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PATNA: शिकार मामले में सलमान खान को जेल हो जाती है लेकिन यहां तो करोड़ों की खाल के कारोबार पर कोई निगरानी ही नहीं। पुलिस की सेटिंग से चल रहे इस खेल में जीएसटी भी फेल है। इस बड़े कारोबार का पटना सेंटर है जहां से कोलकाता और कानपुर तक खाल की हर माह बड़ी खेप भेजी जाती है। यह वन्य जीवों की खाल की तरह कीमती और प्रतिबंधित तो नहीं है लेकिन इसका कारोबार करोड़ों में है। गो हत्या पर रोक के बाद देश में बढ़ी इसकी डिमांड ने अवैध कारोबार का कनेक्शन काफी तगड़ा कर दिया है। डीजे आई नेक्स्ट आज खाल के कारोबार का बड़ा खुलासा करने जा रहा है।

जानकर चौंक जाएंगे आप

बकरी की खाल देखकर आप भी सोचते होंगे कि यह यूजलेस है, लेकिन लेदर की जैकेट, पर्स और अन्य चमडे़ के आइटम इसकी खाल से ही बन रहे हैं। इस कारोबार से जुड़े लोगों की मानें तो केंद्र में बीजेपी सरकार आने के बाद गाय को लेकर सख्ती बढ़ गई और यही बकरी की चमड़ी के बड़े कारोबार को बूम करने की बड़ी वजह बन गई।

पूरे प्रदेश में फैला है कारोबार

किसी भी कारोबार के लिए लाइसेंस और टैक्स का एक दायरा बनाया जाता है, लेकिन पटना से लेकर बिहार के अन्य जिलों में फैले खाल के कारोबार की कोई मॉनीटरिंग नहीं है। शहर में पटना और आस पास के दो दर्जन जिलों की खाल का स्टोर होता है और यही से कोलकाता व कानपुर की फैक्ट्री भेज दिया जाता है। इस खेल में न तो कोई टैक्स बाधा बनता है और न ही कोई रजिस्ट्रेशन। हर काम बस सेटिंग से चलता है। जीएसटी नंबर की व्यवस्था ट्रांसपोर्ट वाले कर देते हैं और बाकी का काम पुलिस को सुविधा शुल्क देते ही हो जाता है।

द्यपटना में एक बड़ा नेटवर्क एजेंटों का है जो सिर्फ मीट शॉप से खाल कलेक्ट करते हैं।

द्यइस खाल को वह पटना जंक्शन के पास न्यू मार्केट में एक्सपोर्ट करने वालों तक पहुंचा देते हैं।

द्यन्यू मार्केट में दिन रात काम कर रहे लेबर खाल को काटकर सही करते हैं और फिर नमक लगाकर उसे बंडल बनाते हैं

-सप्ताह में ट्रकों से खाल की बड़ी खेप पटना से कोलकाता, कानपुर के लिए रवाना हो जाती है।

-ऐसा हर सप्ताह होता है क्योंकि खाल एक सप्ताह से अधिक समय तक स्टोर हुई तो सड़ जाएगी

-खाल के स्टोरेज के लिए पटना के बाद मुजफ्फरपुर को कारोबारियों ने बड़ा सेंटर बना रखा है।

-एक्सपोर्ट करने वालों को एक खाल के पीछे मोटी रकम मिलती है, साइज से इसका रेट तय होता है।

-पटना में एक दर्जन ऐसे स्टोर हैं जहां हर सप्ताह खाल से भरी ट्रक रवाना होती है।

खाल के अवैध कारोबार की पड़ताल में डीजे आई नेक्स्ट का रिपोर्टर पटना जंक्शन के पास न्यू मार्केट पहुंचा। यहां गाडि़यों के कबाड़ का बड़ा करोबार होता है। गाडि़यों के कबाड़ के पीछे एक लाइन से चार-पांच फेस के मकान दिखे। यहां बाहर ही चमड़े को कटिंग करने का काम चल रहा था। यहां मोहम्मद शहाबुद्दीन नाम के कारोबारी से मुलाकात हुई। स्टिंग ऑपरेशन के दौरान शहाबुद्दीन ने खाल के कारोबार की सारी गणित का खुलासा कर दिया।

ट्रक लगते ही पुलिसवालों का खेल शुरू हो जाता है

रिपोर्टर - बकरी के खाल भी काम में आ जाता है क्या?

शहाबुद्दीन - हां खाल से ही तो लेदर का सामान बनता है जो आप लोग इस्तेमाल करते हैं।

रिपोर्टर - अच्छा यह तो पता नहीं था, मुझे पता था कि केवल बड़े जानवरों की खाल से ही यह सब बनता है।

शहाबुद्दीन - चमड़े की फैक्ट्रियों में इस खाल की फन्ीसिंग होती है फिर इससे सामान बनाए जाते हैं।

रिपोर्टर - इतना सारा खाल कहां से आया आप लोगों के पास?

शहाबुद्दीन - यहां पटना के साथ-साथ कई जिलों से खाल आती और यही से ही कोलकाता या कानपुर जाती है।

रिपोर्टर - इसके लिए तो आप लोगों ने लाइसेंस लिया होगा न?

शहाबुद्दीन - नहीं किस बात का लाइसेंस, सब ऐसे ही चलता है

रिपोर्टर - कोई रोकता नहीं है, बिना लाइसेंस के कारोबार को?

शहाबुद्दीन - कौन रोकेगा, हमारे काम में कोई भी हाथ नहीं डाल सकता है।

रिपोर्टर - कैसे भेजते हैं जब लाइसेंस नहीं है, रास्ते में तो पकड़ा भी जा सकता है?

शहाबुद्दीन - अरे नहीं जैसे ही यहां ट्रक लगता है पुलिस वालों का खेल शुरू हो जाता है।

रिपोर्टर - जीएसटी और अन्य टैक्स तो लगता ही होगा न?

शहाबुद्दीन - वह तो ट्रक वाला ही लेकर आता है

रिपोर्टर - किस फर्म का होता है,

शहाबुद्दीन - पता नहीं किस फर्म का होता है, सब ट्रांसपोर्ट वाले ही मैनेज करते हैं।