व‌र्ल्ड कैंसर डे स्पेशल

कैंसर सर्वाइवर की कहानी।

देहरादून

व‌र्ल्ड कैंसर डे पर आपको रूबरू कराते हैं देहरादून के एक ऐसे जिंदा दिल शख्स से जो कैंसर से जूझते हुए दून के लोगों और बेजुबान जानवरों के लिए मसीहा बन गया। यह शख्स है फोरेस्ट फोर्स की रेस्क्यू टीम का सदस्य रवि जोशी। कैंसर के बावजूद रवि कभी सांप, कभी बंदर, कभी टाइगर, लैपर्ड तो कभी मुसीबत में फंसे परिंदों को रेस्क्यू कर वापस उनकी दुनिया में भेजने की जद्दोजहद में जुटा रहता है। बेजुबानों को बचाने के इसी संर्घर्ष में कई बार तो खाना और उसकी दवा तक छूट जाती है। रवि ने कभी पान, जर्दा, तंबाकू, गुटखा भी नहीं खाया लेकिन फिर भी उसे मुंह का कैंसर है। एक बार सर्जरी से कैंसर ठीक हो गया था। लेकिन माह पहले फिर से पनप गया। रवि इसके साथ खुलकर जीता है, इस पर खुलकर बात करता है.इसी सप्ताह जौलीग्रांट हॉस्पिटल में उसकी फिर कैंसर सर्जरी होनी है। हजारों लोगों और उससे भी अधिक बेजुबानों के आशीर्वाद के साथ आप भी रवि की के लिए दुआ कर सकते हैं।

हजारों बेजुबानों का मददगार:

फोरेस्ट हेडक्वार्टर की स्पेशल रेस्क्यू टीम के सदस्य रवि जोशी को मुसीबत में फंसे बेजुबान जानवरों से इनता लगाव है कि वह दिन हो या रात उनकी मदद के लिए तुरंत पहुंच जाता है। दून ही नहीं आसपास के इलाके में भी लोग रवि को सांप पकड़ने वाले भैया के नाम से जानते हैं। हर वर्ष सैकड़ों बेजुबान और खतरनाक जानवरों को रवि रेस्क्यू कर जंगल में छोड़ते हैं।

365 दिन में रेस्क्यू किए 413 सांप:

सांप का नाम सुनते ही लोगों की पसीने छूट जाते हैं। सांप अगर घर में घुस आया हो तो लोगों की नींद उड़ जाती है। ऐसे ही परिवारों के लिए जिनके घर में सांप घुस जाता है,उनके लिए मसीहा से कम नहीं है। पिछले वर्ष 365 दिन में रवि ने घर, दुकान मकान और मोहल्लों से 413 सांप रेस्क्यू कर जंगलों में छोड़े।

अगजर, बंदर, गुलदार और परिदों का दोस्त

वर्ष 2018 में रवि ने सांपों के अलावा 3 पायथन, 4 लैपर्ड, 17 मंकी, 19 ईगल के अलावा 40 अन्य ब‌र्ड्स को बचा चुका है। इस जद्दोजहद में रवि कई बार तो अपने घर परिवार और निजी काम भी छूट जाते हैं। जानवरों को बचाने की मशक्कत में कई बार सुबह से रात हो जाती है। गाय,कुत्ता, बिल्ली, बंदर या किसी अन्य जानवर के घायल हो जाने की स्थिति में भी वह मदद को पहुंच जाता है।

तीन बार सांप काट चुके हैं रवि को:

लोगों के घरों में घुसे सांप निकालते समय रवि पर खतरा भी कम नहीं होता। अब तक उन्हें तीन बार सांप ने काट भी लिया। रवि बताते हैं कि सांप के काटने पर बिना डरे या फिर टोना-टोटका के चक्कर में पड़े समय पर अस्पताल पहुंच कर उपचार ले लिया जाए तो खतरा टल जाता है। लोगों की मुसीबत अपने सिर लेने और तीन बार सांप काटने का शिकार होने के बाद भी इस शख्स का जुनून देखिए हर बार न जाने क्यूं पहुंच जाता है मदद को।

जीने की प्रेरणा देती हैं एक्टिविस्ट गीता गैरोला

उत्तराखंड की जानी-मानी एक्टिविस्ट और लेखिका गीता गैरोला कैंसर से जूझते लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं। जीवन के प्रति उनकी जिजीविषा को देख कोई कह नहीं सकता कि वे कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रही हैं। उन्हें शिकायत सिर्फ यह है कि उत्तराखंड में सरकारी स्तर पर कैंसर के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है। वे कहती है कि प्राइवेट अस्पतालों में भी कैंसर के इलाज की बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं है, यहां के लोगों इलाज के लिए दिल्ली, चंडीगढ़ या मुंबई जाना पड़ता है।

लेखन के साथ जन आंदोलन

गीता गैरोला से 80 के दशक से लगातार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिख रही हैं। करीब 3 साल पहले उन्हें पता चला कि वे कैंसर जैसी बीमारी की चपेट हैं। इसके बावजूद वे घबराई नहीं। दो बार कीमोथैरेपी के गुजरने और लगातार दवाइयों के सेवन के बावजूद वे आज भी जन आंदोलन में चढ़-बढ़ कर भाग लेती हैं। दून में होने वाला शायद ही कोई जन आंदोलन ऐसा हो, जिसमें गीता गैरोला की भागीदारी न होती है। महिलाओं के मुद्दों को लेकर वे न सिर्फ पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखती हैं। गीता गैरोला कहती हैं कि कैंसर होने पर डरने अथवा घबराने के बजाय मजबूती से इसका सामना किया जाना चाहिए। हालांकि वे यह भी कहती हैं कि सरकारों को चाहिए कि कैंसर के मरीजों के लिए सस्ते इलाज की व्यवस्था करें। वे कहती हैं कैंसर में काफी पैसा खर्च होता है, खासकर पहाड़ों में ज्यादातर लोग इस स्थिति में नहीं होते कि कैंसर का इलाज करवा सकें।