शिक्षक उठा रहे सवाल, सिस्टम सुधारने की बजाय शिक्षकों पर सख्ती कहां तक उचित

- सूबे में डिग्री कॉलेजों का प्रदर्शन सरकारी कॉलेजों से बेहतर

- सरकार ने वित्त रहित शिक्षा नीति को जारी रखा है

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PATNA : बिहार बोर्ड का इंटर, विशेष तौर पर इंटर सांइस का रिजल्ट बेहद निराशाजनक रहा। इसे लेकर सभी एक दूसरे को घेर रहे हैं। लेकिन इसकी तह तक पहुंचने का प्रयास कहीं नहीं हो रहा है। जानकारी हो कि बिहार बोर्ड की इंटर की परीक्षा में तीन प्रकार की शिक्षा व्यवस्था से छात्र जुड़े रहे है। इसमें अंगीभूत विद्यालय, प्लस टू विद्यालय और वित्तरहित शिक्षा के कॉलेज भी हैं। इसमें वित्तरहित में दो प्रकार है, एक इंटर कॉलेज और दूसरा डिग्री कॉलेज। इस प्रकार इसमें कई स्तर की शिक्षा व्यवस्था है। इन्हीं में सभी को शामिल कर इंटर के करीब क्फ् लाख छात्र शामिल हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इस ज्वलंत समस्या को लेकर विशेषज्ञों से बात की। पेश है रिपोर्ट

तल्खी सिर्फ शिक्षकों पर

अलग- अलग या कहें कि इंटर की पढ़ाई की बहुस्तरीय समानांतर शिक्षा व्यवस्था पर चुप्पी साधे और शिक्षकों पर दोष मढे़, यह सवाल शिक्षकगण सरकार से पूछ रहे हैं। यह प्रक्रिया तब आ रही है जब सरकार ने शिक्षकों पर अपनी तल्खी दिखायी है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि जिन स्कूलों का रिजल्ट खराब आया है, उन शिक्षकों को तबादले से लेकर शिक्षण कार्य से हटाकर अन्य कार्यो में लगाया जा सकता है। इस मामले को लेकर नियोजित शिक्षकों पर भी आंच आ सकती है। हालांकि नियोजित शिक्षकों का तबादला नियोजन इकाई से बाहर नहीं हो सकेगा।

डिग्री कॉलेज सरकारी कॉलेजों से बेहतर

यदि इस बार के इंटर रिजल्ट का तुलनात्मक अध्ययन के तौर पर संबद्धता प्राप्त डिग्री कॉलेज और सरकारी विद्यालयों को लें, तो इसमें संबद्धता वाले डिग्री कॉलेजों का रिजल्ट बेहतर रहा है। उदाहरण के तौर पर राम लखन सिंह यादव डिग्री कॉलेज, अनिसाबाद में करीब फ्भ्0 छात्र- छात्राएं परीक्षा के लिए अपीयर हुए थे जिसमें करीब भ्ख् प्रतिशत छात्र फ‌र्स्ट और सेकेंड डिवीजन लाये है। जबकि राजधानी के अन्य सरकारी स्कूल इंटर रिजल्ट के मामले में पीछे रह गए हैं। अधिकांश स्कूलों में रिजल्ट खराब हुआ है।

तो और स्थिति बिगड़ जाएगी

सरकार ने वित्तरहित शिक्षा नीति को जारी रखा है। जबकि इसे समाप्त कर वेतनमान देने की मांग कई बार उठायी गई है। इस नीति में छात्र- छात्राओं के पास परसेंटेज के आधार पर अनुदान दिया जाता है। लेकिन यह भी समय पर नहीं मिल पाता है। इस बार जब रिजल्ट बहुत ही खराब होने की वजह से इस मामले पर डिग्री कॉलेज के शिक्षक चिंतित है। दूसरी बात, इन कॉलेजों के भरोसे ही ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्र- छात्राएं अपनी पढ़ाई पूरी कर पाते हैं। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर या शिक्षकों के मनोबल को बढ़ाने का प्रयास सरकार नहीं करती है।

समान शिक्षा नीति की मांग

इस पूरे मामले से एक अर्से से लड़ाई लड़ रहे बिहार इंटरमीडिएट शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ के प्रांतीय संयोजक जय नारायण सिंह ने कहा कि पूरी व्यवस्था ही दोषी है। जब तक समान शिक्षा प्रणाली लागू नहीं होती और इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेज के परफारमेंस का सही आंकलन नहीं होगा तक तक स्थिति नहीं सुधर सकती है। इंटर का रिजल्ट व्यवस्था का ही आइना है।

उपेक्षित हैं शिक्षक

बिहार राज्य संबद्ध डिग्री महाविद्यालय शिक्षक शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष रामविनेशवर सिंह ने कहा कि शिक्षक उपेक्षित हैं। खराब रिजल्ट के लिए शिक्षक जिम्मेवार नहीं है। शिक्षको से गैर शैक्षणिक कार्य भी कराये जाते हैं। जबकि सुधार के तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरूस्त करने और शिक्षकों की शिकायतें दूर करने का प्रयास होना चाहिए।

हाइलाइट्स

- प्रदेश भर में डिग्री कॉलेजों की संख्या - लगभग ख्भ्0

- ग्रामीण एवं दूर- दराज के क्षेत्र में महाविद्यालय स्तर की शिक्षा डिग्री कॉलेजों के भरोसे

- सरकार ने कभी डिग्री कॉलेज नहीं खोला, इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी ध्यान नहीं दिया।

- एक डिग्री कॉलेज से करीब फ्000 छात्र- छात्राएं पढाई कर पाते हैं।