आगरा। फ्लड जोन में बनीं बहुमंजिला इमारतों के नक्शे बेशक एडीए पास कर चुका है। लेकिन, उनके ऊपर भी तलवार लटकी हुई है। एडीए ने यमुना के डूब क्षेत्र में हुए निर्माणों की बाउंड्रीवॉल तोड़कर मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने की अच्छी कोशिश की है, लेकिन एनजीटी में याचिका में दी गयी दलीलों को नकारा नहीं जा सकता है। शायद इसीलिए कमिश्नर ने एडीए वीसी को निर्देश दिए हैं कि यमुना के डूब क्षेत्र की पैमाइश दोबारा की जाए, अगर डूब क्षेत्र में कोई ऐसी बिल्डिंग आती है, जिसका नक्शा पास किया जा चुका है तो उसे निरस्त कर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाए।

1978 की बाढ़ है आधार

याचिकाकर्ता डीके जोशी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) में जो याचिका दायर की है, उसका आधार वर्ष 1978 में आई बाढ़ को बनाया गया है। डीके जोशी के अनुसार बाढ़ के दौरान पानी से प्रभावित होने वाला क्षेत्र ही यमुना नदी का असली डूब क्षेत्र है। 15 बिल्डिंग्स ऐसी हैं जो इस डूब क्षेत्र में शामिल हैं। इन बिल्डिंग्स का मैप एडीए द्वारा पास किया है। याचिकाकर्ता डीके जोशी का कहना है कि इस क्षेत्र को मैप में डिमार्क क्यों नहीं किया गया। इस विषय को कमिश्नर प्रदीप भटनागर ने गंभीरता से लिया है। साथ ही एनजीटी के डंडे के बाद औपचारिकता के तौर पर एडीए की ओर से हो रही कार्रवाई का दांव कहीं जवाब दाखिल करने के दौरान कोर्ट में उल्टा न पड़ जाए, इसका भी भय अधिकारियों को सता रहा है।

आखिर पिसेगी जनता ही

एनजीटी का डंडा और कमिश्नर की सख्ती के बाद एडीए वीसी उन ?िाल्डिंग्स के मैप निरस्त कर देतीं है और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई होती है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? एडीए ने डूब क्षेत्र में मेप पास कर दिए। बिल्डर ने सेटिंगकर पास करा लिया, इसके बाद फ्लैट लोगों को बेचकर मोटा मुनाफा कमा लिया। एडीए और बिल्डर दोनों ने ही तथ्यों को छिपाकर मोटी कमाई कर ली। कोई मरे तो मरे, इन्हें क्या लेना। अगर बिल्डिंग्स को ध्वस्त किया जाता है तो असल नुकसान तो लोगों का ही होगा, जिन्होंने फ्लैट खरीदे हैं।

दोषियों पर एक्शन क्यों नहीं?

सवाल यह खड़ा होता कि भला डूब क्षेत्र में भला बिल्डिंग्स बनकर खड़ी कैसे हो गई? इसके लिए किस विभाग की जिम्मेदारी है। सवाल यह भी खड़ा होता है कि जब बिल्डिंग्स का निर्माण हो रहा था तब तब सरकारी अमला कहां सो रहा था? एडीए के मैप पास करने से पहले सिंचाई विभाग ने भी इन बिल्डिंग्स को बनाने के लिए एनओसी जारी कर दी। अब एनजीटी के डंडे के बाद मैप निरस्त कर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई हो रही तो जिनकी शह पर ये बिल्डिंग्स खड़ी हो गईं, उन असल दोषियों अधिकारियों के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा?

किस पर करें विश्वास

जहां पर भी कोई व्यक्ति प्लॉट या फ्लैट खरीदता है तो वह सबसे पहले एडीए से नक्शा पास है या नहीं देखता है। एडीए से पास मैप जनता के लिए विश्वास का एक बड़ा जरिया है। बावजूद इसके बिल्डिंग के विरुद्ध कोई कार्रवाई होती है तो नुकसान मकान स्वामी को ही उठाना पड़ता है। जबकि इसके लिए जिम्मेदार एडीए और बिल्डर है। यह कार्रवाई उनके विरुद्ध होनी चाहिए, जो तथ्यों को छिपाकर आंखों में धूल झोंकने का क ाम करते हैं।

निरस्तीकरण का आधार

किसी भी निर्माण का नक्शा पास हो भी जाता है तो उसे धारा-15 के तहत निरस्त किया जा सकता है। तथ्य छिपाए गए यह कहते हुए नक्शा निरस्त किया जा सकता है।