- जनवरी से अब तक इंसेफेलाइटिस के 372 पेशेंट एडमिट, 96 की चली गई जान

- शासन ने इंसेफेलाइटिस को कर लिया असाध्य रोग में शामिल, मगर खाते में रुपए ही नहीं भेजा

- अप्रैल में ही मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने शासन से मांगे थे एक करोड़ रुपए, नहीं दी फूटी कौड़ी

GORAKHPUR: बदलता मौसम इंसेफेलाइटिस के लिए सबसे मुफीद है तो इसके रोगियों के लिए मौत सरीखा। ऐसे में इंसेफेलाइटिस प्रभावित इस इलाके में इस समय इससे लड़ने के हर इंतजाम होने चाहिए। लेकिन, पूर्वाचल के सबसे बड़े अस्पताल- बीआरडी मेडिकल कॉलेज में चार महीनों से इस रोग के मद में कोई पैसा ही नहीं आया है। अप्रैल 2016 में ही मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने शासन को पत्र लिखकर एक करोड़ रुपए की मांग की थी लेकिन जुलाई भी बीत गया, रुपए नहीं मिले। हालत यह है कि इंसेफेलाइटिस से मौतों को कम करने के जितने दावे जिम्मेदारों ने किए, उतने भी रुपए खाते में नहीं है। इसका परिणाम भी घातक है। जनवरी से मेडिकल कॉलेज में 372 पेशेंट्स एडमिट हुए और 96 पेशेंट्स के परिजन उनका शव लेकर ही लौटे। यानी, महज 7 माह में करीब 100 लोगों की मौत हो चुकी है। बावजूद, इलाज के लिए खाते में फूटी कौड़ी नहीं है।

गत वर्ष लौट गए थे रुपए

पिछले वर्ष तक इंसेफेलाइटिस असाध्य रोग की श्रेणी में शामिल नहीं था। असाध्य रोग के मद में पिछले वित्तीय वर्ष में 3 करोड़ 60 लाख रुपए बच गए, जो 31 मार्च को वापस हो गए। एक तरफ इंसेफेलाइटिस रोगियों के इलाज में रुपए की जरूरत और दूसरी तरफ असाध्य खाते में रुपए की बचत को देखते हुए शासन ने नए वित्तीय वर्ष में इंसेफेलाइटिस को भी असाध्य रोग में शामिल कर लिया। यानी, अप्रैल से जेई-एईएस के इलाज के लिए भी असाध्य खाते का ही उपयोग किया जाना है। लेकिन, नए वित्तीय वर्ष में इस बजट में एक भी रुपया नहीं मिला।

अप्रैल में ही मांगा बजट

रुपए नहीं मिलने पर मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने अप्रैल में ही एक करोड़ रुपए की डिमांड शासन को भेजा। इसके बाद कई बार रिमाइंडर भी भेजा गया लेकिन शासन से इस मद में एक भी रुपया नहीं मिला। पिछले वित्तीय वर्ष में जहां रुपए लौट गए वहीं जारी वित्तीय वर्ष में इस बजट में फूटी कौड़ी नहीं होने से इंसेफेलाइटिस रोगियों के लिए मुसीबत हो गई है। बजट नहीं होने से जरूरी दवाइयां, उपकरण व अन्य जरूरत की चीजें मेडिकल कॉलेज प्रशासन नहीं खरीद पा रहा। हालांकि कॉलेज प्रशासन से पूछने पर वह किसी तरह इंतजाम करने की बात कहता है लेकिन सच्चाई यही है कि बिना रुपए इंतजाम का सिर्फ दावा ही हो सकता है, कुछ किया नहीं जा सकता और बिना कुछ किए इंसेफेलाइटिस से मौतों को रोक पाना तो नामुमकिन ही है।

एक ह़फ्ते में ही गई कई जानें

मेडिकल कॉलेज के आंकड़ों की ही बात करें तो एक हफ्ते के अंदर आसपास के जिलों के दर्जन भर मासूमों की जान इंसेफेलाइटिस से जा चुकी है। सौ बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड के एसआईसी ने पिछले शुक्रवार को ही नेहरू चिकित्सालय के एसआईसी से दवाइयां, 80 अंबू बैग ओर लेरेंगोस्कोप की डिमांड की लेकिन इसकी पूर्ति नहीं हो पाई। अब जिम्मेदार अपने बचाव में कुछ भी कहें लेकिन समझा जा सकता है कि बिन दवा मेडिकल कॉलेज में किस तरह का इलाज हो रहा है। जिम्मेदारों का कहना है कि लोकल पर्चेजिंग कर कुछ दवाएं मंगवाई गई हैं।

बजट नहीं, सिर्फ आदेश

पिछले दिनों हालात का जायजा लेने टीम बीआरडी मेडिकल कॉलेज आई थी। टीम में शामिल अधिकारियों ने आदेश दिया कि इंसेफेलाइटिस रोगियों के इलाज में किसी तरह की लापरवाही न बरती जाए। व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करने का भी आदेश दिया। लेकिन, डर के मारे न तो मेडिकल कॉलेज प्रशासन के जिम्मेदार ही पूछ पाए कि बिना बजट किस तरह का इंतजाम करें और न ही आदेश देने वाले अधिकारियों ने हीं यह बात सोचा कि बिना दवाओं के डॉक्टर किस तरह का इलाज करें। इस तरह कोरे आदेश, दावों और आश्वासनों से मरीजों को छला जा रहा है और बीआरडी उनके लिए कब्रगाह साबित हो रहा है।

खतरनाक हैं आंकड़ें

- 372 मरीज हुए एडमिट

- 96 की हो गई मौत

- 74 हैं ऑनबेड

(जनवरी से अब तक का आंकड़ा)

ये हैं असाध्य रोग

- कैंसर

- गुर्दा संबंधी बीमारी

- हार्ट में गड़बड़ी

- इंसेफेलाइटिस

- ए प्लास्टिक एनिमिया

- थैलासिमिया ब्लड को न बनने देना आदि

वर्जन

पिछले साल असाध्य रोगियों के इलाज के लिए जो धन आया था वह लेप्स हो गया। अप्रैल में ही एक करोड़ रुपये की डिमांड की गई। फिर शासन से बजट के लिए बात की गई है। उम्मीद है जल्दी राशि मिल जाएगी।

- डॉ। राजीव मिश्रा, प्रिंसिपल, बीआरडी मेडिकल कॉलेज