RANCHI : पाकिस्तान के पेशावर स्थित आर्मी स्कूल में आतंकी हमले को लेकर रांची में भी गम और गुस्सा है। इस कायराना हमले में मारे गए 160 से भी ज्यादा बच्चों और शिक्षकों को श्रद्धांजलि देने के लिए ट्यूज्डे की शाम साढ़े सात बजे सिटी के कोकर स्थित बिरसा समाधिस्थल पर बड़ी संख्या में लोग जुटे। आई नेक्स्ट की अपील पर महज एक घंटे में शहर के कई लोग समाधिस्थल पर जुटे और कैंडल जलाकर हमले में मारे गए बच्चों और लोगों के प्रति संवेदना जाहिर की।

उपस्थित सारे लोगों ने एक स्वर में इस कायराना आतंकी हमले की तीखी भ‌र्त्सना की और आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत पर जोर दिया। कहा कि मासूम बच्चों का कत्लेआम करनेवाले तालिबानी आतंकवादियों का घृणित चेहरा अब पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो गया है। इन आतंकियों का न तो कोई धर्म है और न मजहब। इस्लाम हो या फिर कोई मजहब, सबने बेकसूरों और बच्चों की हत्या को सबसे बड़ा पाप माना है। यह इंसानियत पर ऐसा आतंकी हमला है, जिसकी जितनी भी भ‌र्त्सना की जाए कम है। बिरसा समाधिस्थल पर जुटे लोगों ने आतंकवाद मुर्दाबाद, आतंकियों का कोई मजहब नहीं-वे इंसानियत के दुश्मन हैं, आतंक के खिलाफ पूरी दुनिया एकजुट हो जैसे नारों वाली तख्तियां ले रखी थीं।

दी श्रद्धांजलि

हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने इकट्ठा हुए लोगों में सामाजिक कार्यकर्ता जनाब हुसैन कच्छी, डॉ मो जाकिर, कांग्रेस के नेता डॉ राजेश गुप्ता, आजसू के निक्की शर्मा, रोशन सिंह, सम्राट चटर्जी, अनिल रूद्र, संजीव प्रसाद, ग्रैविटी बैंड के रॉबिन एवं उनके साथी, अनुज क्षेत्री, बल्ले सहित आई नेक्स्ट के सभी कर्मी उपस्थित थे।

इजहार भी मुश्किल, चुप रह भी नहीं सकते

इजहार भी मुश्किल है

चुप रह भी नहीं सकते

मजबूर हैं हम इतने

कुछ कर भी नहीं सकते

और सह भी नहीं सकते

ये शब्द हैं जनाब हुसैन कच्छी के, जो पेशावर हमले के खिलाफ बिरसा समाधिस्थल पर कैंडल लेकर पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि तालिबानियों का यह कायराना हमला हकीकत में किसी एक मुल्क या किसी खास समुदाय पर नहीं, पूरी इंसानियत पर हमला है। इस निहायत की जाहिलाना हरकत के सामने शर्म भी शर्मसार हो गई है। नौनिहालों के कत्लेआम की इतनी शर्मनाक घटना के खिलाफ पूरी दुनिया को एकजुट होना चाहिए। यह अपने ही भविष्य की हत्या है।

बेकसूरों का कत्ल किसी मजहब में मंजूर नहीं

शिक्षाविद् डॉ मो जाकिर ने कहा कि इस्लाम किसी भी बेकसूर की हत्या की मुखालफत करता है। तालिबानी आतंकियों ने इस्लाम को बदनाम करने की घिनौनी हरकत की है। उन्हें खुदा भी माफ नहीं करेगा। मासूम बच्चों का कत्ल करनेवालों ने दोजख का रास्ता चुना है। मारे गए बेकसूर बच्चों के मां-बाप की आहें आतंकियों को खाक कर देंगी, यह तय है। यह ऐसा वक्त है, जब हमें मजहब और मुल्क की सरहदों से परे आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना पड़ेगा।

आतंकियों का न कोई धर्म, न सिद्धांत

संजीव प्रसाद ने पेशावर में बच्चों के संहार की घटना को सबसे जघन्य और घृणित अपराध करार देते हुए कहा कि आतंकवादियों का न कोई सिद्धांत है और न कोई धर्म। उन्होंने कहा कि यह घटना न सिर्फ आंख खोलनेवाली है बल्कि उन युवाओं को सबक देनेवाली है, जो खौफ का कारोबार करनेवाले दरिंदों के बहकावे में आकर गुमराह हो जाते हैं। बच्चों को दुश्मन माननेवालों की समझ कितनी छोटी है, इसका अहसास अब पूरी दुनिया को हो गया है।

मध्ययुग की बर्बरता को भी पीछे छोड़ा

सामाजिक मुद्दों पर सांस्कृतिक अभियान चलानेवाले ग्रैविटी बैंड के संचालक रॉबिन ने पेशावर की घटना को मानव इतिहास की सबसे क्रूर घटनाओं में से एक बताया। कहा कि आतंकियों ने मध्ययुगीन बर्बरता को भी पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने युवाओं से आतंक के खिलाफ अभियान में आगे आने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि युवा अगर चाह लें तो पूरी दुनिया से आतंक का खात्मा हो जाएगा।

ये इंसानियत के दुश्मन हैं

युवा रोशन सिंह ने हमले में मारे गए बच्चों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि ईश्वर उनके मां-बाप और परिजनों को पहाड़ से भी बड़ा दुख सहने की ताकत दें। उन्होंने कहा कि आतंक के खूनी पंजे आखिरकार बेकसूर बच्चों तक भी पहुंच गए। हमलावरों को न इंसानियत माफ करेगी और न ही इतिहास। आतंकवाद को खाद-पानी देनेवाली हुकूमतों को भी इस घटना से सबक लेनी चाहिए कि यह आग एक दिन उन्हें भी खाक कर देगी।

बच्चों का भला क्या कसूर था?

अनुज क्षेत्री ने कहा कि पाकिस्तान की हुकूमत ने पिछले वर्षो में जिस तरह आतंकवाद की पाठशालाओं को खड़ा किया है, उसका खामियाजा उसे अब खुद भुगतना पड़ रहा है। आतंकवाद को संरक्षण देने से न तो किसी देश का भला हो सकता है और न दुनिया का। उन्होंने कहा कि पेशावर हमले में जो बच्चे मारे गए हैं, उनका आखिर क्या कसूर था?