कंपनियों पर बढ़ेगा दबाव
भारत सरकार ने इस बार फरवरी 2015 में स्पेक्ट्रम नीलामी की योजना बनाई है. जिसके तहत टेलिकॉम कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ जायेगा. सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के महानिदेशक राजन एस.मैथ्यूज का कहना है कि, सरकार के इस फैसले से कंपनियों पर निश्चित तौर पर शुल्क बढ़ाने का दबाव होगा क्योंकि नीलामी के बाद टेलिकॉम कंपनियों का कर्ज बढ़ जायेगा जिससे उन्हें यह बोझ कस्टमर्स पर डालना होगा. मैथ्यूज ने यह भी कहा कि, भले ही 900 मेगाहर्ट्ज और 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम रिजर्व प्राइस पर बेचे जायें, तो भी ऑपरेटर्स को स्पेक्ट्रम के लिये 40,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना ही होगा.

बेस प्राइज होगा 10 परसेंट अधिक
सीओएआई के महानिदेशक का कहना है कि, 'आखिर पैसा कहां से आयेगा. अधिक कर्ज का बोझ होने के चलते बैंक भी टेलिकॉम ऑपरेटरों को कर्ज देने से कतरा रहे हैं. इसके अलावा, टेलिकॉम कंपनियों को नेटवर्क ढांचे पर खर्च करना है. ऐसे स्पेक्ट्रम के लिये इतनी मोटी रकम भुगतान करने के बाद कंपनियों को कुछ बोझ कस्टमर्स पर डालना ही होगा. टेलिकॉम ऑपरेटर रेग्युलेटर ट्राई ने 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम नीलामी के अगले दौर के लिये बेस प्राइज 10 परसेंट अधिक रखने का सुझाव दिया था. ट्राई ने 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड के लिये 2,138 करोड़ रुपये प्रति मेगाहर्ट्ज और 900 मेगाहर्ट्ज बैंड के लिये 3,004 करोड़ रुपये प्रति मेगाहर्ट्ज के मूल्य का सुझाव दिया था.          

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