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LUCKNOW : उत्तर प्रदेश ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तोहफा दिया है। तमाम आशंकाओं को धता बताते हुए बीजेपी ने मामूली नुकसान के साथ यूपी में अपनी बादशाहत कायम रखी और देश की नई सरकार चुनने में अहम भूमिका निभाई है। खास बात यह है कि इस चुनावी समर में अमेठी में इतिहास भी रचा गया जब दशकों से यहां अपना कब्जा बरकरार रखने वाली कांग्रेस अपने ही अध्यक्ष राहुल गांधी को नहीं जिता सकी। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने उनको चुनाव में करारी शिकस्त दी है। हालांकि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी रायबरेली की अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं। वहीं दूसरी ओर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी सांसद डिंपल यादव भी अपनी कन्नौज सीट नहीं बचा सकीं। उनको भाजपा के सुब्रत पाठक ने हराया है। वहीं गाजीपुर में गठबंधन प्रत्याशी अफजाल अंसारी ने केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को हराकर बीजेपी को करारा झटका दिया है। इसके अलावा बदायूं में सपा सांसद धर्मेंद्र यादव योगी सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की पुत्री संघमित्रा मौर्य से चुनाव हार गये हैं। वहीं गोरखपुर में रविकिशन ने जीत दर्ज की है जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था।

नहीं काम आईं प्रियंका, हांफने लगा गठबंधन

कहना गलत न होगा कि लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा को सबसे ज्यादा कड़ी चुनौती का सामना तो करना पड़ा पर उसके विरोधी दल अपना जलवा बिखर पाने में नाकामयाब रहे। दशकों तक यूपी के रास्ते दिल्ली की गद्दी पर आसीन होने वाली कांगे्रस को इस बार महज एक सीट से ही संतोष करना पड़ रहा है जो कांग्रेस के लिए किसी 'दुर्घटना' से कम नहीं है। इस चुनाव में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को उतारकर अपना ट्रंप कार्ड भी खेला जो फेल हो गया। प्रियंका की राजनीति में आमद के साथ यूपी में कांग्रेस का करीबन खात्मा पार्टी के लिए भविष्य में गहरी चिंता का सबब बन चुका है। वहीं चुनाव नतीजे आने के बाद सपा-बसपा-रालोद गठबंधन भी हांफता नजर आया और 15 सीटें जीतने में भी उसे खासी मशक्कत करनी पड़ गयी। शुरुआती दौर में गठबंधन के दो दर्जन प्रत्याशी जीत की ओर बढ़ते नजर आए पर भाजपा प्रत्याशियों ने राउंड दर राउंड काउंटिंग के बाद उनको शिकस्त की ओर ढकेलना शुरू कर दिया। नतीजतन गठबंधन के तमाम बड़े नेता चुनाव हार चुके हैं और चुनाव नतीजों ने तीनों दलों को भविष्य के लिए नई रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया है।

गठबंधन को भी गहरा झटका

यूपी में लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा और रालोद के बीच हुआ गठबंधन भी अपना ज्यादा असर नहीं दिखा सका और तीनों दल 15 सीटों पर सिमट गये। हालांकि इस चुनाव में बसपा को खासा फायदा मिला और वह पिछले चुनाव में मिली शून्य सीटों के मुकाबले इस बार 10 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। रालोद के तीन प्रत्याशी गठबंधन की ओर से चुनाव लड़ रहे थे जिनके हिस्से में हार आई है। रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर और उनके पुत्र जयंत चौधरी बागपत से चुनाव हार गए है तो मथुरा में भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने रालोद के कुंवर नरेंद्र सिंह को करारी शिकस्त दी है। भाजपा के सहयोगी अपना दल ने भी अपनी दोनों सीटों पर जीत हासिल की है। मिर्जापुर से केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और राबट्र्सगंज से पकौड़ी लाल कोल ने जीत दर्ज करायी है। सुलतानपुर में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने बेहद रोमांचक मुकाबले में गठबंधन प्रत्याशी सोनू सिंह को मात दी है। वहीं योगी सरकार से बगावत करने वाले ओपी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी कोई सीट नहीं जीत सकी है।

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नहीं चला नये दलों का जादू

खास बात यह है कि चुनाव में सपा-बसपा का गणित बिगाडऩे का दावा करने वाले नये दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और जनसत्ता दल अपना जादू नहीं दिखा पाए। यूपी की तकरीबन सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने वाले प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव फिरोजाबाद सीट से चुनाव हार गये हैं। उनकी पार्टी का कोई भी प्रत्याशी किसी भी सीट पर दूसरे या तीसरे स्थान पर भी नहीं आया और उनकी जमानत जब्त होने की नौबत तक आ गयी है। इसी तरह सपा सरकार में मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के जनसत्ता दल को भी प्रतापगढ़ और कौशांबी में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। कौशांबी में जनसत्ता दल प्रत्याशी शैलेंद्र कुमार करीब डेढ़ लाख वोट पाकर तीसरे स्थान पर आए है तो प्रतापगढ़ में अक्षय प्रताप सिंह को 50 हजार वोट पाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।