सकता है। हाल ही में लखनऊ से सटे उन्नाव जिले में एक झोलाछाप डॉक्टर द्वारा दूषित इंजेक्शन कई बार यूज करने से 40 लोग एड्स रोगी बन गए हैं। सेंटर फॉर पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड भी मानता है कि बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल्स से छोटे हॉस्पिटल वाले स्क्रैप आदि की खरीद करते है। यदि जिला प्रशासन गंभीर नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में उन्नाव जैसी घटना बनारस में भी होने से कोई रोक नहीं सकता।

तीन है कैटेगरी

मेडिकल वेस्ट को तीन कैटेगरी रेड, ऑरेंज व ब्लू में बांटा गया है।

-रेड कैटेगरी में उस संक्रमित कचरे को रखा गया है, जो हेल्थ के लिए घातक हैं।

-ऑरेंज कैटेगरी में बॉडी पार्ट्स को रखा गया है, लेकिन वह संक्रमित नहीं होना चाहिए।

-ब्लू कैटेगरी में सिरिंज, ग्लूकोज बोतल आदि को रखा गया है। जिसे कॉमन मेडिकल वेस्ट प्लांट में भेजा जाता है।

हर रोज सैकड़ों केजी वेस्ट

- 37.50 केजी मेडिकल वेस्ट निकलता है 15 सौ बेड वाले बीएचयू हॉस्पिटल से निकलता है

- 7.50 केजी मेडिकल वेस्ट निकलता है 300 बेड वाले बीएचयू ट्रामा सेंटर से

- 30 केजी तक मेडिकल वेस्ट आता है पूर्वोत्तर रेलवे हॉस्पिटल और कैंसर रिसर्च सेंटर से

- 20 केजी मेडिकल वेस्ट डीएलडब्ल्यू सेंट्रल हॉस्पिटल से

- 80-100 केजी मेडिकल वेस्ट बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल से

-20-40 किलो मेडिकल वेस्ट छोटे प्राइवेट हॉस्पिटल से

- 50 केजी मेडिकल वेस्ट मंडलीय हास्पिटल से

- 30 केजी मेडिकल वेस्ट दीनदयाल हॉस्पिटल से

- 26 केजी मेडिकल वेस्ट डायग्नोस्टिक सेंटर्स से

बढ़ा रहा है खतरा

-खुले में पड़ा मेडिकल कचरा उसके सम्पर्क में आने वाले इंसान और जानवरों की सेहत को प्रभावित करता है

- यूज्ड सिरिंज आदि की वजह से कई बार लोग गंभीर बीमारी के शिकार होते हैं

- कूड़े को हटाने के लिए कई बार उसे जला दिया जाता है इससे हवा जहरीली होती है

- फैक्ट्री से निकलने वाले कचरे की वजह से जमीन और भूमिगत जल जहरीला हो रहा है

-नदियों में बढ़ते प्रदूषण की भी यह एक वजह बन रहा है

बायो मेडिकल वेस्ट को लेकर प्राइवेट हॉस्पिटल्स संचालक गंभीर नहीं है। मेडिकल स्क्रैप आदि को कबाड़ में बेचा जा रहा है, जो नियम के खिलाफ है। डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन इन पर लगाम लगाए वरना उन्नाव जैसी घटना होने से कोई रोक नहीं सकता।

विवेक राय, प्रोजेक्ट मैनेजर

सेंटर फॉर पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड