जूनियर सेक्शन चलाने वाले स्कूल कर रहे हैं खुल्लम-खुल्ला लूट

कमीशन के आधार पर तय किये गये हैं प्रकाशक, पैरेंट्स को एक फीसदी की भी छूट नहीं

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PRAYAGRAJ: सीनियर क्लासेज यानी छह से इंटर तक की बुक्स के मामले में फिर भी थोड़ी राहत है. एनसीईआरटी के बाद रिफ्रेशर बुक एड कर दी गयी है. असली खेल तो नर्सरी, केजी और प्रेप क्लासेज चलाने वाले खेल रहे हैं. यहां किताबों के दाम पन्नों की संख्या के दोगुने से भी ज्यादा है. स्कूल ने कमीशन सेट होने के आधार पर प्रकाशक तय किये हैं. प्राब्लम यह है कि ये किताबें धड़ल्ले से स्कूल से ही बेची जा रही है या स्कूल के पास ही दुकान खोलवा दी गयी है. अनाप-शनाप पेमेंट कर रहे पैरेंट्स के पास कोई सवाल पूछने का आप्शन ही नहीं है.

पूरे सेट का रेट है फिक्स

कालिंदीपुरम एरिया में हाल में एक नामी स्कूल की फ्रेंचाइजी खुली है. यहां दैनिक जागरण आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने मंगलवार को चेक किया तो पता चला कि इस स्कूल ने सभी क्लास के सेट का रेट फिक्स कर रखा है. इसकी कीमत 1400 रुपये से लेकर दो हजार रुपये के बीच है. इसमें कापी, किताब, ड्रेस, स्टेशनरी सब कुछ शामिल है. स्कूल मैनेजमेंट का कहना था कि हमने तो सहूलियत दी है. किताबों की लिस्ट पकड़ा देते तो पैरेंट्स को यहां वहां भटकना पड़ता. गाड़ी का तेल और वक्त दोनो बर्बाद होता. एक किताब एक दुकान पर मिलती और दूसरी के लिए दो और दुकानों के चक्कर लगाने पड़ते. हम तो उनकी सेविंग कर रहे हैं. इस सवाल पर यहां से चुप्पी आ गयी कि सरकार ने स्कूल से कोई सामान बेचने पर पाबंदी लगा रखी है.

स्कूल के बगल में खुली है दुकान

रिपोर्टर घूमते हुए सेंट जोसफ कालेज पहुंचा तो ठीक बाहर किताबों की दुकान न्यू भार्गव बुक सेंटर पर पैरेंट्स लाइन लगाकर खड़े दिखे. एक पैरेंट ने सेंट जोसफ में पढ़ने वाले अपने बेटे के एलकेजी की किताब व स्टेशनी का किट लिया. किट खोलकर चेक करने पर पता चला कि एक किताब की कीमत 390 रुपए प्रिंट थी और उसमें कुल 126 पेज ही थे.

लेना है तो लीजिए नहीं तो आगे बढि़ये

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट रिपोर्टर ने जब दुकान पर बैठी महिला से किताबों के रेट को लेकर बारगेनिंग करनी चाहिए, तो उनका सीधा जवाब था. सब ले रहे है, आप को ज्यादा परेशानी है. स्कूल में यही किताब चलनी है. लेना है तो लीजिए, नहीं तो समय मत खराब करिए. सभी किताबों में प्रिंट रेट के हिसाब से ही दुकानदार वसूली कर रहे है. यहां एलकेजी के बुक्स के सेट में अकेले हिंदी सब्जेक्ट की छह किताबें मिलीं.

स्कूलों के अपने-अपने पब्लिकेशन

रियलिटी चेक के दौरान यह भी सामने आया कि हर स्कूल ने अपना पब्लिकेशन सेट कर रखा है. स्कूल किस बोर्ड से संचालित होने का दावा कर रहा है इससे भी कोई खास मतलब नहीं था. आईसीएसई संचालित बिशप जानसन स्कूल एंड कालेज के पास ही बिशप हाउस के दूसरी तरफ स्कूल की किताबें बिक रही थीं. यहां तो एलकेजी की किताबों का रेट सेंट जोसफ कालेज के बाहर चल रही किताबों के रेट से भी अधिक मिला. यहां पर एलकेजी की किताबों की किट का रेट 2711 रुपए था.

स्कूल ने जो बताया वही हम कर रहे हैं. वैसे ही इतने काम हैं. स्कूल से पंगा लेकर और टेंशन में क्यों जीना चाहेंगे. मजबूरी में हैं इसलिए सेट ले रहे हैं.

विश्वदीपक त्रिपाठी

पेरेंट

क्या कर सकते हैं स्कूलों. कुछ भी बोला तो बच्चे को टीचर के जरिये परेशान किया जा सकता है. कौन जाए किचकिच में पड़ने इसलिए स्कूल जो कह रहा है चुपचाप उसे मान रहे हैं.

सौरभ वर्मा, पेरेंट

इसमें तो कोई संदेह नहीं है कि छोटे बच्चों को पढ़ाना ज्यादा मुश्किल काम हो गया है. इनकी फीस और बुक्स स्टेशनरी पर बड़े बच्चों से भी ज्यादा खर्च आ रहा है. मजबूरी है, कहां जाएं. सबकी तो एक जैसी ही कहानी है.

नित्यानंद कुशवाहा, पेरेंट

बच्चे के एडमिशन, बुक्स और स्टेशनरी-ड्रेस पर इतना खर्च इस महीने हो गया कि पूरे घर का बजट बिगड़ गया है. 16 हजार रुपये तो एडमिशन की फीस ले ली गयी. बच्चे को अच्छा माहौल और एजुकेशन मिले, यही सोचकर सारे समझौते कर लिये हैं.

रिंकी सिंह, पेरेंट