नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। जब पृथ्वी और स्वर्ग पर असुरों के घोर अत्याचार से देव, नर और मुनि त्रस्त हो उठे, तब मां दुर्गा असुरों का नाश करने के लिए कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुईं।

ऐसे नाम पड़ा कुष्मांडा

संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं, इसलिए इस देवी को कुष्मांडा कहा गया। भगवती का यह स्वरूप त्रिविध तापयुक्त संसार को मुक्ति प्रदान कर 'भवस्ये दुखात्युच्यते' यानी भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है। त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है, वह भगवती कूष्मांडा के नाम से विख्यात हुईं।

देवी कुष्मांडा के पूजन का मंत्र

सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।

भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।

माता कुष्मांडा का स्वरूप

मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा नाम से भी जाना जाता है। इनके हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। 

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पूजा विधि

पुष्प, धूप, नैवेद्य और घृत दीप आदि से देवी सूक्त पाठ करते हुए कूष्मांडा देवी की आराधना करते हैं। इससे प्रसन्न होकर देवी भक्तों को समस्त संतापों से मुक्ति दिलाती हैं।

देवी को भोग में दही और हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए।