- लोकसभा चुनाव में तीसरी बार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं प्रकाश झा

- दो चर्चित पात्र भी लड़ रहे हैं चुनाव, जिसकी फिल्म से प्रकाश झा ने खूब कमाए नाम

PATNA: मृत्युदंड, गंगाजल, दामुल, अपहरण, राजनीति, आरक्षण, चक्रव्यूह और सत्याग्रह और जैसी फिल्में बनाने वाले प्रकाश झा एक बार फिर लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। पश्चिम चंपारण से वे जेडीयू के टिकट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले वे दो बार चुनाव लड़ चुके हैं, जिसमें उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। पिछली बार तो रामविलास पासवान ने उन्हें टिकट दिया था, लेकिन डेढ़ लाख के लगभग वोट ला पाए। इस बार उनकी टक्कर बीजेपी के संजय जायसवाल और आरजेडी के रघुनाथ झा से है। प्रकाश झा का सरोकार सिर्फ सिनेमा से ही नहीं जुड़ा है। अन्य कई कारोबार में पैसा लगा रखा है उन्होंने। कई चर्चित मामलों में वे फंसे भी, निकले भी। तो ले देकर फिल्मी दुनिया के प्रकाश की छवि उनके ही क्षेत्र में लोग बहुत राफ-साफ नहीं मानते।

प्रकाश झा को मिले थे क्,भ्क्,ब्फ्8 वोट

पश्चिम चंपारण में ख्009 के चुनाव में बीजेपी के संजय जायसवाल ने लोजपा के प्रकाश झा को ब्7,फ्ब्फ् मतों से पराजित किया था। जायसवाल को क्,98,77क् वोट और प्रकाश झा को क्,भ्क्,ब्फ्8 वोट मिले। ख्00ब् के लोकसभा चुनाव में यहां से आरजेडी के रघुनाथ झा ने बीजेपी के मदन प्रसाद जायसवाल को ख्ब्म्7क् वोटों से हराया था। झा को ख्क्क्भ्90 वोट मिले, जबकि जायसवाल को क्8म्9क्9 मत मिले। पश्चिम चंपारण में क्फ्म्म्080 वोटर्स हैं। इसमें ब्राह्मण, यादव, भूमिहार राजपूत और मुस्लिम वोट बैंक बड़े फैक्टर के रूप मे वोटिंग को प्रभावित करते आए हैं।

तो क्यों नहीं हैं ताकतवर स्थिति में

प्रकाश झा पर कई तरह के आरोप हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि चुनाव के सय वे दिखते हैं और फिर बाकी समय लगभग गायब रहते हैं। गुरवलिया चीनी मिल के लिए किसानों से ली जमीन के मामले में प्रकाश झा की खूब फजीहत हुई है। मॉल के लिए ली जमीन मामले में भी प्रकाश खूब चर्चा में आए थे। खासतौर से किसानों के एक बड़े वर्ग में प्रकाश को लेकर नाराजगी दिख रही है।

दो फिल्मों के रीयल हीरो भी लड़ रहे चुनाव

इस बार प्रकाश झा ही मैदान में नहीं हैं, बल्कि वेदो चर्चित पात्र भी चुनाव लड़ रहे हैं जिसकी कहानी को फिल्म में उतार प्रकाश ने खूब नाम कमाया। विष्णु दयाल राम और कामेश्वर बैठा झारखंड के पलामू से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार हैं। विष्णु दयाल राम उस समय भागलपुर में एसपी थे, जब अंखफोड़वा कांड हुआ था। इस कांड पर आधारित फिल्म गंगाजल बनायी थी प्रकाश झा ने। विष्णु दयाल राम झारखंड के डीजीपी भी रह चुके हैं। आंखफोड़वा कांड में कई पुलिसकर्मियों को सजा हो चुकी है, लेकिन विष्णु दयाल राम पर आरोप साबित नहीं हो पाया। कामेश्वर बैठा प्रकाश झा की फिल्म चक्रव्यूह के असली हीरो हैं। ये फिल्म नक्सलियों पर बनी है। कामेश्वर बैठा को बड़ा नक्सली नेता कहा जाता रहा है, जिस पर भ्0 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप है, लेकिन कोर्ट से कन्विक्सन नहीं हुआ।

क्या था आंखफोड़वा कांड या ऑपरेशन गंगाजल?

नई पीढ़ी को नहीं मालूम कि आंखफोड़वा कांड क्या है। प्रकाश झा ने इसी कांड पर गंगाजल फिल्म बनायी थी। ये पूरी घटना भागलपुर और इसके आसपास के इलाके से जुड़ी है। सितंबर क्979 तक विभिन्न अदालतों में क्राइम के हजारों मुकदमे लंबित पड़े हुए थे। आमलोगों सहित पुलिस और सरकार भी परेशान हो गई थी अपराधियों के आतंक से। ऐसी स्थिति में सरकार की कथित मूक सहमति से पुलिस ने एक रास्ता ढ़ूंढ निकाला। इस रास्ते को ही कॅपरेशन गंगाजल नाम दिया गया। इस ऑपरेशन के बाद मानवाधिकार का बड़ा सवाल उठा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस शुरू हो गई। ऑपरेशन गंगाजल के तहत दुर्दात अपराधियों को पकड़ा जाता था और बांका जिले के सुदूर ग्रामीण इलाके रजौन में ले जाकर खूब मारा पीटा जाता था। इसके बाद नुकीले साइकिल के स्पोक से आंख में छेदकर सिरींज से सल्फ्यूरिक एसिड डाल दिया जाता था। लास्ट में इस ऑपरेशन में शामिल अफसरों के समाने पेश किया जाता था। तब अफसर पूछते थे- लाइट आऊट किया या नहीं? ऑपरेशन मे गंगाजल का मतलब था सल्फ्यूरिक एसिड और लाइट आऊट का मतलब पूरी तरह अंधा करने से था। लाइट आउट करने के बाद आंखों के घाव की प्राथमिक चिकि त्सा करायी जाती थी और आंख पर पट्टी बंाध कर कोर्ट में रिमांड के लिए पेश कर दिया जाता था। रिमांड के बाद इन कैदियों को जेल भेज दिया जाता था। अक्टूबर क्979 से अक्टूबर 80 के बीच किश्तों में एक-एक कर कइयों की आंखें गंगाजल के हवाले की गई। क्979 में एक, नवंबर 79 में एक, क्980 के जनवरी में एक, मार्च में दो, अप्रैल में एक, मई में दो, जून में तीन, जुलाई में छह, अगस्त में दो, सितंबर में एक और अक्टूबर में क्0 लोगों की आंखें में गंगाजल डाले गए। उस समय भागलपुर में एसपी के पोस्ट पर थे विष्णु दयाल राम। मामला जब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, तो तो कोर्ट ने सभी विचाराधीन और सजायाफ्ता कैदियों की रिहाई के आदेश इस वजह से दिए कि आंख फोड़े जाने की सजा कारावास से कम बड़ी सजा नहीं थी। इसे कोर्ट ने संविधान की धारा क्9 और ख्क् का उल्लंघन माना था।