अवैध खनन के खिलाफ

गंगा में चल रहे अवैध खनन के खिलाफ मातृ -सदन के संत निगमानंद ने मोर्चा खोला था। कई दिन तक वे अनशन पर बैठे रहे। बाद में हालत खराब होने के बाद उन्हें हरिद्वार से दून हॉस्पिटल लाया गया, यहां उनकी कंडीशन क्रिटिकल बनी रही। जिसे देखते हुए डाक्टर ने निगमानंद को 10 मई को जौलीग्र्रांट हॉस्पिटल के लिए रेफर कर दिया। ट्रीटमेंट के दौरान उनकी कंडीशन लगातार नाजुक बनी रही। 13 जून को स्वामी ने अंतिम सांस ली।

CBI कर रही थी मामले की जांच

निगमानंद की डेथ के बाद इस मामले ने काफी तूल पकड़ लिया। मातृ-सदन से जुड़े तमाम लोग इसे षडयंत्र बताते रहे। इसके लिए उनके द्वारा पूर्व में हरिद्वार सिटी कोतवाली में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के डॉक्टर, नर्स व क्रशर मालिक के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया गया। संत की मौत की जांच सीबीआई से कराने की मांग उठने लगी। काफी हंगामे के बाद स्टेट गवर्नमेंट ने ये मामला आखिरकार सीबीआई के सुपुर्द कर दिया। 18 अगस्त से सीबीआई इस मामले की जांच कर रही थी।

नहीं हुई जहर की पुष्टि

संत निगमानंद को आर्गेनो फॉस्फेट नामक जहर देने की आशंका जाहिर की गई थी। इसके बाद उनकी डेड बॉडी का पोस्टमॉर्टम दोबारा कराया गया। विसरा भी सुरक्षित रखा गया। 13 और 16 जून को लिए गए विसरा का सैंपल जांच के लिए एम्स, दिल्ली भेजा गया। जहां फारेंसिक मेडिसीन एंड टॉक्सीकोलॉजी की टीम द्वारा एग्जामिन किया गया। इस दौरान जांच में जहर की पुष्टि नहीं हो सकी। जांच के लिए गठित बोर्ड ने इस मौके पर मातृ सदन के रिप्रेजेंटेटिव डॉ। विजय वर्मा के साथ संत का ट्रीटमेंट करने वाले तमाम डॉक्टर से भी बातचीत कर रिपोर्ट सामने रखी.  इस संदेहास्पद मामले में सीबीआई ने कई बिंदु पर जांच पड़ताल की। इसमें टेक्निकल, क्लीनिकल और मेडिकल आधार पर यह पाया गया कि निगमानंद के मौत की वजह जहर नहीं, बल्कि उनका भूखा रहना था। इसके चलते शरीर कमजोर होता गया और आखिरकार उनकी डेथ हो गई।

प्रतिक्रिया व्यक्त की

सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर मातृ सदन आश्रम ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। आश्रम के स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कहा कि सीबीआई की इस रिपोर्ट पर के खिलाफ कोर्ट जाएंगे। अगर जरूरत पड़ी तो एक बार फिर से अनशन का सहारा लिया जाएगा। स्वामी शिवानंद के मुताबिक निगमानंद की मौत एक साजिश थी। गंगापुत्र के कातिलों को सजा जरूर मिलेगी।