RANCHI: दोस्त वही जो मुसीबत में काम आए। यह कहावत डोरंडा सेंट जेवियर्स स्कूल के स्टूडेंट्स ने चरितार्थ कर दी है। जीबी सिंड्रोम से परेशान अपने दोस्त की बेबसी स्कूल के बच्चे देख नहीं पाए। बीमार दोस्त का बेहतर इलाज हो और वह ठीक हो जाए इस मकसद से उन्होंने घर-घर जाकर चंदा मांगा और क्ख् घंटे में ही क्.90 लाख रुपए जुटा लिये। इन रुपए का इस्तेमाल सातवीं क्लास के स्टूडेंट कुशाग्र रुचि के इलाज में होगा। उसका इलाज मेडिका अस्पताल में चल रहा है। कुशाग्र सेंट जेवियर्स स्कूल की सातवीं ए का स्टूडेंट है। चंदे से मिली रकम कुशाग्र के पिता को शनिवार को ही दे दी गई। वहीं, इलाज बेहतर तरीके से हो इसके लिए अभी चंदा इकट्ठा करने का अभियान भी चल रहा है। यही नहीं, बीमार स्टूडेंट के जल्द ठीक हो जाने की कामना के साथ स्कूल में छात्रों ने प्रार्थना भी की।

अध्यांत राज ने खूब की मेहनत

सेंट जेवियर्स के ही क्लास म् सी के स्टूडेंट अध्यांत राज को जब अपने सहपाठी की बीमारी का पता चला तो उसने अपने पिता को इसकी जानकारी दी। पेशे से इंजीनियर उनके पिता जीतेंद्र अमृत राज ने अपनी तरफ से उसे भ्0क् रुपए दिए और मां ने क्0 रुपए की मदद की। इसके बाद अध्यांत बरियातू के राज अपार्टमेंट के लोगों से मदद मांगने चला गया और चंदे से क्फ्9क् रुपए जुटा लिये। स्कूल मैनेजमेंट भी इस दिशा में पीछे नहीं रहा और स्कूल के सीनियर सेक्शन के बच्चों ने भी चंदा इकट्ठा कर शाम होते-होते क्.90 लाख जमा कर लिये। इसके बाद स्कूल के सीनियर सेक्शन के स्टाफ ने यह राशि कुशाग्र के पिता को दे दी।

पहल बच्चों की ओर से हुई

सेंट जेवियर्स स्कूल के प्रिंसिपल फादर अजीत खेस ने बताया कि स्टूडेंट्स की इस मुहिम की जितनी तारीफ की जाए, कम है। अपने साथी स्टूडेंट की मदद के लिए पहल स्टूडेंट्स की ओर से ही की गई और कम समय में ही बच्चों ने अच्छी-खासी रकम इकट्ठी कर ली। जमा की गई राशि कुशाग्र के पिता को उसके बेहतर इलाज के लिए दे दी गई है।

क्या है जीबी सिंड्रोम

जीबी सिंड्रोम यानी गुलियन बरे सिंड्रोम एक रेयर बीमारी है। भारत में इसके प्रति वर्ष क्00 से भी कम मामले सामने आते हैं। इस बीमारी में बॉडी का इम्यून सिस्टम पेरिफेरल नर्वस सिस्टम पर अटैक कर देता है। बीमारी के बढ़ने पर पेशेंट पैरालाइज्ड तक हो जाता है। यह किसी भी व्यक्ति को किसी भी उम्र में हो सकता है।

वर्जन

स्कूल के बच्चों ने अपने साथी स्टूडेंट की मदद के लिए कम समय में ही क्.90 लाख रुपए जुटा लिये। यह राशि बच्चे के पिता को दे दी गई है। स्टूडेंट्स की मदद की इस भावना की जितनी तारीफ की जाए, कम है।

-फादर अजीत खेस, प्रिंसिपल, सेंट जेवियर्स स्कूल डोरंडा

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गुलियन बरे सिंड्रोम एक रेयर बीमारी है, पर इसका इलाज संभव है। इस बीमारी के मरीज का इलाज प्लाज्माथेरेसिस और आइवीआइजी तकनीक से किया जाता है। प्लाज्मा थेरेसिस की तुलना में आइवीआइजी थोड़ा महंगा उपचार है।

-डॉ संजय सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसीन रिम्स