हाई कोर्ट ने कहा, पुलिस ने नियमानुसार नहीं की घटना की विवेचना

बुलन्दशहर राष्ट्रीय राजमार्ग-91 पर मां बेटी से सामूहिक बलात्कार की घटना की जांच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआइ के हवाले कर दी है। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को यह जताने की भरसक कोशिश की गई की पुलिस की जांच सही दिशा में है लेकिन कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं हुई। कोर्ट ने माना कि इस घटना में विवेचना नियमानुसार नहीं हुई है। अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी।

29 जुलाई को हुई थी घटना

बुलंदशहर में 29 जुलाई की रात हाईवे पर एक मां और उसकी नाबालिग बेटी से दुराचार की घटना ने पूरे प्रदेश के हिला दिया था। हाईकोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका कायम की थी। प्रकरण की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को चीफ जस्टिस डीबी भोसले तथा जस्टिस यशवन्त वर्मा की खण्डपीठ ने कहा कि घटनाओं पर पुलिस कार्यवाही संतोषजनक नहीं है। कई दिन से सुनवाई चल रही है किन्तु अधिकारियों ने पीडि़ता का बयान तक पेश नहीं किया। इससे पता चलता कि पुलिस ने अपना काम सही तरीके से किया या नहीं। कोर्ट ने बुलंदशहर की कई अन्य घटनाओं के बारे में भी जानकारी मांगी थी। अपर महाधिवक्ता इमरानुल्लाह ने बताया कि 7 और 12 मई को लूट की घटनाएं हुई। 9 जुलाई को हुई घटना में लिव इन रिलेशन सामने आया है।

एसपी नहीं जानते रिपोर्ट का मतलब

कोर्ट ने बुलंदशहर के एसपी की रिपोर्ट पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें रिपोर्ट का मतलब ही नहीं मालूम या फिर समझ ही नहीं है। उनसे मीडिया ने रिपोर्ट नहीं मांगी है, कोर्ट ने मांगी है। इसे दस्तावेजों के साथ दाखिल किया जाना चाहिए था। इससे पहले गुरुवार को कोर्ट ने बुलंदशहर की घटना के परिप्रेक्ष्य में टिप्पणी की थी कि प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।

सरकार के पास दस्तावेज नहीं

राज्य सरकार हाईकोर्ट में चार दिन बाद भी घटना के पूरे दस्तावेज नहीं पेश कर सकी, जिससे कोर्ट और खफा हुई। कहा कि आरोपियों के सामाजिक व राजनैतिक कनेक्शन की जानकारी मांगी गई थी थी जिसे नहीं दिया गया। एफआईआर की कापी कहां है, लड़की का 164 का बयान कहां है। आरोपियों का मेडिकल क्यों नहीं कराया गया।

कोर्ट ने उठाए सवाल

घटनाओं में प्राथमिकी क्यों विलंब से दर्ज की गई

लूट की घटनाओं में गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई

घटना की प्राथमिकी न दर्ज करने वाले पुलिस कर्मियों पर सरकार कार्रवाई क्यों दर्ज नहीं करती

आखिर क्यों पहले घटना की रिपोर्ट कमजोर धाराओं में दर्ज की जाती है और बाद में गंभीर धाराएं बढ़ाई जाती हैं

आरोपियों को रिमांड पर क्यों नहीं लिया गया जबकि महाराष्ट्र में पुलिस कस्टडी में ले लेती है

14 साल की नाबालिग लड़की से दुराचार हुआ। उसकी जिंदगी तबाह हो गई। आखिर कोई तो इसके लिए जवाबदेह होना चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट