चंदन तिवारी, फोक सिंगर

मूलत: मैं आरा के बड़का गांव की रहने वाली हूं। आज भी वहां से गहरा और आत्मीय सरोकार है, लेकिन मेरी परवरिश और पढ़ाई-लिखाई सब बोकारो में हुई। कार्य स्थली पटना और सोशल मीडिया को मान सकते हैं। सच कहूं तो पढ़ने में कभी मन ही नहीं लगा। स्कूल में भी संगीत का अवसर ही तलाशा करती थी। जब कभी स्कूल का होमवर्क पूरा नहीं करती तो टीचर मुझे सजा के तौर पर गीत सुनाने कहते।

मेरी मां है संगीत की गुरु

मेरी मां भोजपुर की है। इस इलाके की सवर्ण जाति की लड़कियों का सार्वजनिक मंचों पर गाना-बजाना आज भी लगभग बैन है। मां चाहती थी कि मैं संगीत के क्षेत्र में न जाकर नौकरी करूं, पर संगीत छोड़ना मेरे बस की बात नहीं थी। बाद में वही मेरे संगीत की गुरु बन गई और उन्होंने ही मुझे संगीत सीखाना शुरू कर दिया। फिर मै स्नातक करने के बाद प्रयाग संगीत महाविद्यालय से संगीत में प्रभाकर की।

घर की आर्थिक स्थिति दयनीय थी

मेरी घर की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय थी। दो बहन और दो भाई की पढ़ाई-लिखाई के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे। घर में आमदनी के श्रोत बढ़े इस लिए मैं भी आयोजनों में जाने लगी। इस बीच सुर संग्राम और जिला टॉप जैसे टीवी शो में भाग लिया। एक बार टॉप फाइव और एक बार रनर अप रही। मैं समझ गई कि मुझे कुछ अलग करना ही होगा।

वापस लौट आई मुम्बई से-

टीवी शो के दौरान बने मेरे मित्र सलाह दे रहे थे कि मैं मुंबई जाकर स्ट्रगल करूं। लोगों ने तो यहां तक कहा कि अब मुंबई से वापस जाने का मतलब है लोकल सिंगर बन कर रह जाना। मन बहुत उदास हो चला था। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं।

इसी दौरान मैंने सोचा कि पत्रकार निराला से क्यूं न सलाह ली जाय। मैं जानती थी कि लोकसंगीत में उनकी गहरी रुची है। मुंबई से ही मैंने उन्हें फोन पर बात की। तब उन्होंने समझाया कि लोकसंगीत का गढ़ मुंबई कभी नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि शारदा सिन्हा, विंध्यवासिनी देवी, भरत शर्मा, तीजनबाई, सुरूजबाई, पदमा सचदेव जैसी हस्तियां कभी मुंबई नहीं रहीं। फिर मैं मुंबई से वापस आ गई।

सोशल मीडिया को बनाया ताकत

मैंने तय किया था कि सोशल मीडिया के जरिये लोगों तक पहुंचना है। फिर साथी निराला के साथ मिलकर पुरबियातान श्रृंखला पर काम शुरू की। पुरबियातान के बात मैने खुद में बहुत बदलाव महसूस किया। मुझे जिस पढ़ने-लिखने से चीढ़ थी बचपने में, वही करना शुरू किया। लोकगीतों की किताबें खरीदी। सबसे पहले मैने महेंदर मिसिर और भिखारी ठाकुर के गीतों पर काम करना शुरू की। मुश्किलें सामने थी। उतने पैसे नहीं थे कि मुंबई जाकर रिकार्ड कर लूं। मामूली वादक कलाकारों के साथ, उनमें से कई ऐसे जो बैंड बाजे में बजाते हैं, उनहें लेकर पुरबियातान का पहला काम शुरू की। गायी, गीतों को रिकार्ड की और 16 मार्च 2014 को पहला गीत लोकराग की ओर से पुरबियातान का जारी हुआ। महेंदर मिसिर का गीत। बलजोरी रे सइयां मांगे गहवना हमार। बता नहीं सकती कि वह दिन मेरे जीवन में किस तरह का टर्न लेकर आया। 24 घंटे में 20 हजार से अधिक लोगों ने गीत सुने। दुनिया भर में फैले भोजपुरी भाषियों ने। फिर एक के बाद एक कर गीत जारी हाते गये, मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा। एक गीत जारी हुआ अंगुरी में डंसले बिया नगिननिया। महेंदर मिसिर का ही। मनोज वाजपेयी ने खुद से रुचि दिखायी। वे पटना आये ओर पुरबियातान को रिलीज किये। भरत शर्मा, भरत सिंह भारती जैसे कलाकारों ने हौसला बढ़ाया मेरा। देश-दुनिया से प्रतिक्रियाएं आयी। मैं पुरबियातान नाम से शो करने लगी। अभी पुरबियातान के नाम से सौ गीतों की सीरिज तैयार करने में लगी हूं।

अश्लीलता ने भोजपुरी का नुकसान किया है-

मैं कुछ भी बड़ा नहीं कर रही हूं। जो चीजें बिखरी हुई हैं, बस उसे सहेजनी कोशिश कर रही हूं। मैं मानती हूं कि अश्लिलता से लड़ने का सबसे बेहतर रास्ता यही है कि आप अधिक से अधिक अच्छे गीतें को गाएं। पुरबियातान के आठ गानों में से तीन गानों को अलग-अलग तीन हिंदी फिल्मों में लेने की तैयारी चल रही है। पटना और बिहार में कई अच्छे कलाकार हैं, जो अच्छा काम करें रहे हैं। सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए।

लोकगीतों को लेकर चंदन का प्रयास सराहनीय है। पुरबियातान नाम से जो प्रयास जारी है अब उसके परिणाम सामने आने लगे हैं। हमारी भाषाओं में काम नहीं हुआ है ऐसे में यह प्रयास का स्वागत है। चंदन टैलेंटेड है आवाज अच्छी है। उसके गीतों और प्रयासों से उसके संस्कार दिखते हैं।

आशुतोष सिंह म्यूजिक डायरेक्टर, बॉलीवुड