सरकार की योजना है कि तीन कानूनों के मिश्रण से एक ऐसा श्रमिक कानून लाया जाए जिसके तहत मजदूर संघ का गठन करना तो कठिन हो ही जाएगा साथ में 300 श्रमिकों से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों के लिए अपने इंप्लाशई को बर्खास्ता करना भी आसान हो जाएगा, क्यों कि इसके लिए किसी आधिकारिक मंजूरी की बाध्यीता नहीं रहेगी.  

हालाकि इसे अमली जामा पहनाने से संबंधित अधिकारियों का मानना है कि इसका उद्देश्य मजदूरों को परेशान करना नहीं बल्कि व्यापार प्रक्रिया को आसान बनाना है. लेकिन इस में सम्मलित किए जाने वाले नियमों के बारे में सुन कर ऐसा नहीं लगता. क्योंकि अभी जो मजदूर संगठन महज सात सदस्यों के साथ बन सकती है इस कानून के अमल में आने के बाद इसके लिए कुल कर्मचारी संख्या के दस प्रतिशत या कम से कम 100 कर्मचारियों के सदस्य बनने पर ही गठित की जा सकेगी. इसके साथ ही केवल कर्मचारियों को ही यूनियन बनाने की अनुमति होगी.

ये सभी प्रस्ताव औद्योगिक संबंध विधेयक, 2015 की उस मसौदा श्रमिक संहिता का हिस्सा है जिसे श्रम मंत्रालय ने तैयार किया है. इस विधेयक के जरिए औद्योगिक विवाद कानून 1947, ट्रेड यूनियंस कानून 1926 व औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) कानून 1946 को एक साथ मिलाने की योजना है. श्रम मंत्रालय के र्सोसेज से पता चला है कि इस श्रम संहिता मसौदे के प्रस्तावों पर विचार के लिए छह मई को यूनियन व उद्योग प्रतिनिधियों की मीटिंग होगी.  वहीं जब मीडिया में इस कानून को श्रमिकों के हितो के विरुद्ध कहा गया तो मंत्रालय के सूत्रों ने इसे गलत बताया और कहा कि ये कानून तो मजदूरों को फायदा पहुंचाने के विचार पर ही आधारित है क्योंकि इसमें रोजगार छिनने के मामलों में मुआवजा बढाकर 45 दिन करने का प्रस्ताव होगा जबकि मौजूदा कानून में यह 15 दिन ही है. हैरानी की बात है जब रोजगार ही नहीं रहेगा तो मुआवजा कितने दिन का है इससे क्या फर्क पड़ेगा. हालाकि सरकार तो इसे नियुक्ति प्रक्रिया में लचीलापन लाने का प्रयास और यूनियनों को श्रमिकों का सच्चा प्रतिनिधि बनने का दवाब बढ़ाने वाला कानून होने की बात कर रही है.

Hindi News from Business News Desk

Business News inextlive from Business News Desk