माजरा यह है कि आजकल गाडिय़ों में आग लगने की घटनाओं ने जोर पकड़ा है। इनके चलते गैस ऑपरेटेड व्हीकलों के बजाय पेट्रोल ऑपरेटेड व्हीकल पर ज्यादा भरोसा किया जा रहा है। हालांकि इनमें खुद को सेफ समझने वालों के लिए भी थोड़ी सी लापरवाही भी खतरनाक साबित हो सकती है। ऐसा ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट भी मानते हैं।

खतरे कई हैं

आग लगने का सबसे कारण गैस का रिसाव, नली कटी होना या स्मोकिंग को माना जाता है, लेकिन हाल ही में पेट्रोल ऑपरेटेड व्हीकलों में भी आग लग जाती है। जो गाडिय़ों की सुरक्षा और चालकों की लापरवाही पर सवाल खड़े कर रही है। गैस का रिसाव हो तो आग लगना आम बात है, लेकिन पेट्रोल व्हीकल में आग कैसे लग गई? प्लग में स्पार्किंग होने और पेट्रोल लीक होने के कारण ऐसा होता है। ज्यादा गर्म होने की स्थिति में स्पार्किंग प्लग से चिंगारी निकलती है और वह पेट्रोल पाइप तक पहुंच जाए तो आग लग जाती है।

प्रॉपर इंस्टालेशन न होने से

ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट्स के मुताबिक व्हीकल पेट्रोल, डीजल या गैस किसी भी मोड पर हो, लापरवाही ही दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण होती है। यह लापरवाही चालक और गाडिय़ों में एक्स्ट्रा गैजेट्स फिट करने वाले मैकेनिक की भी हो सकती है। कई बार गाडिय़ों में कंपनी फिटेड मशीनरी के अलावा भी कई तरह की एक्सेसरीज लगवाई जाती है। यह प्रेशर हॉर्न से लेकर इंडिकेटर्स, लाइट्स, ब्रेक लाइट्स, रीवर्स हॉर्न आदि भी हो सकते हैं। इन सभी को फिट करते समय मैकेनिक की थोड़ी सी भी लापरवाही गाड़ी पर भारी पड़ती है। केबल में कट होने के कारण भी दुर्घटना का कारण बनती है। वायरिंग घटिया होने से भी खतरा बनता है।

हल्के उपकरण कर देते हैं खाक

कई लोग वाहन तो खरीद लेते हैं, लेकिन प्रॉपर मेंटेनेंस नहीं करते। जब कभी व्हीकल में मशीनरी या पाट्र्स बदलने का मौका आते हैं तो भी वे ओरिजनल की जगह हल्की क्वालिटी के या अनाधिकृत पाट्र्स का उपयोग करते हैं। वाहन मालिक उस समय तो पैसा बचा लेते हैं, लेकिन यही गलती आगे जाकर कार खाक कर देती है। अनाधिकृत उपकरण कम समय में ही खराब हो जाते हैं और उसका परिणाम  पूरे सिस्टम के बिगड़ जाने के रूप में सामने आता है।

ओरिजनल नहीं होता

एक्सपट्र्स के मुताबिक जिन गाडिय़ों में आग लगती है, उनमें कुछ न कुछ एक्स्ट्रा जरुर होता है। कोई भी गाड़ी तब तक ही पूरी तरह सुरक्षित होती है जब तक उसमें कंपनी फिटेड सामान के अलावा कुछ नया नहीं किया जाए। कई तरह के टेस्ट और अलग-अलग बिंदुओं पर जांचने के बाद ही कोई गाड़ी फैक्ट्री में तैयार होती है। आम लोग इस तरह की बारीकियों को गंभीरता से नहीं लेते और किसी भी गैरेज में मॉडिफिकेशन करवा लेते हैं। अधिकतर एक्स्ट्रा एक्सेसरीज ओरिजनल नहीं होती और न ही उन्हें क्वालिफाइड मैकेनिक्स द्वारा लगाया जाता है। एक बार सिस्टम बिगड़ जाने पर अलग-अलग पाट्र्स खराब होने लगते हैं और फिर उन्हें बदलने के अलावा कोई चारा नहीं रहता।

डीजल में खतरा कम

ऑटो एक्सपर्ट्स मानते हैं गैस से चलने वाली गाडिय़ों में आग लगने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। इस लिहाज से दूसरे क्रम पर आता है पेट्रोल। इससे चलने वाली गाडिय़ों में खतरा अपेक्षाकृत कम होता है। पेट्रोल से चलने वाली गाडिय़ों में तभी आग लगती है जब पेट्रोल लीक हो और स्पार्किंग हो या गाड़ी जरुरत से ज्यादा गर्म हो जाए। इन दोनों तरह की गाडिय़ों के खतरों से दूर डीजल चलित वाहनों में आग लगने का खतरा सबसे कम होता है। डीजल अपेक्षाकृत कम ज्वलनशील होता है। इसी कारण ट्रक जैसे हैवी व्हीकलस सैकड़ों किलोमीटर चलकर भी सुरक्षित रहते हैं।

पेट्रोल कार में खतरे के कारण

- मॉडिफिकेशन

- एक्स्ट्रा गैजेट्स

- लूज वायरिंग और सॉकेट्स

- किट का प्रॉपर इंस्टॉलेशन नहीं होना

- फ्यूल फिलिंग या लिकेजिंग

- ओवर हीटिंग

- कटी हुई पाइप लाइन

- मेंटेनेंस की कमी

- बैटरी के रखरखाव में अभाव

"पेट्रोल की गाडिय़ों के सफर को भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। दरअसल लोग कंपनी की हिदायतों और सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते। रखरखाव की कमी के कारण प्लग में स्पार्किंग होने लगती है और उसमें पेट्रोल चले जाने के कारण आग लग जाती है."

- प्रदीप त्यागी, सर्विस मैनेजर, जीएस निसान