- जिला प्रशासन के सर्वे में सामने आया इंसेफेलाइटिस से बढ़ती मौत का सच

- प्राइमरी स्टेज में कराते हैं बुखार का इलाज, लास्ट स्टेज में पहुंचते हैं मेडिकल कॉलेज

- प्राइमरी स्टेज पर ही बीमारी को डिटेक्ट करने के लिए लोकल लेवल पर डॉक्टर्स के साथ आशा और एएनएम को सौंपी गई जिम्मेदारी

GORAKHPUR: पूर्वाचलवासियों को इंसेफेलाइटिस से बचाने के लिए चाहे लाख इंतजाम हुए, लेकिन मौत के आंकड़ों पर बहुत फर्क न पड़ा। आम तौर पर लोग डॉक्टर्स की लापरवाही को ही इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं हकीकत इसके आगे कुछ और भी है। असल में इन मौतों के पीछे लापरवाही ही जिम्मेदार है लेकिन यह लापरवाही सिर्फ डॉक्टर्स के लेवल पर नहीं है। जिला प्रशासन की ओर से इंसेफेलाइटिस को लेकर कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि लोगों में जागरूकता की कमी और नासमझी की वजह से इलाज में देरी ही मौत की मुख्य वजह है। परिजन पेशेंट को जब मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंचते हैं तब इंसेफेलाइटिस आखिरी स्टेज में होता है और इसलिए पेशेंट का बचना मुश्किल हो जाता है। इस तथ्य के सामने आने के बाद प्रशासन ने प्राइमरी स्टेज पर ही बीमारी को डिटेक्ट करने के लिए तैयारी कर ली है। पीएचसी-सीएचसी पर डॉक्टर्स के साथ ही आशा, एएनएम को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे ऐसे पेशेंट की पहचान करें।

आखिरी स्टेज में पहुंचते बीआरडी

प्रशासन ने इंसेफेलाइटिस से हो रही मौत का सच जानने के लिए एक सर्वे कराया। इसमें एक कमेटी फॉर्म की गई, जिसने इंसेफेलाइटिस के कहर से जूझ रहे गांवों का सर्वे किया। इसमें यह बात सामने आई कि इस बीमारी से अवेयर न होने की वजह से लोगों की जान जा रही है। जब किसी बच्चे या बड़े को बुखार होता है, तो प्राइमरी लेवल पर वे आसपास के किसी मेडिकल स्टोर से दवा लेकर काम चलाते हैं। जब उससे बात नहीं बनती, तो वे पीएचसी या सीएचसी का रुख करते हैं। इसके बाद भी जब बात नहीं बनती, तो वे जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज का रुख करते हैं। मरीज जबतक मेडिकल कॉलेज पहुंचता है, तब तक इंसेफेलाइटिस की जगह नॉर्मल बुखार का ट्रीटमेंट होने की वजह से बीमारी फाइनल स्टेज में पहुंच जाती है। इससे मौत की संभावना बढ़ जाती है।

नहीं हो पाता प्रॉपर ट्रीटमेंट

फाइनल स्टेज में जब मरीज मेडिकल कॉलेज पहुंचता है, तो उसका नए सिरे से इलाज शुरू होता है। इसमें भी काफी वक्त लगता है। लास्ट स्टेज होने की वजह से मरीज इस बीमारी से ज्यादा दिन तक नहीं लड़ पाते और हफ्ते या दस दिन में दम तोड़ देते हैं। वहीं जो इस बीमारी से बच जाते हैं, वह भी नॉर्मल नहीं रह पाते हैं। उन्हें कई तरह की प्रॉब्लम हो जाती है, जिसकी वजह से उन्हें जिंदगी भर दर्द के बीच रहना पड़ता है।

प्रशासन ने की है पहल

इंसेफेलाइटिस से हो रही मौत के आंकड़े को कम करने और प्राइमरी लेवल पर ही इसको पहचानने के लिए जिला प्रशासन ने पहल की है। इसके तहत सभी सीएचसी और पीएचसी के डॉक्टर्स के साथ ही आशा और एएनएम को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि अगर कोई बुखार का मरीज आता है, तो उसकी इंसेफेलाइटिस की जांच भी कराई जाए। इसके साथ ही प्रशासन लगातार गांवों में अवेयरनेस प्रोग्राम और रैली के माध्यम से लोगों को जागरूक करने में लगा हुआ है जिससे कि मौत के आंकड़ों पर लगाम कसी जा सके।

प्राइमरी लेवल पर इंसेफेलाइटिस डिटेक्ट न होने से मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। जब बीमारी लास्ट स्टेज में पहुंचती है, तब लोग मेडिकल कॉलेज पहुंचते हैं। इंसेफेलाइटिस से मौत को रोकने के लिए सभी सीएचसी और पीएचसी के साथ ही आशा और एएनएम सेंटर को एक्टिव कर दिया गया है। साथ ही अवेयरनेस प्रोग्राम भी चलाए जा रहे हैं, जिससे लोग बुखार होने पर इंसेफेलाइटिस की भी जांच कराएं।

- पी। गुरु प्रसाद, कमिश्नर