- यूपी में सर्राफा हड़ताल के चलते बीजेपी से नाराज हुए वैश्य

-चुनाव से पहले खेला गया दलित कार्ड कहीं पड़ ना जाए उल्टा

-केंद्र पर काबिज होने के बाद पार्टी परंपरागत वोट बैंक को भूली

Sundar.singh

Meerut : कहते हैं कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, लेकिन इस बात का ख्याल करना काफी जरूरी है कि आप क्या खो रहे हैं? कुछ ऐसा मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी के साथ हो रहा है। दलित और ओबीसी वोट के चक्कर में पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक से छिटकती जा रही है। कारण सिर्फ यही नहीं है। स्वर्णकारों का आंदोलन और उनकी नाराजगी, इंडस्ट्री के लोगों की पार्टी की हताशा भी इसका साफ कारण है। जानकारों की मानें तो पार्टी जिस तरह से दलित और ओबीसी वोट बैंक की राजनीति कर रही है उससे कोई फायदा नहीं होने वाला है।

नाराजगी पड़ेगी भारी

प्रदेश में पिछले 40 दिनों से एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने के विरोध में सर्राफा व्यापारियों का आंदोलन चल रहा है। वो पार्टी के लिए काफी भारी पड़ सकता है। सर्राफा व्यापारी यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश में भाजपा के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं। अकेले यूपी में इनके वोटों की संख्या की बात करें तो करीब 35 लाख है। जिसे कम कम नहीं आंका जा सकता है। मेरठ सर्राफा एसोसिएशन के महामंत्री सर्वेश कुमार सर्राफ ने बताया कि बीजेपी अभी भी इस मुगालते में है कि सर्राफा पार्टी को छोड़कर कहीं नहीं जा सकते, जबकि ऐसा नहीं है। पार्टी के खिलाफ पूरे सूबे में भारी विरोध है। क्योंकि जिस एक्साइज ड्यूटी को हटाने की बात हम कर रहे हैं उस पर यही पार्टी चार साल पहले हमारे समर्थन में खड़ी थी। 2014 के लोकसभा चुनावों में जो नतीजे पार्टी को यूपी में मिले थे वो कहीं न कहीं उसी का असर था।

छोटे उद्योगों में भी नाराजगी

अब बात करते हैं कि छोटे उद्योगपतियों की जो पार्टी के हमेशा से ही फेवर में रहा है। फिर चाहे पार्टी केंद्र में सत्ता में हो या नहीं। लेकिन इस बार उन्हें पार्टी से काफी उम्मीदें थी, जो पिछले दो सालों में बिल्कुल भी पूरी नहीं हुई। खासकर यूपी के उद्योगपतियों में इस बात का खासा रोष है कि छोटे स्केल पर उद्योग चलाने वाले लोगों के लिए पार्टी या सरकार की ओर से कुछ नहीं किया गया। आईआईए यूपी के जनरल सेकेट्री पंकज गुप्ता का कहना है कि पिछले कुछ समय से जो केंद्र की ओर से जो निर्णय लिए गए, वो सही नहीं रहे। जिससे एमएसएमई वर्ग का उद्योगपति काफी हताश है। पॉलिसी क्लीयर नहीं की गई है। ताज्जुब की बात तो ये है कि जो स्टैंडअप योजना लांच की गई वो भी सिर्फ एक वर्ग को ध्यान में रखकर की गई। जोकि सही नहीं है। क्योंकि प्रदेश में सिर्फ गरीब दलित वर्ग ही नहीं है। सवणरें में भी कई गरीब ऐसे हैं जिन्हें स्टैंडअप के लिए सहयोग की काफी जरुरत है। दलित वोट की राजनीति पार्टी के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित नहीं होने वाली है। आपको बता दें कि प्रदेश में छोटे बड़े कारोबारियों की करीब 3 लाख यूनिट्स रन कर रही हैं।

बगावत के सुर

जब से पार्टी हाईकमान की ओर से प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है तब से प्रदेश पार्टी की अंदरूनी सियासत काफी गर्म हो गई है। खासकर सवर्ण जाति के वो नेता जो अपने आपको अगला अध्यक्ष मानकर चल रहे थे। या फिर सवर्ण नेता अपनी नैया पार लगाने में जुटे थे। अब वह अपने को अब ठगा सा महसूस कर रहे हैं। जो कभी बीजेपी वैश्य, ब्राह्मणों की पार्टी कही जाती थी वो अब धीरे-धीरे बदल रही है। ऐसे में उनकी छिटकना लाजिमी है। नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एक बीजेपी लीडर ने बताया कि मौजूदा समय में पीएम ओबीसी वर्ग से हैं। अब पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भी ओबीसी को भी बना दिया गया है, जिससे सवर्ण जाति के लोग थोड़ा खफा हो गए हैं। क्योंकि सवणरें का वजूद इसी पार्टी में था। अब जब ये पार्टी दलित और ओबीसी को मुख्य पदों बिठाकर चुनाव लड़ेगी तो हमारी बात कौन सुनने वाला है?

विपक्ष नहीं उठा पा रही फायदा

अगर बात विपक्ष खासकर कांग्रेस की करें तो उनके पास एक फिर से सवर्ण वोट बैंक को अपने पास वापस खींचने का एक बेहतरीन मौका है। लेकिन वो भी इसका फायदा नहीं उठा पा रही है। न तो सर्राफा व्यापारियों के फेवर में आने की कोशिश कर रही है। न ही वैश्य, ब्राह्मणों और ठाकुर जैसे सवर्ण वोटों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री नसीब सिंह ने सर्राफा कारोबारियों के बीच आकर मरहम लगाने की कोशिश की थी। लेकिन कांग्रेस का कोई लोकल बॉडी और न ही स्टेट बॉडी का लीडर सामने आया।

बीजेपी किसी एक वर्ग की पार्टी नहीं है। खेत-किसान, गांव-गरीब से लेकर सभी वर्गो की पार्टी है। आगामी चुनाव में यूपी में बीजेपी सरकार बनाएगी।

-पंकज सिंह, महामंत्री बीजेपी यूपी

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