- सिटी के कमोबेश सभी बस अड्डे बदहाली की कगार पर

- बस स्टॉपेज पर लोग मुफ्त में चला रहे दुकानें

- नगर निगम इनके रखरखाव की नहीं लेता सुध

- मुफ्त में विज्ञापन चस्पाकर लोग नगर निगम को पहुंचा रहे आर्थिक नुकसान

LUCKNOW: कहीं स्टापेज पर दुकान खुल गई हैं तो कहीं पर झूले पड़ गए हैं। बारिश हो या फिर तेज धूप पैसेंजर्स को बसों के लिए स्टॉपेज पर नहीं रोड पर ही खड़े होकर सिटी बसों का इंतजार करना पड़ता है। इन स्टॉपेज पर कहीं कोचिंग के बैनर तो कहीं टाइप क्लासेज के पम्पलेट लगे हुए हैं जबकि इनमें विज्ञापन करने के लिए नगर निगम की अनुमति लेनी पड़ती है और शुल्क जमा करना पड़ता है। इन बस अड्डों से नगर निगम को लाखों का फायदा मिल सकता है। वहीं, कबाड़ बन चुके इन स्टॉपेज पर लोगों ने अपने बैनर फ्री में ही लगा रखे हैं।

खुल गई हैं दुकानें

शहर में सिटी बसों के संचालन के लिए फ्7 बस स्टॉपेज बनाए गए थे। विभिन्न रूटों पर बने इन्हीं बस स्टॉपेज पर बसों को रुकना था और यहीं से पैसेंजर्स को पकड़नी थी। लेकिन, न तो बसें यहां रुकती हैं और न ही स्टॉपेज पर पैसेंजर्स बसों का वेट करते हैं। इन अड्डों पर या तो पियक्कड़ों का कब्जा रहता है या फिर दुकानें खुल गई हैं। आलमबाग कोतवाली के सामने बने बस अड्डे में मुंगफली और दाल-चावल के बोरे लगे हुए हैं। यहां पर दुकान खुल चुकी है। ऐसा ही हाल बापू भवन के सामने बने बस अड्डे का है। यहां पर बने बस अड्डे पर पान, गुटखा बिकता है। हजरतगंज चौराहे से सिकंदरबाग जाने वाली रोड पर दो जगह स्टॉपेज बने हैं लेकिन इनसे कुर्सियां नदारद हो चुकी हैं।

एडवर्टिजमेंट का अड्डा

परिवहन विभाग के अधिकारियों की मानें तो लाखों की लागत से बने इन बस अड्डों के रखरखाव की जिम्मेदारी नगर निगम को दी गई थी। लेकिन, उसने बनने के बाद एक बार भी इनकी सुध नहीं ली। इन बस अड्डों से नगर निगम को आर्थिक फायदा हो सकता है लेकिन वह इस तरफ ध्यान ही नहीं देता। इन जगहों पर कोचिंग, फर्नीचर, टाइप क्लासेज, प्राइवेट हॉस्पिटल्स और शक्तिवर्धक दवाओं के पोस्टर लगे हुए मिल जाएंगे। इनके खिलाफ भी नगर निगम ने कभी एक्शन नहीं लिया।

नगर निगम के साथ मिलकर ही ये बस अड्डे बनाए गए थे। उसी समय रखरखाव की जिम्मेदारी दे दी गई थी। आज सभी स्टॉपेज बदहाल हो चुके हैं।

-वीरेन्द्र कुमार वर्मा

एआरएम, गोमती नगर सिटी बस डिपो।