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LUCKNOW : बीते एक साल से अपनी ही पार्टी की सरकार की नीतियों का विरोध कर रही बहराइच की सांसद सावित्री बाई फुले ने गुरुवार को बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। सावित्री ने केंद्र और प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कई गंभीर आरोप लगाए। कहा, मैंने दुखी होकर यह कदम उठाया है। बीजेपी सरकार के मंत्री संविधान बदलने की बात करते हैं और आरक्षण खत्म करने की साजिश रची जा रही है।

जड़े कई आरोप

बाबा साहब भीमराव रामजी आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर राजधानी में अचानक बुलाई गई पत्रकार वार्ता में उन्होंने यह घोषणा की। साफ कर दिया कि कार्यकाल पूरा होने तक वह सांसद बनी रहेंगी। राजस्थान विधानसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर सावित्री ने बड़े ही हमलावर अंदाज में बीजेपी पर निशाना साधा। उन्होंने पार्टी को दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की विरोधी बताते हुए कहा कि बीजेपी देश को मनुस्मृति से चलाना चाहती है। यह सरकार बहुजनों के हित में कार्य नहीं कर रही है। यहां तक कि समतामूलक समाज की स्थापना करने वाले बाबा साहब की प्रतिमा तोडऩे वालों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने भाजपा पर संविधान को बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाया। सावित्री ने जोर देकर कहा कि दलितों को मंदिर नहीं संविधान चाहिए क्योंकि देश मंदिर से नहीं संविधान से चलेगा।

अप्रैल में सरकार के खिलाफ की थी रैली

सावित्री बाई फुले ने एक अप्रैल को कांशीराम स्मृति उपवन में अपनी सरकार के खिलाफ रैली की थी। तब उन्होंने संविधान बचाने के नाम पर अपनी ताकत दिखाई और यह माना गया कि उनके पीछे कुछ और लोग हैं। नीले झंडे से सजे मैदान में सावित्री ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला था। उनके मंच पर मौजूद कई नेता बसपा से जुड़े थे। दो अप्रैल को आरक्षण और संविधान के मुद्दे पर दलितों का देशव्यापी आंदोलन हुआ। उसके बाद सावित्री बाई के अलावा राबट्र्सगंज के सांसद छोटेलाल खरवार, इटावा के अशोक दोहरे, नगीना के डॉ। यशवंत ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर विरोधी तेवर दिखाए लेकिन, बाद में सब ठंडे हो गये। हालांकि, सावित्री लगातार हमलावर रहीं।

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