- तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को भी दी गई थी फाइल, अब पहुंचाई गई मोदी तक

-जिस कांग्रेस पर बेतहाशा महंगाई बढ़ाने का आरोप लगाया, उसी के साथ क्यों हो गए नीतीश?

PATNA: पॉलिटिक्स से लेकर ब्यूरोक्रेसी तक में जिस स्लीपर घोटाले की चर्चा होती है, वह आखिर है क्या? आखिर क्यों इतना बवाल है इसको लेकर? कितने का घोटाला हुआ? ऐसे कई सवाल हैं, जिसके जवाब आप इस रिपोर्ट में पाएंगे। आप जान पाएंगे कि कैसे खास को मालामाल किया गया। इससे जुड़े जो आरोप हैं, उसमें क्या है? इस सच से आई नेक्स्ट पर्दा उठा रहा है।

सीमित टेंडर के रूप में बदल दिया गया

वर्ष 2001 से 2004 के बीच बड़े पैमाने पर नई रेल बिछाने और गौज परिवर्तन की वजह से देश के विभिन्न रेलवे जोन से करोड़ों की संख्या में कंक्रीट स्लीपर की मांग रेल मंत्रालय को प्राप्त हो रही थी। टेंडर संख्या--c.s। 145 / 2000 द्वारा 90 लाख और टेंडर संख्या c.s। 152/2002 द्वारा 160 लाख कंक्रीट स्लीपर की आपूर्ति के लिए टेंडर जारी किया गया। ये दोनों ओपेन टेंडर थे। दोनों में नए और पुराने दोनों ही तरह के निर्माणकर्ता / आपूर्तिकर्ता टेंडर डाल सकते थे। सभी तरह के यानी नए और पुराने दोनों तरह के निर्माणकर्ताओं-आपूर्तिकर्ताओं ने टेंडर जमा किए, लेकिन आरोप ये है कि स्व। दयानंद सहाय और उनके निकट संबंधी धीरेन्द्र अग्रवाल के स्वामित्व वाले फर्म मेसर्स दया इंजीनियरिंग व‌र्क्स गया को लाभ पहुंचाने के लिए मंत्रिमंडल या सक्षम प्राधिकार की सहमति या स्वीकृति के अपने ही स्तर से अनाधिकृत एवं अनियमित तरीके से खुले रूप में जारी टेंडर को सीमित टेंडर के रूप में बदल दिया गया। ये भी तब हुआ, जब ओपन टेंडर के विज्ञापन के आधार पर टेंडर प्राप्त हो चुके थे। आरोप ये भी है कि ममता बनर्जी ने वर्ष 2000 में स्पष्ट तौर पर पुराने निर्माताओं व आपूर्तिकर्ताओं की सीमित टेंडर की नीति को लागू करने की मांग को खारिज करते हुए आदेश दिया था कि कंक्रीट स्लीपर की खरीदगी के मामले में प्रत्येक दो साल के अंतराल पर खुली निविदा जारी की जाए।

कितने का स्लीपर, कितने का आरोप

टेंडर संख्या 145 / 2000 के तहत जहां दया इंजीनियरिंग व‌र्क्स गया ने प्रति स्लीपर 565 रूपए का दर बताया, वहीं नए निर्माणकर्ताओं और आपूर्तिकर्ताओं ने उसी गुणवत्ता के कंक्रीट स्लीपर की दर 429 रुपए प्रति स्लीपर बताया। इस तरह समान गुणवत्ता के कंक्रीट स्लीपर के दर से प्रति कंक्रीट 136 रुपए के अंतर का आरोप है। इसी तरह टेंडर संख्या-152/ 2000 से जहां मेसर्स दया इंजीनियरिंग व‌र्क्स गया और उनके एसोसिएट अपूर्तिकर्ताओं ने 715 रुपए प्रति कंक्रीट स्लीपर की मांग की, वहीं उसी गुणवत्ता के कंक्रीट का नए निर्माणकर्ताओं और आपूर्तिकर्ताओं को 591 रुपए प्रति कंक्रीट स्लीपर की दर से मांग की। इस तरह से इस टेंडर में भी कंक्रीट स्लीपर मूल्य में 124 रुपए का अंतर था। उच्चतम और निम्नतम मूल्य में इतना डिफरेंस होते हुए भी तत्कालीन रेल मिनिस्टर ने उपर्युक्त आदेश दिया। इससे रेल डिपार्टमेंट को सिर्फ कीमत के मामलों में 320 करोड़ 80 लाख की क्षति हुई, वहीं मेसर्स दया इंजीनियरिंग व‌र्क्स गया एवं उसके समूह के पुराने आपूर्तिकर्ताओं को 320 करोड़ 80 लाख का लाभ मिला। इस मामले में विशेष स्वार्थ का आरोप लगाया गया है।

Other side

जरा इसे भी समझिए

गया के फर्म को आपूर्ति आदेश देने की वजह से रेल डिपार्टमेंट को कैरेज में भी अरबों की राशि का नुकसान होने का आरोप लगा। ऐसा इसलिए कि गुवाहाटी, मुम्बई, चेन्नई, हैदराबाद जैसे सुदूर क्षेत्रों में निर्माणकर्ता व आपूर्तिकर्ता उपलब्ध थे, जिन्होंने टेंडर भी जमा किया था।

मिथिलेश सिंह ने ये आरोप भी लगाए

मिथिलेश कुमार सिंह ने पहली बार नीतीश कुमार से जुड़े घोटालों के आरोप से जुड़ी फाइल पीएम को दी है, ऐसा नहीं है। नरेन्द्र मोदी से पहले उन्होंने ये फाइल मनमोहन सिंह को भी दी थी। उन्होंने क्0-07-क्फ् के पत्र में लिखा था कि प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह के इशारे पर सीबीआई तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में कंक्रीट स्लीपर की खरीदगी में इनकी सीधे संलिप्तता से हुई हजारों करोड़ के स्पष्ट घोटाले में नीतीश कुमार एवं घोटाले में शामिल अन्य उच्चाधिकारियों को लगातार बचाने की साजिश कर रही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि दिनांक फ्क्-0भ्-ख्0क्0 को पहली बार माननीय मुख्य सूचना आयुक्त ने सीबीआई को स्पष्ट आदेश दिया था कि आवेदक मिथिलेश कुमार सिंह को जांच प्रतिवेदन की प्रति दे दी जाए। ये भी कहा है कि ठीक उसी समय से नीतीश कुमार का केन्द्र सरकार के प्रति व्यवहार एवं रवैया बदलने लगा और वे विशेष राज्य का दर्जा के बहाने बहाना बनाकर कांग्रेस से समर्थन की बात करने लगे।

क्कश्रद्बठ्ठह्ल ह्लश्र ढ्डद्ग ठ्ठश्रह्लद्गस्त्र

एक दिन में नहीं हुआ मामला उजागर

लोकतांत्रिक समता दल के कन्वेनर मिथिलेश कुमार को ये तमाम सूचनाएं एक दिन में नहीं मिलीं, बल्कि कई बार आईटीआई का इस्तेमाल करने के बाद ये जानकारी उजागर हुई। कई बार तो उलट-पुलट जानकारियां दी गईं। पीएम रहते हुए मनमोहन सिंह ने मामले को मुकाम तक नहीं पहुंचाया, लेकिन जो पॉलिटिकल सेनारियो हैं उसको देखते हुए साफ लगता है कि ये मामला तेज जांच के दौर से गुजर रहा है।

नीतीश ने किया था बीजेपी के मंत्रियों को बर्खास्त

नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी के सवाल पर बीजेपी का साथ छोड़ दिया था। बीजेपी कोटे के मंत्रियों को भी उन्होंने बर्खास्त कर नया मैसेज दिया था और बीजेपी विरोधी राजनीतिक मुहिम के हीरो बने थे। इसके बाद कांग्रेस ने भी नीतीश कुमार को सेक्लुयर कहा था, लेकिन अब केन्द्र में बीजेपी का राज है। बिहार में इलेक्शन होने वाले हैं।