नियम का ताक पर                                                                                                                                                                        रोडवेज बस में यात्री को जो टिकट दी जाती है उसमें बस का नम्बर, किराया और यात्री की यात्रा का विवरण भरना होता है। कंडक्टर यह डिटेल कम्प्लीट नहीं भरते हैं। यात्री को जो टिकट मिलती है उस पर बस धुंधला सा पेन चला होता है। उसमें कंडक्टर के साइन तक नहीं दिखते।

मौके देख मारते हैं चौका  

रोडवेज बस में ईटीएम (इलेक्ट्रानिक टिकट मशीन) का प्रावधान है। इस टिकट पर टाइम, डेट, बस नंबर और जरूरी डिटेल प्रिंट होती है। मशीन के न होने अथवा खराब होने पर कंडक्टर मैनुअल टिकट देते हैं। इसका वह फायदा भी उठाते हैं।

फेस टू फेस

आगरा के सदर निवासी मुदित अग्रवाल ने सोमवार को फोर्ट डिपो की बस से नगला बीच तक की यात्रा की। कंडक्टर ने उन्हें मैनुअल टिकट दे दी। घर आकर देखा कि कंडक्टर ने जो टिकट काटी है उसमें किराया टूंडला तक का ही है, जबकि पैसे नगलाबीच तक के लिए गए। टिकट पर एंट्री ऐसी थी कि बमुश्किल से पढ़ी जा रही थी। शिकायत की सोची तो टिकट पर न तो कंडक्टर के साइन थे और नहीं बस का नंबर था यात्रा विवरण तक नहीं था। इसी तरह आगरा निवासी संजय ने आईएसबीटी से दिल्ली की बस ली। बस में जो टिकट मिली उसमें कोई भी डिटेल नहीं थी।

यह होती है दिक्कत

टिकट में कोई डिटेल न होने पर यात्री को सबसे अधिक परेशानी तब होती है जब उसका सामान बस में रह जाता है। वह सामान की तलाश करता है तो बस का नंबर पता करने में ही घंटों बीत जाते हैं। यात्री की जेब आदि कटने पर भी उसे खामियाजा भुगतना पड़ता है। जेब कटने पर वह पुलिस पर जाता है तो पुलिस बस नंबर न होने से किसी से पूछताछ तक नहीं करती। यही नहीं बस नंबर न होने से यात्री को  बस स्टॉफ की शिकायत करने में ही पसीने छूट जाते हैं।

यह गलत है। टिकट को चेक कराया जाएगा। टिकट की कार्बन कॉपी पर लिखे ऑप्शन को भरा जाना जाना जरूरी है।

अशोक कुमार, आरएम

रोडवेज आगरा