- 2007 में उप्र राज्य चीनी निगम लि. की मिलों के निजीकरण व विक्रय का फैसला

- 21 मिलों को 2010 और 2011 में निजी कंपनियों को सस्ते में बेच दिया गया

- 1100 करोड़ रुपये का है चीनी मिल बिक्री घोटाला

- 90 करोड़ रुपये चार चीनी मिलों की कीमत आंकी गयी

- 128.41 करोड़ रुपये के औसत बाजार मूल्य की कमी की गयी

- 43.20 करोड़ सलाहकार द्वारा बताए प्लांट एवं मशीनरी के स्क्रैप मूल्य में कम किए

- 291 करोड़ के मुकाबले केवल 166 करोड़ तीन चीनी मिलों की बिक्री से

- 11 चीनी मिलों के अनुमानित मूल्य 173.63 करोड़ के मुकाबले महज 91.65 करोड़ मिले

- बसपा सरकार में औने-पौने दामों पर बिकी थी 21 सरकारी चीनी मिलें

- एक साल पहले योगी सरकार ने की थी सीबीआई जांच की सिफारिश

- सात बंद चीनी मिलों को खरीदने में फर्जी दस्तावेजों का हुआ था यूज

07 बंद चीनी मिलों की बिक्री में घोटाले का केस दर्ज

14 चीनी मिलों की बिक्री में घोटाले की जांच को छह पीई दर्ज

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LUCKNOW: पूर्ववर्ती बसपा सरकार में 21 सरकारी चीनी मिलों को औने-पौने दामों में बेचने में हुए करीब 1100 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है. योगी सरकार की सिफारिश पर सीबीआई की राजधानी स्थित एंटी करप्शन ब्रांच ने इसका केस दर्ज कर लिया है जिसमें सात लोगों को नामजद किया गया है. सीबीआई ने यह केस सात बंद पड़ी चीनी मिलों को बेचने में हुए घोटाले की जांच सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन आर्गनाईजेशन (एसएफआईओ) की रिपोर्ट के आधार पर किया है जबकि बाकी 14 चीनी मिलों की बिक्री में हुए घोटाले की जांच के लिए छह प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की गयी हैं. ध्यान रहे एसएफआईओ की रिपोर्ट मिलने के बाद प्रदेश सरकार की ओर से राज्य चीनी निगम के एमडी ने इस मामले की एफआईआर राजधानी के गोमतीनगर थाने में दर्ज करायी थी जिसमें सात लोगों को फर्जी दस्तावेजों के सहारे सात चीनी मिल खरीदने का आरोपी बनाया गया था. बताते चलें कि ये चीनी मिलें देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज, हरदोई, रामकोला, छितौनी और बाराबंकी में है.

बढ़ेंगी मायावती की मुश्किलें
लोकसभा चुनाव के दरम्यान चीनी मिलों की बिक्री में हुए घोटाले की जांच का केस सीबीआई द्वारा दर्ज किए जाने के सियासी मायने भी है. दरअसल वर्ष 2010-11 के बीच बसपा सरकार ने सूबे की 21 सरकारी चीनी मिलों को औने-पौने दामों पर निजी कंपनियों को बेच दिया था. योगी सरकार के आने के बाद इस मामले की जांच सीबीआई से कराने का फैसला लिया गया था जिसका खुलासा 'दैनिक जागरण आई नेक्स्ट' ने अपने 13 अप्रैल 2017 के अंक में सबसे पहले किया था. वहीं पिछले साल 12 अप्रैल को राज्य सरकार ने इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने का अनुरोध केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से किया था. सीएम योगी ने विधानसभा सत्र के दौरान इसका खुलासा किया था. अब सीबीआई उन राजनेताओं के साथ उन अफसरों पर भी शिकंजा कसेगी जिनकी सीधी भूमिका इन मिलों की बिक्री में थी. सूत्रों की मानें तो जांच की की जद में दो पूर्व मुख्य सचिव और एक दर्जन से ज्यादा आईएएस भी आ रहे हैं जिन्होंने बिक्री प्रक्रिया को अमली जामा पहनाया था. वहीं योगी सरकार के इस कदम के बाद चीनी मिलें खरीदने वाले कंपनियों में हड़कंप मच गया था. इनमें से चार मिलें खरीदने वाली वेव इंडस्ट्रीज ने तो 16 हजार करोड़ रुपये के एवज में इसे वापस करने का राज्य सरकार को पत्र भी लिख दिया था.

दो कंपनियों के खिलाफ दर्ज हुआ था मुकदमा
राज्य चीनी निगम लिमिटेड ने चीनी मिलें खरीदने वाली दो बोगस कंपनियों के खिलाफ नौ नवंबर 2017 को गोमतीनगर थाने में एफआइआर दर्ज कराई थी. यह रिपोर्ट सीरियस फ्रॉड इंवेस्टीगेशन विंग की जांच के बाद दर्ज हुई थी. दरअसल चीनी निगम की 21 चीनी मिलों को वर्ष 2010-11 में बेचा गया था. इस दौरान नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड ने देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज (कुशीनगर) और हरदोई इकाई की मिलें खरीदने को ईओआई कम आरएफक्यू प्रस्तुत किया था. यही प्रक्रिया गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने भी अपनाई थी. वहीं समिति ने दोनों कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया के अगले चरण के लिए योग्य घोषित कर दिया. एसएफआईओ की जांच में धांधली पता लगी तो दिल्ली निवासी राकेश शर्मा, गाजियाबाद निवासी धमर्ेंद्र गुप्ता, सहारनपुर निवासी सौरभ मुकुंद, सहारनपुर निवासी मोहम्मद जावेद, दिल्ली निवासी सुमन शर्मा, सहारनपुर निवासी मोहम्मद नसीम अहमद एवं मोहम्मद वाजिद अली के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गयी थी. जावेद नसीम और वाजिद पश्चिम उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े खनन माफिया मो. इकबाल के करीबी परिजन हैं. ध्यान रहे कि मो. इकबाल के खिलाफ देश की 14 एजेंसियां जांच कर रही हैं.

कैग की रिपोर्ट में हुआ था खुलासा
21 चीनी मिलों की बिक्री में करीब 1100 करोड़ रुपये का घोटाला होने का खुलासा सीएजी की रिपोर्ट में हुआ था. सीएजी ने रिपोर्ट में सूबे में सक्रिय एक बड़े सिंडीकेट की ओर भी इशारा किया था जिसने राजनेताओं और अफसरों की मदद से चीनी मिलों की बिक्री करवाने में सफलता हासिल की थी.

इन कंपनियों ने खरीदी थी चीनी मिलें

- वेव इंडस्ट्रीज लिमिटेड

- इंडियन पोटाश लिमिटेड

- गिरासो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड

- एसआर बिल्डकॉन प्राइवेट लिमिटेड

- नीलगिरी फूड्स प्राइवेट लिमिटेड

- त्रिकाल फूड एंड एग्रो प्रोडक्टस प्राइवेट लिमिटेड

- नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड

नौ साल बाद होगी सीबीआई जांच

- 02 जुलाई 2010 को बेची गयी थी चार चीनी मिलें

- 17 सितंबर 2010 को बेची गयी थी छह चीनी मिलें

- 04 जनवरी 2011 को बेची गयी थी 11 चीनी मिलें

- 01 मई 2017 को न्याय विभाग ने घोटाले की सीबीआई जांच की सहमति दी

- 09 नवंबर 2017 को लखनऊ के गोमतीनगर थाने में पहली एफआईआर दर्ज की गयी

- 12 अप्रैल 2018 को राज्य सरकार ने सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की

- 04 अप्रैल 2019 को गृह विभाग ने सीबीआई को केस दर्ज करने की अनुमति दी

इनको किया गया नामजद

दिल्ली निवासी राकेश शर्मा, गाजियाबाद निवासी धमर्ेंद्र गुप्ता, सहारनपुर निवासी सौरभ मुकुंद, सहारनपुर निवासी मोहम्मद जावेद, दिल्ली निवासी सुमन शर्मा, सहारनपुर निवासी मोहम्मद नसीम अहमद एवं मोहम्मद वाजिद अली.