वैसे तो मेरा मानना था कि एक वोट न भी पड़े तो क्या फर्क पड़ता है। लेकिन, पिछले नगर निगम के चुनाव ने मेरा परसेप्शन चेंज कर दिया। मैं वोटर बनने के बाद पहली बार वोट डालने के लिए पहुंची थी। पोलिंग बूथ पर लम्बी क्यू थी। लगने लगा कहां आकर फंस गई। घर पर छुट्टी एंज्वॉय करते। लेकिन, चंद मिनट भी नहीं बीते कि प्रत्याशी के समर्थकों ने बारी-बारी से दस्तक देना शुरू कर दिया। पहली बार बड़ों की जुबान से अपनी लिए दीदी शब्द सुना था। थोड़ा अजीब लगा। कोई पैर पकड़ने की कोशिश कर रहा था तो कोई रिश्ते की दुहाई दे रहा था। इसके बाद मुझे एहसास हुआ कि यहां न आती तो क्या मिस करती। अपने वोट की ताकत का एहसास हो गया।

आकांक्षा, प्रोफेशनल