कैंसर @ 1०० रुपीज

Cancer @ Rs 100


Allahabad: महंगाई के जमाने में सस्ता इलाज कौन नहीं चाहता। वह भी तब जब पांच हजार रुपए का काम सिर्फ सौ रुपए में हो जाए। यकीन मानिए ऐसा हो रहा है। लेकिन, बदले में मिल रहा है जीवनभर का दर्द। यानी कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी। बात हो रही है झोलाछाप डॉक्टरों की जो खुलेआम ओरल कैंसर बांट रहे हैं. 
क्कद्यद्गड्डह्यद्ग, इससे बचकर रहिए
सुनकर आप भी चौंक जाएंगे। दांत बदलने वाले ये डॉक्टर नकली दांत लगाने में प्लास्टिक और दूसरे सामान जोडऩे वाले सस्ते गम का खुलेआम इस्तेमाल करते हैं। इससे दांत परमानेंटली फिक्स तो हो जाते हैं लेकिन बायो कम्पेटिबल न होने की वजह से यह गम मसूढ़े में इरीटेशन पैदा करता है। इससे कुछ महीने बाद ब्लीडिंग शुरू हो जाती है और कैंसर के सिम्टम्स डेवलप होने लगते हैं। समय रहते पता नहीं लगने से लोगों की मौत भी हो जाती है। सस्ती थेरेपी के शिकार लोग डेंटिस्ट के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचते हैं तब हकीकत सामने आ जाती है। जानकारी के मुताबिक डेंटिस्ट्स के पास पर वीक दर्जनों की संख्या में ऐसे पेशेंट्स आते हैं जिनको कैंसर से बचाने के लिए दांत काटकर बाहर निकाला जाता है.

ये हैं भुक्तभोगी

कीडगंज के रहने वाले पेशे से सिंगर 45 वर्षीय प्रदीप (परिवतर्तित नाम) ने लास्ट इयर पड़ोस के ही एक झोलाछाप डॉक्टर से नकली दांत लगवाया था। एक महीने बाद उन्हें ब्लीडिंग और इरीटेशन की शिकायत होने लगी। इस सिम्प्टम्स को अवॉयड करना उन्हें महंगा पड़ा और महज कुछ महीने बाद उनकी ओरल कैंसर से डेथ हो गई. 

स्पॉट पर गहरा घाव

बेली कालोनी के निवासी रामबाबू भी इसी सस्ते इलाज का शिकार हो चुके हैं। नकली दांत लगवाने के महज तीन महीने बाद उनके मसूढ़े से खून आने लगा। डेंटिस्ट ने जांच के बाद बताया कि गम से होने वाले इरीटेशन से ऐसा हो रहा है। उनकी सलाह पर पेशेंट ने इसे निकलवा तो दिया लेकिन इसकी वजह से स्पॉट पर गहरा घाव हो चुका है.

 

जानिए कितना खतरनाक है ये तरीका

आमतौर पर डेंटिस्ट टूटे हुए डेंचर और इम्प्रेशन सेकंड्री ट्रे बनाने के लिए कोल्ड क्योर का इस्तेमाल करते हैं। यह पालीमराइजिंग रेजिन और पालीमराइजिंग लिक्विड के मिक्सचर से तैयार होता है। यह घोल थोड़ी ही देर में पत्थर की तरह कड़ा होकर चीजों को आपस में परमानेंटली जोड़ देता है। बायो कम्पेटिबल नहीं होने की वजह से मेडिकल साइंस कभी भी इसका इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देती लेकिन झोलाछाप डॉक्टर धड़ल्ले से इसके जरिए नकली दांत लगा रहे हैं. 

कैंसर होना तो लाजिमी है

आंकोलॉजिस्ट भी मानते हैं कि लगातार होने वाले इरीटेशन से कैंसर पनप सकता है। बायो मॅटेरियल की जगह गम का इस्तेमाल करने से मसूढ़े का वह हिस्सा पूरी तरह ढंक जाता है। इरीटेशन की वजह से लगातार ब्लीडिंग होती है और बाद में कैंसर के लक्षण दिखने लगते हैं। ऐसे दांतों को निकालने के लिए डेंटिस्ट को इसे काटकर अलग करना पड़ता है. 


टीवी चैनल्स भी कर रहे हैं होशियार

लास्ट वीक एक इंटरनेशनल टीवी चैनल पर दिखाए जा रहे फेमस शो में भी झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा इलाज के इस तरीके पर सवाल खड़े किए गए। शो में दिखाया गया कि ईस्ट यूपी में किस तरह से ठग 'यहां सस्ते में दांत लगाए जाते हैंÓ जैसे बोर्ड लगाकर पब्लिक को बेवकूफ बना रहे हैं। प्रोग्राम में इलाहाबाद और वाराणसी के ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों को दिखाया गया जो महज सौ रुपए में कोल्ड क्योर से नकली दांत लगाकर कैंसर बांट रहे हैं। इतना ही नहीं बिना सुन्न किए जबरन दांत निकालने और इसके तुरंत बाद पानी से कुल्ला करा दिए जाने का भी चैनल ने मजाक बनाया। चैनल ने बताया कि ऐसे कुल्ला करा दिए जाने से मसूढ़े से खून का थक्का हट जाता है और हड्डी खुली रह जाने से इंफेक्शन का खतरा बना रहता है.

Health department को है शिकायत का इंतजार

शहर में लगभग पांच हजार झोलाछाप डॉक्टर हैं जिन्होंने कभी भी मेडिकल साइंस की कोई भी डिग्री नहीं ली है। वह पुश्तैनी धंधे की तरह लोगों का इलाज कर रहे हैं। हेल्थ डिपार्टमेंट भी शिकायत मिलने के बाद ही ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करता है। ऑफिसर्स की मानें तो पिछले एक साल में शिकायत मिलने पर 150 झोलाछाप डॉक्टरों की क्लीनिक बंद कराई जा चुकी है। कुछ के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई है. 



हमारे पास अक्सर ऐसे मामले आते हैं जब कोल्ड क्योर के इस्तेमाल से नकली दांत लगाए जाने के बाद पेशेंट इरीटेशन का शिकार हो जाते हैं। अगर समय रहते इसे निकाला नहीं गया तो कैंसर के सिम्प्टम्स पनपने लगते हैं. 
डॉ। वैभव शुक्ला, 
डेंटल सर्जन

दांत लगाने में इस्तेमाल किए जाने वाले मटेरियल का अहम रोल होता है। सही मटेरियल नहीं लगाया गया या दांत सही फिक्स नहीं हुआ तो इरीटेशन से कैंसर के चांसेज बढ़ जाते हैं.
डॉ। बीके मिश्रा, 
कैंसर स्पेशलिस्ट

हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से लगातार झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। जैसे ही लोग शिकायत करते हैं हम तुरंत एक्शन लेकर दोषी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराते हैं. 
डॉ। मुरारी वर्मा, 
एसीएमओ

 

Please, इससे बचकर रहिए

सुनकर आप भी चौंक जाएंगे। दांत बदलने वाले ये डॉक्टर नकली दांत लगाने में प्लास्टिक और दूसरे सामान जोडऩे वाले सस्ते गम का खुलेआम इस्तेमाल करते हैं। इससे दांत परमानेंटली फिक्स तो हो जाते हैं लेकिन बायो कम्पेटिबल न होने की वजह से यह गम मसूढ़े में इरीटेशन पैदा करता है। इससे कुछ महीने बाद ब्लीडिंग शुरू हो जाती है और कैंसर के सिम्टम्स डेवलप होने लगते हैं। समय रहते पता नहीं लगने से लोगों की मौत भी हो जाती है। सस्ती थेरेपी के शिकार लोग डेंटिस्ट के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचते हैं तब हकीकत सामने आ जाती है। जानकारी के मुताबिक डेंटिस्ट्स के पास पर वीक दर्जनों की संख्या में ऐसे पेशेंट्स आते हैं जिनको कैंसर से बचाने के लिए दांत काटकर बाहर निकाला जाता है।

ये हैं भुक्तभोगी

कीडगंज के रहने वाले पेशे से सिंगर 45 वर्षीय प्रदीप (परिवतर्तित नाम) ने लास्ट इयर पड़ोस के ही एक झोलाछाप डॉक्टर से नकली दांत लगवाया था। एक महीने बाद उन्हें ब्लीडिंग और इरीटेशन की शिकायत होने लगी। इस सिम्प्टम्स को अवॉयड करना उन्हें महंगा पड़ा और महज कुछ महीने बाद उनकी ओरल कैंसर से डेथ हो गई. 

स्पॉट पर गहरा घाव

बेली कालोनी के निवासी रामबाबू भी इसी सस्ते इलाज का शिकार हो चुके हैं। नकली दांत लगवाने के महज तीन महीने बाद उनके मसूढ़े से खून आने लगा। डेंटिस्ट ने जांच के बाद बताया कि गम से होने वाले इरीटेशन से ऐसा हो रहा है। उनकी सलाह पर पेशेंट ने इसे निकलवा तो दिया लेकिन इसकी वजह से स्पॉट पर गहरा घाव हो चुका है.

जानिए कितना खतरनाक है ये तरीका

आमतौर पर डेंटिस्ट टूटे हुए डेंचर और इम्प्रेशन सेकंड्री ट्रे बनाने के लिए कोल्ड क्योर का इस्तेमाल करते हैं। यह पालीमराइजिंग रेजिन और पालीमराइजिंग लिक्विड के मिक्सचर से तैयार होता है। यह घोल थोड़ी ही देर में पत्थर की तरह कड़ा होकर चीजों को आपस में परमानेंटली जोड़ देता है। बायो कम्पेटिबल नहीं होने की वजह से मेडिकल साइंस कभी भी इसका इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देती लेकिन झोलाछाप डॉक्टर धड़ल्ले से इसके जरिए नकली दांत लगा रहे हैं. 

कैंसर होना तो लाजिमी है

आंकोलॉजिस्ट भी मानते हैं कि लगातार होने वाले इरीटेशन से कैंसर पनप सकता है। बायो मॅटेरियल की जगह गम का इस्तेमाल करने से मसूढ़े का वह हिस्सा पूरी तरह ढंक जाता है। इरीटेशन की वजह से लगातार ब्लीडिंग होती है और बाद में कैंसर के लक्षण दिखने लगते हैं। ऐसे दांतों को निकालने के लिए डेंटिस्ट को इसे काटकर अलग करना पड़ता है. 

टीवी चैनल्स भी कर रहे हैं होशियार

लास्ट वीक एक इंटरनेशनल टीवी चैनल पर दिखाए जा रहे फेमस शो में भी झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा इलाज के इस तरीके पर सवाल खड़े किए गए। शो में दिखाया गया कि ईस्ट यूपी में किस तरह से ठग 'यहां सस्ते में दांत लगाए जाते हैंÓ जैसे बोर्ड लगाकर पब्लिक को बेवकूफ बना रहे हैं। प्रोग्राम में इलाहाबाद और वाराणसी के ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों को दिखाया गया जो महज सौ रुपए में कोल्ड क्योर से नकली दांत लगाकर कैंसर बांट रहे हैं। इतना ही नहीं बिना सुन्न किए जबरन दांत निकालने और इसके तुरंत बाद पानी से कुल्ला करा दिए जाने का भी चैनल ने मजाक बनाया। चैनल ने बताया कि ऐसे कुल्ला करा दिए जाने से मसूढ़े से खून का थक्का हट जाता है और हड्डी खुली रह जाने से इंफेक्शन का खतरा बना रहता है.

Health department को है शिकायत का इंतजार

शहर में लगभग पांच हजार झोलाछाप डॉक्टर हैं जिन्होंने कभी भी मेडिकल साइंस की कोई भी डिग्री नहीं ली है। वह पुश्तैनी धंधे की तरह लोगों का इलाज कर रहे हैं। हेल्थ डिपार्टमेंट भी शिकायत मिलने के बाद ही ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करता है। ऑफिसर्स की मानें तो पिछले एक साल में शिकायत मिलने पर 150 झोलाछाप डॉक्टरों की क्लीनिक बंद कराई जा चुकी है। कुछ के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई है. 

हमारे पास अक्सर ऐसे मामले आते हैं जब कोल्ड क्योर के इस्तेमाल से नकली दांत लगाए जाने के बाद पेशेंट इरीटेशन का शिकार हो जाते हैं। अगर समय रहते इसे निकाला नहीं गया तो कैंसर के सिम्प्टम्स पनपने लगते हैं. 

डॉ। वैभव शुक्ला, 

डेंटल सर्जन

दांत लगाने में इस्तेमाल किए जाने वाले मटेरियल का अहम रोल होता है। सही मटेरियल नहीं लगाया गया या दांत सही फिक्स नहीं हुआ तो इरीटेशन से कैंसर के चांसेज बढ़ जाते हैं.

डॉ। बीके मिश्रा, 

कैंसर स्पेशलिस्ट

हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से लगातार झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। जैसे ही लोग शिकायत करते हैं हम तुरंत एक्शन लेकर दोषी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराते हैं. 

डॉ। मुरारी वर्मा, 

एसीएमओ