ट्रायल भी सक्सेसफुल

सिटी बेस्ड इंडस्ट्रियलिस्ट विवेक सक्सेना ने बताया कि पहले-पहल केस्को ने अर्थिंग की वजह से ट्रांसफॉर्मर फुंकने की बात को सिरे से नकार दिया। इस पर उन्होंने केस्को ऑफिसर्स से ट्रायल-रन की पेशकश की। कहा-सिटी के जिस एरिया में ट्रांसफॉर्मर सबसे ज्यादा फुंकते हों, वहां ट्रायल की परमीशन दी जाए। इस पर उन्हें हिंदू अनाथालय के पास बने तीन ट्रांसफॉर्मर को बचाने का टारगेट दिया गया। आंकड़ों के अनुसार यहां साल में 6-8 बार ट्रांसफॉर्मर फुंक जाते थे। अर्थिंग डिवाइस लगने के बाद 8 महीने बीत चुके हैं, लेकिन तीनों ट्रांसफॉर्मर एक बार भी नहीं फुंके।

पूरे शहर का कॉन्ट्रैक्ट

सक्सेसफुल ट्रायल-रन के बाद केस्को ने पूरे शहर के ट्रांसफॉर्मर की टेस्टिंग करवाई। कई प्वाइंट चिन्हित किये गये जहां ट्रांसफॉर्मर में अर्थिंग की प्रॉब्लम सामने आई। इस पर केस्को ने विवेक को पूरे शहर के ट्रांसफॉर्मर को अर्थिंग डिवाइस से जोडऩे का कॉन्ट्रैक्ट दे दिया। विकास का दावा है कि इस डिवाइस से जुडऩे के बाद ट्रांसफॉर्मर फुंकने का रेशियो 80 परसेंट तक रिड्यूस हो जाएगा। उन्होंने बताया कि लखनऊ के नक्खास एरिया, दिल्ली मेट्रो स्टेशन समेत देश के विभिन्न इलाकों में यह डिवाइस इंस्टॉल कर चुके हैं। जिससे सपोर्टिंग डिवाइस को प्रॉपर अर्थिंग मिलती रहती है।

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ऐसे जेनरेट होती है अर्थिंग :

विवेक के अनुसार इंडिया में अभी तक दो तरह की अर्थिंग डिवाइस यूज होती हैं। इन दोनों की तुलना में नई डिवाइस की क्वालिटी -

ट्रेडिशनल डिवाइस : इसमें कॉपर प्लेट के साथ 40 किलो काला कोयला, 20 किलो नमक और पानी डालकर चार्ज किया जाता था। फिर अर्थिंग स्टार्ट होती थी, लेकिन कैमिकल रिएक्शन की वजह से 3 साल में ही प्लेट गलने लगती थी। परफॉमेंस खत्म होने लगती है। ऐसे में घरों, दरवाजों, वाशिंग मशीन, बिजली के खंभों में करेंट उतर आता है।

कैमिकल डिवाइस : इसमें 4 इंच डायामीटर का एक 10 फुट गहरा बोर किया जाता है। इसमें 2 इंच डायमीटर की रॉड डाली जाती है। फिर चारो तरफ बैंटोनाइट कैमिकल भरकर स पर पानी डालकर चार्ज किया जाता है। मगर, यह टाइम टू टाइम मेंटीनेंस मांगता है। इसके अलावा कैमिकल रिएक्शन की वजह से डेप्रीशिएशन भी होता था। इसकी मैक्जिमम लाइफ 8 साल होती है।

लेटेस्ट वर्जन - यह कंडक्टिव कॉन्क्रीट का बना है। मैनमेड हाई क्लास लो रेजीस्टेंस कार्बन होता है। इसका पेटेंट इंग्लैंड की एक कम्पनी के पास है। इसमें सीमेंट और मारकोनाइट मैटीरियल को 1 : 3 के रेशियो में मिक्स करके गारा बनाया जाता है। बाद में कास्टिंग करके 3 इंच डायामीटर का 10 फुट गहरा गड्ढा किया जाता है और 16 मिमी की माइल्ड स्टील (एमएस) रॉड डाली जाती है। फिर चारों ओर से बैैंटोनाइट, सीमेंट और मारकोनाइट से इसे फ्रीज कर देते हैं। 3500 किलोवॉट का लोड झेल सकने वाले इलेक्ट्रोड की कीमत महज 9 हजार रूपए रखी गई है।

डिवाइस के फायदे

1- यह डिवाइस इको-फ्रेंडली है, इसलिए जमीन को पॉल्युशन नहीं पहुंचता।

2- सेंट्रल पावर रिसर्च इंस्टीट्यूट से अप्रूव है।

3- 50 सालों तक के लिए यह मेंटीनेंस फ्री है। न चार्ज करने की जरूरत है, ना ही पानी डालना पड़ता है।

4- अक्सर घर के दरवाजे-खिडक़ी में करेंट उतर आता है। ऐसा ग्राउंड अर्थिंग लीक होने की वजह से होता है। इस डिवाइस से लोग बच जाते हैं।

5- इलेक्ट्रिक अप्लायंस जैसे वाशिंग मशीन, फ्रिज, टीवी, कम्प्यूटर आदि में भी करेंट उतर आता है। नेगलीजेंस में छूने पर व्यक्ति चिपक जाता है। यह डिवाइस अर्थिंग की वैल्यू जीरो नहीं होने देती।

6- यह डिवाइस बेहतरीन लाइटनिंग कंडक्टर भी है जोकि 42000 एम्पीयर तक का करेंट झेल सकता है। चूंकि इंडिया में 28,000 एम्पीयर तक की बिजली ही गिरी है। इसलिए ग्राउंड में सिलेंडर को इन्सर्ट करते वक्त लेंथ को 20 फिट या उससे ज्यादा कर दी जाती है।

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बवाल भी कराते हैं ये ट्रांसफॉर्मर

हर साल जल जाते हैं एक हजार से अधिक ट्रांसफॉर्मर

KANPUR: सिटी में पॉवर क्राइसिस की एक बड़ी वजह ट्रांसफॉर्मर डैमेज होना भी है। एक बार ट्रांसफॉर्मर डैमेज होने पर बदलने में केस्को को 24-24 घंटे तक लग जाते हैं। लोग बिजली के साथ पानी के संकट से भी जूझते रहते हैं। गर्मी और बरसात में तो स्थिति और भी खराब हो जाती है। कई-कई दिन तक ट्रांसफॉर्मर न बदले जाने से गुस्साए लोग सडक़ पर उतर आते है। हंगामा, बवाल काटते है।

शार्टेज हो जाती है

सिटी में चार हजार से अधिक केस्को के डिस्ट्रिब्यूशन ट्रांसफॉर्मर लगे हुए हैं। हर महीने एवरेज 100 ट्रांसफॉर्मर जलते हैं। गर्मी में ये संख्या दो गुनी तक पहुंच जाती है। ये सिलसिला मानसून सीजन खत्म होने के बाद बन्द होता है। इस बीच अधिक संख्या में ट्रांसफॉर्मर जल जाने की वजह केस्को में ट्रांसफॉर्मर्स की शार्टेज हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह ट्रांसफॉर्मर्स का प्रॉपर रखरखाव न किया जाना है। ट्रांसफॉर्मर्स को ‘हेल्दी’ बनाए रखने में अहम रोल निभाने वाले अर्थिंग की परवाह नहीं करना है। अर्थिंग, लोड, ऑयल में लापरवाही ट्रांसफॉर्मर फुंकने की वजह साबित होती है। अर्थिंग प्रॉपर न होने से करंट फ्लो अनबैलेंस हो जाता है। जो ट्रांसफॉर्मर डैमेज होने का बड़ा कारण साबित होता है। हालांकि ट्रांसफॉर्मर के लिए पाइप अर्थिंग और अर्थिंग रॉड लगाए जाते है। लेकिन एक बार अर्थिंग टूटने या फिर ट्रांसफॉर्मर जलने के बाद इम्प्लाई दोबारा जोडऩे पर ध्यान नहीं देते है।

केस्को का नुकसान, पब्लिक परेशान

इसकी वजह से केस्को को भी फाइनेंशियल लॉस होता है। ट्रांसफॉर्मर रिपेयरिंग, क्वाइल आदि में केस्को का हर ट्रांसफॉर्मर पर हजारों रुपए खर्च होता है। अधिक संख्या में ट्रांसफॉर्मर जलने के कारण उसे तीन वर्कशॉप बनानी पड़ीं। पिछले साल तो दादा नगर, उन्नाव भेजकर भी ट्रांसफॉर्मर रिपेयर कराए गए थे। यही नहीं पब्लिक को 24-24 घंटे तक लाइट नहीं मिलती है। इस बीच इनवर्टर भी दम तोड़ देते है। फिर लोगों को बिजली के साथ पानी संकट का भी सामना करना पड़ता है।

ईयर- ट्रांसफॉर्मर डैमेज

2012-13-- 1347

2011-12-   1092

2010-11-   792

2009-10-   738

2008-09-   828

इस वर्ष डैमेज हुए ट्रांसफॉर्मर

सितंबर- 130 (से अधिक)

अगस्त- 142

जुलाई- 199

जून-    221

मई-    137

अप्रैल-  92

मार्च-    57

फरवरी- 104

जनवरी- 141