- लोगों में तनाव की गवाही दे रहे हैं मेरठ के दंगे

- गर्मी का मौसम शुरु होते ही बढ़ काफी जाता है तनाव

- शहर के हालात भी लोगों को बनाते हैं चिड़चिड़ा

- मार्च से जुलाई के बीच हुए हैं अधिकांश दंगे

- लोगों को मामूली बातों पर भी आ जाता है गुस्सा

navneet.sharma@inext.co.in

Meerut: अजब सा मंजर अपने शहर में नजर आता है, हर कोई अजीब से तनाव में नजर आता है किसी शायर की ये रचना इस समय मेरठ पर सटीक साबित हो रही है। बात-बात पर झगड़ा करने पर आमदा होते लोग और उनका मिजाज शहर की आबोहवा को जहरीला कर रहा है। पिछले कुछ गंभीर मामलों पर नजर डालें तो सच कुछ ओर नजर आता है। बात चाहे सड़क पर मारपीट की हो या दंगा भड़कने की, लोगों की मनोदशा एक सी नजर आई। आजादी के बाद मेरठ में हुए दंगों की काली तारीख पर गौर करें तो, अधिकांश चिंगारी मार्च से जुलाई के बीच भड़की। यानि मौसम गर्म हो तो माहौल भी जल्दी गर्म होता है। इसके अलावा लोगों का खुद का तनाव भी इस चिंगारी को हवा देने में अधिक हावी होता दिखा।

मौसम बदलता है मिजाज

अप्रैल का शुरू होते ही मौसम अपना असर दिखाने लगता है और लोगों की दिनचर्या से लेकर उनका मिजाज में भी बदलाव आता है। खुद मनोचिकित्सक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि अप्रैल में मौसम का बदलाव होना व्यक्ति के स्वभाव को अधिक प्रभावित करता है। छोटी बात पर गुस्सा आना, बात-बात पर उग्र होना और चिड़चिड़ा पन अधिक हावी हो जाता है। कई बार इसके दुष्परिणाम भी सामने आते है।

गायब होता सुकून

मौसम गर्म होने के साथ लोगों का सुकून भी गायब होने लगता है। अप्रैल में बच्चों के दाखिले की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, ऐसे में अभिभावक अतिरिक्त तनाव में होते हैं। इसके अलावा रात में लगने वाला बिजली कट और नींद पूरी नहीं होने से भी दिमाग पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और तनाव अधिक बढ़ता है। दिन के समय सूर्य की गर्म शरीर की ऊर्जा को कम करती है और इसका सीधा प्रभाव व्यक्ति की सोच और समझ पर असर करता है। डॉक्टर्स भी इस तथ्य की वकालत करते हुए बताते हैं कि तन और मन को सुकून नहीं मिलने से व्यक्ति का स्वभाव उग्र होने लगता है।

सच से होता सामना

जनवरी ख्0क्ब् से क्0 मई तक हुई मारपीट की के आंकड़ों पर नजर डाले तो सच तनाव के अधिक करीब नजर आता है। जनवरी, फरवरी और मार्च में मारपीट और झगड़े की जनपद भर में फ्म्ब् घटनाएं हुई और मामले थाने तक पहुंचे। जबकि फस्ट अप्रैल से क्0 मई तक ख्क्ब् मामले मामूली बातों पर हुई मारपीट के दर्ज किए गए। दर्ज मामलों पर गौर करें तो अधिकांश मामले छोटी-छोटी बातों पर हुए विवाद को लेकर थे।

तनाव का है दंगों से रिश्ता

कई बार साबित हो चुका है कि वातावरण में बदलाव दिमाग को भी प्रभावित करता है। मेरठ में हुई दंगे की घटनाएं भी इस सच को साबित कर रही है। मौसम के साथ लोगों के मिजाज पर भारी तनाव दंगे की शक्ल में कई बार सामने आ चुका है। तारीख पर गौर करें तो, सच सामने आता है। साल क्98म् में हुए दंगे एक मार्च को शुरू हुए और अप्रैल तक फ् लोगों ने जान गवाई। साल क्987 में हुए दंगे अप्रैल से शुरू होकर जुलाई तक चले और क्फ्म् लोगों ने जान गवाई। इसके बाद साल साल क्99क् में हुए दंगे ख्0 मई को शुरू हुए और फ्ख् लोग इसमें मारे गए। इसके बाद साल क्99क् में ही फिर दंगा क्ख् जून को भड़का और एक व्यक्ति की मौत हुई। साल ख्009 में भी क्म् जून को सांप्रदायिक आग में मेरठ जला। इसके बाद ख्0क्क् में ख्ब् अप्रैल को आपसी भाईचारे के माहौल में आग लग गई। अब फिर शहर दंगे की आग में जला और तारीख और समय क्0 मई का है।

दंगा रोकना है तो हालात सुधारें

क्या आपने कभी चंडीगढ़ में दंगे की बात सुनी है। अगर शहर में वक्त पर बिजली-पानी मिले, साफ-सुथरी और जाम रहित सड़कें मिलें तो क्यों लोगों में गुस्सा भड़के। शहर का माहौल भी व्यक्ति की सोच और समझ पर अधिक असर डालता है। इन दिनों रात में बिजली कटौती और मच्छरों की फौज नींद गायब किए है। उधर, सुबह काम पर जाने की जल्दी और नल से गायब होता पानी मन को अशांत कर देता है। इसके बाद घर से निकलो तो टूटी सड़क और रोड जाम से सामना दिल दिमाग को अधिक चिड़चिड़ा बना देता है। ऐसे में किसी से बहस हो जाना बात को और बिगाड़ देता है। ऐसा ही हालात का सामना वापसी के समय भी व्यक्ति को करना होता है। ऐसे में आखिर मानसिक अशांति उग्रता का कारण बन जाती है।

बेहद जरूरी है मानसिक शांति

गर्मियों के मौसम में आदमी इसलिए जल्दी भड़क जाता है, क्योंकि दिन बड़े होने के साथ ही लू की थपेड़ो के साथ इंसान की एनर्जी ज्यादा खर्च होती है, बढ़ते तापमान के साथ ही बॉडी को ढालने में काफी एनर्जी लगती है, वहीं अधिक ऊर्जा खर्च होने की वजह से मानसिक शांति भंग हो जाती है। रात में आराम की नींद न मिल पाना और भी चिड़चिड़ा बना देती है। ऐसे में व्यक्ति अपना धैर्य और विवेक दोनों ही खो बैठता है। इसके अलावा व्यवस्थाओं की कमी भी इंसान की दिनचर्या को प्रभावित करती है। मौसम में बदलाव के कारण हमारे ब्रेन में ज्यादा हार्मोस निकलने लगते हैं और यह व्यक्ति के स्वभाव को प्रभावित करता है।

- अनीता बजाज, मनोवैज्ञानिक

दिमाग को शांत करने के लिए ताजे पानी का बहुत महत्व रहता है, लेकिन अगर इन दिनों में पानी और बिजली नहीं मिलेगी तो मस्तिष्क पर विपरित प्रभाव ही पड़ता है, ऊपर से नींद का पूरा न हो पाना और आराम न मिलना भी व्यक्ति के मानसिक, व्यक्तिगत और व्यवहारिक जीवन पर गहरा और विपरीत प्रभाव पड़ता है।

- डॉ। पूनम देवदत्त, मनोवैज्ञानिक

ये बात पूरी तरह से सही है क्लाइमेटिक चेंज का काफी फर्क पड़ता है। गर्मियों में इस तरह की घटनाएं काफी देखने को मिलती है। अग्रेशन लेवल काफी बढ़ता है और टॉलरेंस लेवल काफी नीचे आ जाता है। साथ पॉल्युशन लेवल काफी हाई है। वहीं ग्लोबल वॉर्मिग के कारण भी लोगों में साइकॉलोजिकल चेंज ला रही है। अननैचुरल क्लाइमेट भी लोगों के माइंड पर नेगेटिव असर डाल रहा है। इससे उसके माइंड पर निगेटिव असर पड़ता है और ऐसी चीजें सामने आती हैं।

- डॉ। इजराइल

मेरठ कॉलेज में साइकोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड

हमारे एक समाज शास्त्री हुए हैं उनका नाम है इमाइल दुरखिम। उन्होंने अपनी रिसर्च में कहा है कि क्राइम और सुसाइड अधिकतर गर्म देशों में या गर्मियों में ज्यादा होते हैं। लेकिन दंगों का जिक्र उन्होंने अपने रिसर्च में नहीं किया है। दंगा एक ओरिएंटिड होता है। जो किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाता है। दंगा करने वाले किसी धर्म से संबंध नहीं रखते हैं। ऐसे में सिर्फ इनोसेंट लोग पिसते हैं और उनका ही नुकसान होता है।

- संगीता गुप्ता, समाजशास्त्री